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निजी हाथों में गया स्कूलों का नियंत्रण सरकारी स्कूल प्राइवेट कम्पनी को -आनन्द एम.वासु-

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30 Jun 15
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जैसलमेर । राज्य सरकार पीपीपी मॉडल पर सरकारी स्कूलों की अरबों की सम्पत्ति प्राइवेट कम्पनियों को सौंप रही है। शिक्षा विभाग ने प्रथम चरण में राज्य के 5 सरकारी स्कूलों को पीपीपी मॉडल पर गैर सरकारी कम्पनियों को दे दिए हैं। हालांकि अभी उसमें स्वर्णनगरी का नाम नहीं है लेकिन शीघ्र ही निवेशक यहां की सरकारी स्कूलों को अपने नियंत्रण में लेने के लिए बोली लगा सकते हैं ।

इन विद्यालयों का संचालन प्राइवेट कम्पनी वाले अपनी मर्जी से करेंगी। अगले वर्ष से स्कूलों की फीस और स्टाफ की ड्यूटी भी उनके हाथ में होगी। शिक्षा विभाग ने राज्य के 5 स्कूलों का चयन पीपीपी मॉडल के लिए किया है। हालांकि प्रथम चरण में स्वर्णनगरी जैसलमेर की कोई स्कूल नहीं है । लेकिन शीघ्र ही निवेशक स्वर्णनगरी की ओर आकर्षित होंगे ।
फीस और स्टॉफ तय करेगी कम्पनी
दोनों सरकारी स्कूलों में पहले वर्ष सरकार से तय फीस बच्चों से ली जाएगी। अगले वर्ष कंपनी 6॰ प्रतिशत बच्चों से मनचाही फीस वसूल सकेगी। स्कूलों में कर्मचारी व शिक्षक सरकारी रहेंगे, लेकिन कंपनी स्टाफ में वांछित बदलाव करा सकेगी।
शिक्षण गुणवत्ता सुधारने के प्रयास
स्कूलों को पीपीपी मोड पर चलाने के पीछे सरकार का अपना तर्क है। अधिकारियों के मुताबिक आरटीई आने के बाद स्कूलों में शिक्षा का स्तर गिरा है। वर्तमान हालात में शिक्षा की गुणवत्ता नहीं सुधारी जा सकती है। वे मानते हैं कि स्कूल पीपीपी मोड पर देने के बाद स्कूलों पर होने वाला खर्च तो कम होगा ही शिक्षा की गुणवत्ता और शिक्षकों की उपस्थिति में भी सुधार आएगा। साथ ही देखरेख भी कम हो जाएगी।
कॉन्वेंट स्तर की सुविधा का दावा
निजी हाथ में जाने के बाद राजकीय विद्यालयों में कॉन्वेन्ट स्कूल जैसी स्मार्ट क्लासेज, इनडोर व आउटडोर गेम की सभी अत्याधुनिक सुविधाएं, कम्प्यूटर लैब, समृद्ध लाइब्रेरी, वाई-फाई एरिया, पानी व शौचालय की अत्याधुनिक सुविधाएं, आकर्षक भवन सहित सभी सुविधाएं होंगी। इनमें प्राइवेट कम्पनी अपना स्टॉफ भी लगा सकेगी।
इन दुष्परिणाम की आशंका
ऐसा माना जा रहा है कि सरकार स्कूलों की प्राइम लोकेशन की जमीन निजी निवेशकों को सौंपने के मकसद से ऐसा कर रही है। दरअसल, शहर से लेकर गांवों तक सरकारी स्कूल प्राइम लोकेशन पर हैं। राजधानी सहित चारों महानगरों की बात करें, तो शहर में मौजूद स्कूल बडे बाजारों के आसपास हैं और उनकी भूमि अरबों रुपए मूल्य की है। जिसे बडे निवेशक हथियाना चाहते हैं। स्कूल उन्हें ही देकर सरकार अघोषित रूप से स्कूलों की भूमि उन्हें ही सौंप रही है। जिस पर भविष्य में मल्टीस्टोरी भवन और नए दफ्तर नजर आ सकते हैं।
ऐसा करना खतरनाक !
शिक्षाविद् मानते हैं कि यह बहुत ही खतरनाक है। यह शिक्षा का बाजारीकरण है। ऐसा कर सरकार अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोडना चाहती है। अच्छी शिक्षा देना सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार के पास पर्याप्त संसाधन हैं, पैसों की कमी नहीं है, स्टाफ है। इसके बाद भी अगर सरकार स्कूलों को पीपीपी मोड पर देने की तैयारी कर रही है, तो सरकार की मंशा पर सवालिया निशान उठ रहा है।
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