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स्मृति शेष-जिनके मुख से मरुस्थल की महक प्रकट होती थी।

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29 Apr 20
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स्मृति शेष-जिनके मुख से मरुस्थल की महक प्रकट होती थी।

मेरे जीवन में ऐसे बहुत से आदर्श शिक्षक एवं विद्धवान पुरुष आए जिनके मार्ग दर्शन से मैं सीखता रहा तथा लाभान्वित होता रहा उनमें से श्री श्याम सुंदर जी श्रीपत भी एक थे।वे राजस्थानी भाषा के यशस्वी कवि तथा कला संस्कृति,चित्रकला,ज्योतिष,इतिहास तथा मरु लोकजीवन के प्रकांड विद्वान थे।वे ऋषि मुनि तुल्य इंसान थे।मुझे भाग्य से उनका सानिध्य मिला वह आज भी मेरी स्मृति और हृदय में मंडित है।

 

परम आदरणीय श्री श्यामसुंदर जी श्रीपत को में 1988 से विशेषकर जानता हूं।जब मैं स्वयं पाठी छात्र था।मुझे हायर सेकेंडरी स्कूल में आपने बुलाकर काव्य पाठ का आयोजन करवाया था।आप उस समय विद्यालय के प्रिंसिपल थे और मेरी उस समय पत्र पत्रिकाओं मैं कविताएं प्रकाशित होती थी।कहना मैं यह चाहता हूं कि श्याम सुंदर जी ने मुझे मंच प्रदान किया और छात्रों के समुख मैंने जीवन मे पहली बार काव्य पाठ किया और इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि तत्कालीन विधायक श्री मुलताना राम जी बारूपाल थे।इस कार्यक्रम का संचालन शिक्षक श्री केवलिया जी ने किया जो कि गाइड का काम भी करते थे।इस कार्यक्रम का फोटोग्राफ मेरे पास आज भी सुरक्षित हैं।श्याम जी नवोदित प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने के लिए जिले में जाने जाते थे।वे कला संस्कृति साहित्य,विज्ञान,खेल,ड्रामा आदि विषय की प्रतिभाओं को तलाशकर तराशते थे।वह जातीय कुंठाओ से बहुत दूर थे तथा आपके पढ़ाए हुए अनेक छात्र उच्च पदों पर आसीन है।

 

श्याम जी को साहित्य एवं संस्कृति से विशेष समर्पण था राजस्थानी काव्य में आपकी विशेष पकड़ थी तथा आप मंच पर जब काव्य पाठ करते थे तो आप के मुख से सरस्वती प्रकट होती थी।आप की कविताएं जनमानस के हृदय में मंडित हो गई थी।आपकी दो काव्य कृतियां प्रकाशित हुई  जिसमें एक का नाम "मरू गंगा" है तथा दूसरी का नाम मुझे याद नहीं है।आपकी कविताओं मैं मरुस्थल की आत्मा बस्ती है रीति रिवाज,मेले,आभूषण,राजपूती शिल्प सौंदर्य सजीव हो उठता है।आपकी कविताओं में भाषा सरल,सरस,सहज,सौम्य तथा स्पष्ट हैं आप की कविताएं आमजन को सरल भाषा के कारण समझ में आ जाती थी तथा हृदय की गहराई तक उतरती भी थी आपकी कविता मैडम जनमानस में खूब प्रसिद्ध हुई थी यही कारण है कि आप अपने समय के बहुत ही प्रसिद्ध तथा यशस्वी कवि हुए।

 

आप शिक्षा के क्षेत्र में उम्र भर समर्पित रहे तथा आपको राज्य स्तरीय शिक्षक पुरस्कार भी मिला था आपको राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ने राज्य स्तरीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया था।आपने अपनी पहचान अपनी मेहनत के बल पर बनाई थी।शिक्षा अर्जन के लिए भी खूब संघर्ष किया तथा आपने मैट्रिक के बाद एम.ए तक कि सारी पढ़ाई प्राइवेट छात्र के रूप में नौकरी शिक्षक के रूप मैं करते हुए की।आपने तृतीय श्रेणी शिक्षक के रूप में अपना कैरियर शुरू किया तथा अपनी प्रतिभा के बल पर जिला शिक्षा अधिकारी पद तक पहुंचे और जिले के शिक्षा के क्षेत्र में सतत समर्पित रहे रिटायरमेंट के बाद में भी।आपका जन्म जैसलमेर के ब्राह्मण परिवार में लब्द प्रतिष्ठित श्रीपत खानदान में हुआ था।आपका जन्म 31 जुलाई 1932 को हुआ तथा मृत्यु 14 जनवरी 2012 को हुई थी।

 

श्याम जी को मुझ से बहुत लगाव था तथा यह लगाव जीवन भर चला।वे मेरे लेखन कार्य तथा विरासत संग्रह के जज़्बे से प्रभावित थे।वे मेरे कार्यो को रंग शाबाशी देते थे।रिटायरमेंट के बाद वे मुझसे मिलने मेरे स्थापित थार हेरिटेज म्यूज़ियम एवं आर्ट गैलरी डेजर्ट हैंडीक्राफ्ट एम्पोरियम आते थे।वे अक्सर बैंक जाते थे पेंशन लेने के लिए और आते वक्त मेरे एंपोरियम में जरूर रुकते थे।मैं उन्हें सम्मान मैं जूस पीलाता था तथा ज्यादातर श्याम जी से    लोक कला संस्कृति एवं इतिहास तथा पुरातत्व के बारे में चर्चा होती थी।वह मेरे लिए एक खुली किताब थे सलाहकार थे।मुझे जब भी कोई शंका या कोई जिज्ञासा होती थी तो मैं श्याम जी को आग्रह से पूछता था तथा श्याम जी मेरा खुलकर मार्गदर्शन करते थे।मेरे जीवन में जब भी कोई कठिनाई आई तो मैं श्याम सुंदर जी से सलाह मशविरा ज़रूर करता था और मुझे भी पुत्र की तरह समझ कर बड़े ही दया एवं दिल से मुझे सलाह देते थे जिससे मैं अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां भली-भांति निभा सका। वे जब गंभीर बीमार हुए तब मैं उन्हें नियमित उनके घर उन्हें देखने के लिए उनके घर जाता था और उनके बेटे,बहुए खूब सेवा करते थे।

 

मुझे बड़ा गर्व होता है कि मेरे जीवन में ऐसा गुरु मुझे मिला जिसे मुझे मार्गदर्शन मिला।आज उनके आदर्श उनके विचार उनकी सादगी,सरलता,सजगता और काव्य के प्रति समर्पण पूजनीय है।

 

विशेषकर राजस्थानी भाषा के प्रकांड विद्वान थे और उनकी कविताओं में मरुधरा का स्वरूप बोलता था मरुधरा की वाणी बोलती थी जैसलमेर की कारीगरी बोलती थी उनकी मन की आत्मा की और उनके सौंदर्य की भाषा उनके कविताओं में आज भी सुरक्षित हैं।

 

विश्व के जाने-माने चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन ने श्री श्याम सुंदर जी श्रीपत का रेखा चित्र बनाया था हस्ताक्षर युक्त।वह रेखाचित्र श्री श्याम जी ने मुझे बेच दिया था वह आज भी मेरे संग्रह में सुरक्षित हैं


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