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स्कूल बसों की दुर्घटनाओं को रोकने के लिए

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16 Mar 18
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भारत में स्कूल बसों की दुर्घटनाओं को रोकने के लिए अग्र.भाग के टकराव और रोल.ओवर नियमों को अनिवार्य करने की आवश्यकता है
भारत में स्कूल बसों की दुर्घटनाओं को रोकने के लिए अग्र.भाग के टकराव और रोल.ओवर नियमों को अनिवार्य करने की आवश्यकता है द्य
भारत सरकार ने 2016 में राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा नीति की घोषणा की जिसमें बसों पर लागू अंतरराष्ट्रीय मानकों और कोड शामिल होंगे जो बस निकायों के लिए होंगेए जो सुरक्षा उपायों को निर्धारित करेंगे जिसमे डिजाईन और सामग्री शामिल होंगी द्य जो बसों पर लागू होती है द्य अब समयभारत में स्कूल बसों की दुर्घटनाओं को रोकने के लिए अग्र.भाग के टकराव और रोल.ओवर नियमों को अनिवार्य करने की आवश्यकता है द्य
भारत सरकार ने 2016 में राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा नीति की घोषणा की जिसमें बसों पर लागू अंतरराष्ट्रीय मानकों और कोड शामिल होंगे जो बस निकायों के आ गया है की हम स्कूल बसों के उच्च मानक के लिए सुझाव् दे एवं कार्यान्वित भी करेंए जो सार्वजनिक परिवहन के लिए उपयोग किए जाने वाले बसों से भी ऊँचे हो द्य स्कूली बसों के बस निकायों के निर्माता और जो कंपनियां स्कूल बस के चेसिस बनाती हैंए उनके मानक उच्च स्तर के होने चाहिए।
स्कूली बस दुर्घटनाओं में मरने वाले बच्चो की संख्या बहुत अधिक है अगर सुर्खियाँ आपको सोचने पर मजबूर न करें तो आंकड़े शायद कड़ी वास्तविकता पेश करें द्य नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि देश भर में सड़क दुर्घटनाओं में प्रत्येक दिन लगभग 43 बच्चे मारे जाते हैंए और सभी मौतों में सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों की संख्या 10ण्5 प्रतिशत हैं। उदाहरण के लिएए 2015 में पूरे भारत में सड़क दुर्घटनाओं में 15ए633 बच्चे मारे गए थे ए जो की हत्या और भ्रूण हत्या जैसी दुसरे अपराधों में मरने वाले बच्चों की संख्या से सात गुना अधिक थे।
निम्नलिखित को ध्यान मे रखते हुए रू चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशनए जो कि बच्चों के अधिकारों के लिए एक वकालत संगठन है उसकी रिपोर्ट के अनुसारए शहरी भारत में 12ण्8 करोड़ से अधिक बच्चे स्कूल जाते हैं द्य दिसम्बर 2015 में ब्रिटिश मेडिकल जर्नल ;बीएमजेद्ध ने हैदराबाद में बच्चों के सड़क यातायात की चोटों के बारे में सर्वे कराया था जिसके अनुसार 12ण्8 करोड़ में से 8 प्रतिशत या 10 लाख से अधिक बच्चे स्कूल बसों से स्कूल जाते हैं और बाकि 9 प्रतिशत सार्वजनिक परिवहन बसों में यात्रा करते हैं द्य
स्कूल बसों से जुड़े दुर्घटनाओं में चोंट खाने वालो की संख्या 1 प्रतिशत है दूसरे शब्दों में 80ए000 बच्चें चोटों का शिकार होंते है द्य सड़क दुर्घटनाओं में 18 साल से कम उम्र के बच्चे मारे जाते हैए जो लगभग सभी सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने वाली संख्या का 10ण्5 प्रतिशत है द्य और पीछे जाने पर भी हमें तस्वीर अच्छी नहीं मिलती हैए वर्ष 2014 में भारतीय सड़को पर जान गवाने वालों की संख्या 1ए41ए526 थी द्य सरकारी आकड़े दर्शाते है की उनमे से 12ए456 लोगों की जाने बस दुर्घटनाओ में गई थी द्य जिसमे से 417 मौते स्कूल बस दुर्घटनाओ में हुई थी द्य
एक प्रमुख बात नज़रंदाज़ की गई हैए और इन खामियों को दूर करना आवश्यकता हैए वह है अग्र.भाग की अनिवार्यता का अभाव और स्कूल बसों के लिए रोल ओवर बॉडी टेस्ट । भारतीय सड़कों पर हेड टकराव बेहद आम है। एक मजबूत अग्र.भाग की संरचनाए जो भारी प्रभावों को सहने के लिए डिजाईन की जाती हैए अगर इसका उपयोग होता तो शायद और कम जाने जाती जो एटा स्कुल त्रासदी में गयी जो इस साल की शुरुवात में घटित हुई थी रोल ओवर टेस्ट स्कूल बसों के लिए भी अनिवार्य है द्य जो मुख्य रूप से इंट्रा.सिटी मार्गों में घूमते हैंए और अक्सर जिन्हें तंग घनिष्ठ सड़कों और संकीर्ण बेलन को नेविगेट करने के लिए तीव्र बदलाव करना पड़ता है द्य
विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप मेंए हम वैश्विक आर्थिक विकास को चलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैंद्य स्कूल के बच्चों के बीच सड़क दुर्घटनाओं का विशाल आँकड़े हमारी आकांक्षाओं और महत्वाकांक्षाओं के साथ मेल नहीं खाता हैए इस तरह की वैश्विक आर्थिक वृद्धि के साथ भारत विश्व का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है हमारी सड़क का बुनियादी ढांचा ट्रैफिक की बढ़ती तेज़ी के आगे मेल नहीं खाता है द्य हमारे सुरक्षा मानक सुस्त हैं तो क्या हमें वाकई सड़कों की मौत के पैमाने पर आश्चर्यचकित होना चाहिएघ्
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