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उदयपुर स्थापना दिवस के त्रिदिवसीय कार्यक्रम के तहत प्रथम दिन संगोष्ठी का आयोजन 

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09 May 24
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उदयपुर स्थापना दिवस के त्रिदिवसीय कार्यक्रम के तहत प्रथम दिन संगोष्ठी का आयोजन 

*बिन पानी, पेड़ और पहाड़ उदयपुर हो सुन - डॉ पी सी जैन*

*उदयपुर की झीलें ही शहर का सौंदर्य भी है और विरासत भी - पी सी जैन*

*झीलें शहर की अर्थव्यवस्था, संस्कृति और धर्म की धुरी है, जिसे सहजना आवश्यक है - प्रो उमाशंकर शर्मा*

*बदलते शहर की विरासत और प्रकृति को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए दस्तावेजीकरण आवश्यक है - कर्नल प्रो एस. एस. सारंगदेवोत*

 

जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ एवं लोकजन सेवा संस्थान द्वारा सयुक्त रूप से उदयपुर स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर उदयपुर की प्राकृतिक सौंदर्यता एवं विरासत विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. मनीष श्रीमाली ने बताया की लोकजन सेवा संस्था पिछले 20 वर्षों से उदयपुर स्थापना दिवस मना रही है। इसी क्रम में उदयपुर की प्रकृति एवं विरासत के संरक्षण हेतु जागरूकता कार्यक्रम का अयोजन किया गया। संस्था एवं उसके कार्यों का का परिचय महासचीव जयकिशन चौबे ने दिया। उक्त कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. पी सी जी जैन, विशिस्ट अथिति पूर्व कुलपति एम पी यू टी प्रो उमाशंकर जी शर्मा एवम् प्रो मिश्रीलाल मंडोत, कार्यक्रम अध्यक्ष कुलपति कर्नल प्रो एस एस सारंगदेवोत शामिल हुए। अतिथियों का शब्दों से स्वागत प्रो विमल शर्मा ने किया।

प्रो मिश्रीलाल मंडोत ने कहा की उदयपुर की स्थापना अराजकता, अव्यस्था के दौर में हुई थी किन्तु यह विश्व में अपनी पहचान विरासत और प्रकृति सौंदर्य की वजह से बनाये हुए है। इस पहचान को बनाये रखना आज हम सभी के समक्ष चुनौती है। यहां की पहाड़ियों ने ही महाराणा उदय सिंह एवं प्रताप जैसे गुरिल्ला यौद्ध को बनाया 

डॉ. पी सी जैन ने अपने बचपन को याद करते हुए कहा की राणा प्रताप स्टेशन के पास एक बहुत सुंदर बाग था, बागों की हरियाली एवं विविध तितलीयो एवं आयड नदी की मछलियों के साथ खेलता था। किंतु वह वेनिस अब नाले में बदल गया। 

उदयपुर को जिलों की नगरी कहा जाता है, हमारे पास आठ जिले हैं और एक नदी आयड भी है। यह हमारा सौंदर्य भी है और हमारी विरासत भी है। पहले यह प्राकृतिक रूप से भरा करती थी आज रखने के लिए हमें उधार का पानी लाना पड़ रहा है ताकि हमारी यह जिले भरी रहे।। बेंगलुरु मे भी उधर का पानी कावेरी नदी से आता था। वहां के वासियों ने भी अपना भूमि जल निकाल निकाल कर उसे एक *निर्जल नगरी* बना दिया। आज वह उसका परिणाम देख रहे हैं कल कहीं जिस गति से हमारा हर घर भूमि जल निकाल रहा है और बेंगलुरु की तरह उसका पुनर्बरण नहीं कर रहा है रेनवाटर हार्वेस्टिंग नहीं कर रहा है परिणाम आपके सामने। है। अगर हम भी हमारे सौंदर्य अर्थात पानी को बचाए रखना चाहते हैं जो हमारी विरासत भी है तो हमें वर्षा जल को संचित करना होगा भूमि जल को  बढा ते रहना होगा ताकि हमारी यह जिले सदैव भरी रहे और हमारी सुंदरता बनी रहे। 

झील हितेषी मंच के हाजी मोहम्मद ने कहा की भी झीलों को शुद्ध और स्वच्छ रखने का प्रण शहर के प्रत्येक नागरिक को रखना होगा तभी यह झीलें सुरक्षित रह पायेगी। 

पूर्व कुलपति उमाशंकर जी बताया की उदयपुर शहर का निर्माण दूरगामी दृष्टि के तहत किया गया। आज यह शहर नैसर्गिक सुंदरता, सांस्कृतिक वैभव और ऐतिहासिक विरासत के लिए संपूर्ण विश्व में जाना जाता है। शहर की झीलें तो यहां के अर्थतंत्र की धुरी है। झीलों के किनारे बने घाट आज भी धर्म और संस्कृती के अहम केन्द्र है। झीलों को जोड़ने की योजना जो महाराणा ने बनाई वह आज भी अनुकरणीय योग्य है।

विश्वविधालय के के. के. कुमावत ने बताया की अध्यक्ष उदबोधन में कर्नल प्रो एस एस सारंगदेवोत ने कहा की तेजी से होते आधिनिकरण के दौर में शहर अपना प्राचीन मूल स्वरूप खो रहा है। जिसमें हमारी विरासत समाप्त हो रही है। विरासत के प्रति संक्षरण आज हमारा नागरिक कर्तव्य है। शहर को आने वाले समय में भी संसार का सबसे सुंदर शहर बनाए रखना है तो जल जमीन और पहाड़ को बनाएं रखना जरूरी है। 

कार्यक्रम का संचालन डॉ. कुलशेखर जी व्यास ने किया, कार्यक्रम में प्रो प्रदीप जी त्रिखा, छगन लाला बोहरा, लक्ष्मण जी कर्णावत, गणेश नागदा, श्री रत्न मोहता, इंद्र सिंह राणावत, उग्र सेन राव, मनोहर लाल मुंदड़ा, नारायण पालीवाल, सोयब, मनोहर जी पुरोहित, गोविंद ओड आदि उपस्थित थे।


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