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दांडी मार्च, एक यात्रा जो बन गई बदलाव की गाथा

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08 Mar 20
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दांडी मार्च, एक यात्रा जो बन गई बदलाव की गाथा

 

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा

लेखक एवं पत्रकार

 

भारत के इतिहास में महात्मा गांधी की एक यात्रा ने बदलाव की ऐसी बयार चलाई की उसने पूरे भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध जन संघर्ष का व्यापक आंदोलन खड़ा कर दिया। उन्होंने इस यात्रा से बता दिया कि किस प्रकार  किसी को झुकने या मजबूर करने के लिए जन आंदोलन खड़ा किया जा सकता है। यह वकिया  भारत में अंग्रेजों के शासन के समय का है  12 मार्च 1930 को गांधी जी ने नमक विरोधी कानून के विरोध में दांडी मार्च अर्थात दांडी यात्रा निकाली थी। यह यात्रा अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गांव दांडी तक 78 व्यक्तियों के साथ पैदल निकाली गई। इसे नमक मार्च और दांडी सत्याग्रह भी कहा जाता है। यह अंग्रेजों द्वारा लागू नमक कानून के विरुद्ध सविनय कानून को भंग करने का कार्यक्रम था। अंग्रेजी शासन में नमक का उत्पादन और विक्रय करने पर भारी कर लगा दिया था। नमक जीवन के लिए आवश्यक वस्तु होने से इस कर को हटाने के लिये गांधी जी ने यह सत्याग्रह चलाया।।              दांडी तक की 241 मील की दूरी तय करने में उन्हें 24 दिन लगे और इस यात्रा में पूरे रास्ते हजारों लोग जुड़ते चले गए। गांधी जी ने 6 अप्रैल, 1930 को गांधी ने कच्छ भूमि में समुद्रतल से एक मुट्ठी नमक उठाया था। इस मुट्ठीभर नमक से गांधी ने अंग्रेजी हुकूमत को जितना सशक्त संदेश दिया था, उतना मजबूत संदेश शायद शब्दों से नहीं दिया जा सकता था। कानून भंग करने के बाद सत्याग्रहियों ने अंग्रेजों की लाठियाँ खाई थी परंतु पीछे नहीं मुड़े थे। आंदोलन में  सी .राजगोपालचारी,पंडित नहेरू, आदि  नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। ये आंदोलन पूरे एक साल तक चला और 1931 को गांधी-इर्विन के बीच हुए समझौते के साथ खत्म हो गया। इसी आन्दोलन से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई थी। इस आन्दोलन नें संपूर्ण देश में अंग्रेजों के खिलाफ व्यापक जनसंघर्ष को जन्म दिया था। 

           इस मार्च में गांधी के साथ आने वालों में सभी वर्गों और जातियों के लोग शामिल थे।ब्राह्मण और हरिजनों ने एक साथ मार्च किया। गांधी को 5 मई को गिरफ्तार किया गया था लेकिन इससे पहले वे न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक लहर पैदा कर चुके थे। उस समय में टाइम पत्रिका ने अपने 31 मार्च के अंक पर गांधीजी की तस्वीर छापी थी । हालांकि इतिहास की अधिकांश किताबों में इस बड़ी घटना के बारे में बताया गया है और इतिहासकारों ने इसका बहुत विस्तार से अध्ययन किया है । 

स्मारक

          आज की युवा पीढ़ी के दिमाग से यह घटना और इसके महत्व को बताने के लिए 90 साल पहले हुई उस ऐतिहासिक यात्रा के केंद्र पर उन स्मृतियों को सहेजने के लिए एक स्मारक बनाया गया है। राष्ट्रीय नमक सत्याग्रह स्मारक (नेशनल सॉल्ट सत्याग्रह मेमोरियल) में गांधीजी की अगुआई में मूलरूप से यात्रा की शुरुआत करने वाले 80 दांडी यात्रियों की सिलिकॉन कांस्य प्रतिमाओं, यात्रा के 24 दिनों की संख्या के प्रतीक के रूप में यात्रा की कथाएं कहते 24 भित्तिचित्रों और कई अन्य गतिविधियों से उस महान आंदोलन की कथा को जीवंत करने के सार्थक प्रयास हुए हैं। 

        यह स्मारक भारत के भीतर नमक बनाने और उसकी बिक्री पर ब्रिटिश सरकार की मनमानी कर वसूली के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन को गरिमामय तरीके से याद करता है।  यहां पत्थर की दीवार पर सोमलाल प्रागजीभाई पटेल, आनंद हिंगोरानी और हरिभाई मोहानी के अलावा और भी बहुत-से ऐसे दांडी यात्रियों के नाम खुदे हैं जो गांधी के साथ इस यात्रा के आरंभ से अंत तक बने रहे। प्रत्येक मूर्ति पर मूर्तिकार का नाम भी अंकित है। इस समूह में सबसे युवा 16 वर्षीय विपुल ठक्कर का नाम भी नजरआता है।

          स्मारक में दांडीयात्रियों की सिलिकॉन ब्रांज की मूर्तियां 42 मूर्तिकारों ने बनाई हैं जिनमें अलग-अलग देशों के नौ मूर्तिकार शामिल थे। भित्तिचित्र और सिलिकॉन कांस्य का ढांचा लगभग दो दर्जन कलाकारों ने तैयार किया था। 

           मेमोरियल में गांधी की पांच मीटर ऊंची एक प्रतिमा है जिसके हाथ में छड़ी है और उनकी शॉल की प्रत्येक तह को बड़े कलात्मक रूप में प्रदर्शित किया गया है जिसे मुंबई के प्रसिद्ध मूर्तिकार सदाशिव साठे ने बनाई  जो फिलहाल नई दिल्ली के टाउन हॉल उद्यान में लगी है। इस मूर्ति में गांधी के हाथों की छड़ी से लेकर क्रीज और फोल्ड तक बेहद प्रभावी हैं। एक अन्य मूर्ति में स्टील के दो हाथ बने हैं। जमीन से 40 मीटर ऊपर उन हाथों ने 2.5 टन का क्रिस्टल थाम रखा है जो नमक का प्रतीक है। स्मारक के भीतर औद्योगिक हीटरों से लैस नमक के 14 बर्तन लगे हैं जिसमें कोई भी समुद्र का पानी डालकर, उससे केवल एक मिनट में नमक बना सकता है। करीब 15 एकड़ के स्मारक के बीचोबीच 14,000 वर्ग मीटर में बनी खारे पानी की एक कृत्रिम झील उस समुद्रतट का प्रतीक है जहां गांधी ने अपना विरोध दर्ज कराया था। शोधकर्ताओं के लिए एक पुस्तकालय और गेस्ट हाउस बनाया गया है । भित्ति चित्रकारों ने सत्याग्रह से जुड़ी कहानियों पर गहराई से शोध कर उनसे जुड़ी छोटी-छोटी कहानियों पर चित्र बनाये हैं। नमक सत्याग्रह कैसे एक ऐतिहासिक घटना बन गया, भित्तिचित्र दर्शकों को समझने के लिए अवसर प्रदान करते हैं।

             स्मारक में 41 सौर पेड़ लगाए गये हैं , प्रत्येक पेड़ में पत्तों के आकार वाले 12 सौर पैनल फिट किए गए हैं जो ऊर्जा के स्रोत के रूप में सौर ऊर्जा के लिए गांधी की रुचि का प्रतीक हैं। इन से 182 किलोवाट बिजली का उत्पादन होता हैं। यह स्मारक वास्तव में महान घटना के महान व्यक्तित्व को श्रद्धाजंलि है। 

          महात्मा गांधीजी की 71वीं पुण्यतिथि पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्मारक का उद्घाटन किया था। उद्घाटन के दौरान उन्होंने ने लोगों और गुजरात पर्यटन से अपील की कि वे यह सुनिश्चित करें कि प्रतिदिन कम से कम 25 स्कूलों के छात्र यहां आएं। प्रधानमंत्री ने कहा, ''आप सभी को अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को स्वतंत्रता आंदोलन के इस तीर्थस्थल की यात्रा करानी होगी। यह स्थान पर्यटन का एक बड़ा केंद्र बनने जा रहा है। प्रधानमंत्री ने दांडी मार्च के दिन दो वर्ष पूर्व कहा था " जब एक मुट्ठी नमक ने अंग्रेजी साम्राज्य को हिला दिया था"। महात्मा गांघी जी की 150 वीं जयंती पर मनाये जा रहे कार्यक्रमों की श्रृंखला में इस वर्ष दांडी यात्रा के संदर्भ में कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं।


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