भीखा भाई भील को कौन नहीं जानता। भीखा भाई अपने आपमें ऐसे शिखर पुरुष थे जिनकी छवि जन-जन के हृदय में अमिट छाप संजोए हुए है। आदिवासी नेता, धर्म-संस्कृति और परंपराओं के अनुगामी से लेकर आम और ख़ास सभी के लिए आत्मीय बन्धुत्व के हामी भीखा भाई के व्यक्तित्व को दायरों में सीमित रखकर नहीं देखा जा सकता।
उनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व ही ऐसा था कि जो उनके सम्पर्क में आता, वह उन्हीं का हो जाता। एक बार जो उनके सम्पर्क में आ गया तो फिर जिन्दगी भर के लिए उसका पूरा बायोडेटा भीखा भाई के दिमाग में रहता।
पूरे परिवार से जुड़ी स्मृतियाँ उनके दिमाग में रहा करती थीं। सागवाड़ा के समीप चिबुड़ा गांव में 28 अप्रेल 1906 को गरीब आदिवासी परिवार में जन्मे भीखा भाई ने उच्चतम शिक्षा-दीक्षा पाने के साथ ही प्रदेश और देश में विभिन्न पदों पर रहते हुए उन्होंने देश की सेवा में पूरा जीवन होम दिया।
भीखा भाई केवल आदिवासी नेता ही नहीं बल्कि हर समाज और हर वर्ग के नेता थे जिनके प्रति आम से लेकर ख़ास तक सभी के चहेते थे। सभी लोग उन्हें संरक्षक और अपना हितैषी मानते थे और यही कारण है कि आम जनता उन्हें ‘बाबूजी’ कहकर अपार सम्मान देते थे।
बाबूजी भीखा भाई का समग्र जीवन ज्ञान और अनुभवों के साथ ही आत्मीय लोक व्यवहार से जुड़े अनुकरणीय पहलुओं से इतना अधिक भरा रहा कि उनके जीवन को किसी विशाल ग्रंथ तक में समेटना संभव नहीं है।
विधिवेत्ता के रूप में भीखा भाई डूंगरपुर रियासत में जज भी रहे लेकिन बाद में भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन और स्वतंत्रता सेनानियों के साथ निरन्तर एवं घनिष्ठ सम्पर्क के कारण स्वाधीनता संग्राम में भी उनकी उल्लेखनीय भूमिका रही।
राजनैतिक क्षेत्र में प्रवेश के उपरान्त स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक उन्होंने धाक जमाई। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से लेकर कई राष्ट्राध्यक्षों के साथ उनके घनिष्ठ संबंध रहे। उन्होंने राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी विद्वत्ता और अनुभवों से अर्जित विलक्षण प्रतिभाओं का लोहा मनवाया।
भीखा भाई मानवतावादी व्यक्तित्व के इतने अधिक पोषक थे कि उनमें सम सामयिक तमाम संकीर्णताएं किंचित मात्र भी स्पर्श नहीं कर पाई। और यही कारण था कि सभी लोग बाबूजी के रूप में श्रद्धा और आदर देते थे। भीखा भाई जनसेवा के लिए समर्पण के माद्दे, माधुर्य, आत्मीयता और प्रेम से परिपूर्ण जिस मिट्टी से बने थे, वैसे लोग अब देखने को नहीं मिलते।
लोक जीवन से लेकर राजनीति के हर क्षेत्र पर उनकी गहरी पकड़ थी। आदिवासी क्षेत्रों के विकास और आदिवासियों के उत्थान की दृष्टि से विभिन्न पदों पर रहते हुए भीखा भाई ने कई योजनाओं और कार्यक्रमों का क्रियान्वयन कराते हुए आदिवासियों को विकास की मुख्य धाराओं से जोड़कर उनके जीवन को खुशहाल बनाने के लिए अपना योगदान दिया।
यही वजह थी कि उन्हें जनजाति क्षेत्रों के भीष्म पितामह के रूप में जाना जाता था। भीखा भाई की पावन स्मृतियों को जिन्दा रखने के लिए सरकार ने माही की सागवाड़ा नहर का नामकरण भीखा भाई के नाम पर करने के साथ ही कॉलेज एवं अन्य संस्थाओं को भी भीखा भाई के नाम से जोड़ा।
हर दिल अजीज भीखा भाई के बारे में जितना कहा जाए, वह कम है। समाजसेवा और राजनीति से से लेकर समाज-जीवन के हर क्षेत्र में अपना रुतबा दिखाने वाले शिखर पुरुष भीखा भाई भील का निधन 5 जून 2002 को उदयपुर में हो गया। भीखा भाई आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका व्यक्तित्व और कर्मयोग सदियों तक गूंजता रहेगा।
महामना भीखा भाई की पुण्य तिथि पर भावभीनी श्रद्धान्जलि...।