“हमारे लेखों के पाठक कीर्तिशेष श्री अरूणमुनि वानप्रस्थ जी, रिवाड़ी”
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11 Aug 17
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ओ३म्
सन् 2012 से हमारे लेख हरियाणा राज्य के रोहतक नगर से प्रकाशित साप्ताहिक पत्र ‘आर्य प्रतिनिधि’ में प्रकाशित होने आरम्भ हुए थे। इस पत्र के अधिकंश अंकों में हमारे लेख प्रकाशित होते आ रहे हैं। अब यह पत्र साप्ताहिक के स्थान पर पाक्षिक हो गया। इसका स्वरूप भी अब आर्यजगत के समान पत्र रूप में न होकर परोपकारी या दयानन्द सन्देश के समान पत्रिका के रूप में है। अब भी इस पाक्षिक आर्य प्रतिनिधि में यदा कदा हमारे लेख प्रकाशित होते रहते हैं।
सन् 2012 में जब हमारे लेख आर्यप्रतिनिधि पत्र में प्रकाशित होना आरम्भ हुए तो इस पत्र के एक वयोवृद्ध पाठक श्री अरूणमुनि वानप्रस्थ जी, जिला रिवाड़ी हमें पत्र लिख कर लेख में प्रयोग किये गये शब्दों की अशुद्धियां सूचित करते थे। हमारे पास इन पाठक महानुभाव के 58 से अधिक पत्र आये। पहला पत्र 29-5-2012 का तथा अन्तिम पत्र 1-11-2015 का है। सभी पत्रों में मुनि जी ने अपना मोबाइल नं. जिसे वह वायुदूत लिखते थे, इसके साथ पत्र क्रमांक देकर लेख में प्रयुक्त शब्दों की अशुद्धियां बताया करते थे। तिथि में अंग्रेजी व हिन्दी दोनों तिथियां प्रयोग करते थे। हमारे पास इस समय उपलब्ध 58 पत्रों में एक ही तिथि पर चार लेखों के विषय में लिखे गये पत्र भी हैं। हमारे लेखों पर किसी एक व्यक्ति द्वारा लिखे गये पत्रों में यह सर्वाधिक संख्या है। श्री अरूण मुनि वानप्रस्थ जी का यह हितकारी स्वभाव ही कह सकते हैं कि वह पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों की अशुद्धियों को उनके लेखकों को सदभावनापूर्वक बताया करते थे। देहरादून के वैदिक साधन आश्रम तपोवन से प्रकाशित ‘पवमान’ मासिक पत्रिका के सम्पादक जी से मिलने का एक बार हमें अवसर मिला। उनके पास भी श्री अरूणमुनि जी के इसी प्रकार से पत्र आते थे। उस दिन भी उनके पास श्री अरूण मुनि वानप्रस्थ जी का पत्र आया था। वह पत्र में पत्रिका की कमियां दर्शाने के कारण कुछ खिन्न थे। हमने वह पत्र देखे तो हमें बिना पढ़े ही उनकी विषय वस्तु का ज्ञान हो गया और हमने सम्पादक जी को इस विषयक अपने अनुभव भी सूचित किये।
आज हमने अपनी पुस्तकों व पत्रों आदि को व्यवस्थित किया। अरूणमुनि जी के सभी पत्रों को भी तिथि-क्रमानुसार रखकर गणना की तो इनकी संख्या 58 थी। बहुत दिनों से मुनि जी के पत्र नहीं आ रहे थे। सभी पत्रों पर वायुदूत मोबाइल संख्या दी हुई थी। हमने फोन किया तो उत्तर सुनने को मिला कि यह फोन नं. वैलिड नहीं है। हमने उनके अन्य पत्रों को देखा तो सन् 2012 के दो पत्रों में लैण्डलाइन नं. दिया हुआ था। हमने फोन किया तो श्री अरूणमुनि वानप्रस्थ जी के पौत्र श्री कुल भूषण जी ने फोन उठाया और बातचीत की। पूछने पर उन्होंने बताया कि मेरे दादा जी श्री अरूणमुनि वानप्रस्थ का जनवरी, सन् 2016 में देहान्त हो गया है। मृत्यु के समय उनकी आयु 95-96 वर्ष के मध्य थी। हमें इस बात की आशंका फोन करते समय हुई थी। पहले हमें उनकी आयु का ज्ञान नहीं था परन्तु नाम के साथ वानप्रस्थ देखकर हमें लगता था कि वह कोई वृद्ध आर्य विद्वान हैं। हमें उनकी मृत्यु का समाचार सुनकर दुःख हुआ। हमारे लेखों का एक विद्वान् पाठक नहीं रहा और हमें इस बात का भी डेढ़ वर्ष बाद पता चला है। श्री मुनि जी ने हमारे लगभग 75 लेखों को पढ़ा होगा। लगभग 58 व कुछ अधिक पत्र उन्होंने हमें लिखे। पत्र लिखते हुए उनका जो भाव रहता होगा, उसका विचार कर हमें रोमांच होता है। काश वह जीवित होते तो उनसे बातचीत होती।
आर्यजगत के प्रसिद्ध विद्वान डा. विवेक आर्य, दिल्ली जी ने बताया कि उनका एक लेख एक बार शिन्तधर्मी मासिक पत्रिका में छपा था। महात्मा अरूणमुनि वानप्रस्थ जी ने लेख पढ़ा और जिन हिन्दी शब्दों के प्रयोग में अशुद्धियां थी, उसे लेखक को सूचित करने के लिए पत्र लिखा था। उनके पत्रों को पढ़कर यही लगता है कि वह चाहते थे कि लेखक इनका सुधार कर ले जिससे भविष्य में उनके लेखन में शब्दों के अशुद्ध प्रयोग न हों।
हम उस पुण्य आत्मा को अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि देते हैं। मन में विचार आया कि ऋषिभक्त कीर्तिशेष श्री अरूणमुनि वानप्रस्थ, रिवाड़ी विषयक यह जानकारी हम अपने सभी फेसबुक मित्रों से साझा करें। अतः यह पंक्तियां लिखी गईं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
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देहरादून-248001
फोनः09412985121
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