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अभी तक मुझे ठीक से गाना नहीं आया, ऐसा मुझे लगता है।”- अनूप जलोटा

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26 Jul 17
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मुंबई । अनूप जलोटा फिल्म्स प्रजेंट्स व्यंगात्मक सिचुवेशनल कॉमेडी फिल्म 'मिस्टर कबाड़ी' सीमा कपूर द्वारा निर्देशित की गयी है,जोकि अगस्त में दर्शकों को देखने को मिलेगी।फिल्म ने निर्माता अनूप जलोटा, राकेश गुप्ता, दिनेश गुप्ता और ओम छंगाणी है।साधना टीवी और ओम छंगाणी फिल्म्स के एसोसिएशन में बनी है। यह फिल्म अगस्त २०१७ में रिलीज़ होगी।

कॉमेडी फिल्म 'मिस्टर कबाड़ी' के निर्माता वह गायक भजन सम्राट अनूप जलोटा है।५ वर्ष के थे तब से भजन गाते गाते अनूप जलोटा के गायन के ५५ वर्ष पूरे हो गये है। उनका पहला एल्बम 'निर्गुण भजन' १४ साल की उम्र में आया था। बचपन में भजन से उनकी ऐसी लागी लगन की उनका जीवन हो गया सफल। अब तक वे तीन हज़ार से ज्यादा गाने और भजन इत्यादि गा चुके है। उनका सबसे हिट भजन 'ऐसी लागी लगन..','मैया मोरी मई नहीं माखन खायो','जग में सूंदर है दो नाम' इत्यादि है। इसके अलावा फिल्म पत्तों की बाज़ी,तोहफा मुहब्बत का में संगीत भी दिया है । लोग कहते है कि भजन इत्यादि बुढ़ापे में किया जाता है, लेकिन अनूप जलोटा कहते है," आज मैं बचपन से भजन गाते गाते बूढ़ा हो गया। आज नाम, शोहरत, पैसे जो भी है भजन की वजह से है। लोग गलत कहते है, भगवान् को हमेशा ताजे फूल या फल अर्पित करना चाहिए ना कि बासी और सड़े गले या फूल और फल चढाने चाहिए। पूजा,भजन इत्यादि जवानी में ही करना सबसे अच्छा होता है।"

कॉमेडी फिल्म 'मिस्टर कबाड़ी' के बारे में वे कहते है,"ओमपूरी ने इस फिल्म में काम किया वह मुझे अच्छा लगा। 'मिस्टर कबाड़ी' फिल्म में सबसे बढ़िया काम विनय पाठक का लगा जो लोगों को बहुत हसाएंगे। फिल्म बहुत अच्छी है, यह फिल्म सौ करोड़ का बिज़नेस करेगी। "

फिल्म एक दूजे के लिए,नास्तिक, मनोज कुमार की शिरडी के साईबाबा, पड़ोसन, पत्तो की बाज़ी, प्रोफेसर की पड़ोसन इत्यादि में गाना गा के उनको काफी अच्छा लगा। उनका मानना आजकल के गायको को शास्त्रीय संगीत जरूर सीखना चाहिए तो ही वे अच्छे गायक बन सकते है। अपने ५५ साल के गायन के कैरियर के बारे में पूछने पर अनूप जलोटा कहते है," अभी तक मुझे ठीक से गाना नहीं आया, ऐसा मुझे लगता है। अभी बहुत कुछ सीखना है। वैसे भी किसी भी चीज़ को सीखने के लिए पूरा जीवन कम पड़ता है। हम जिंदगी में हर रोज कुछ नया सीखते है।

और जो इंसान मान ले वह सबसे अच्छा बन गया है तो वह जीवन में आगे तरक्की नहीं कर सकता है। एक मुकाम पर वह जाकर रुक जायेगा।"

अनूपजी की पढाई इत्यादि लखनऊ (उत्तरप्रदेश) में हुई है और उनका ज्यादातर समय वही बिता है। वे कहते है," मुझे लखनऊ जाकर काफी अच्छा लगता है। और काफी प्रफुल्लित महसूस करता हूँ। इसलिए अक्सर वहां जाता हूँ।
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