उदयपुर । श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ स्थली आयड़ तीर्थ पर वर्षावास कर रहे आचार्य मृदुरत्नसागर सूरिश्वर जी म.सा. ने बुधवार को धर्मसभा में कहा कि जो सादगी में विश्वास रखते हैं वे कभी भी अपने अहं की पुष्टि के लिए किसी भी तरह का दिखावा नहीं करते हैं। उनकी हर क्रिया सादगी की परिचायक होती है। विलासिता और वैभव प्रदर्शन का त्याग ही सादगी है। खान-पान, वेश-भूषा, रहन-सहन सारे क्रियाकलाप सादगी से ओतप्रोत रहते हैं। सादगी का जीवन सभी के लिए अनुकरणीय होता है। अहं, दंभ, दिखावा और फिजूलखर्ची ये सारे दोष उन्हीं में पाये जाते हैं, जिनमें अपने वैभव का प्रदर्शन करने का भाव होता है। भाव हिंसा इसी से बढ़ती है। हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है। यह वैर वृद्धि का ही कारण बनती है। हर व्यक्ति को अहिंसा में विश्वास रखना चाहिए। सादगी जहाँ अहिंसा को बढ़ाती है, वहाँ व्यक्ति को नैतिक भी बनाती है। उसका आध्यात्मिक पक्ष भी मजबूत होता है। सादगी से जीवन जीने वाले अपने में कोई फलासक्ति नहीं रखते वे वर्तमानजीवी होते हैं। महासभा के मंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आचार्य श्री की निश्रा में अष्टप्रतिहार्य तप प्रारम्भ हुआ। आज अष्टप्रतिहार्य तप के तपस्वियों एवं एकासना के लाभार्थी गजेंद्र खड़ग सिंह जी हिरण परिवार रहा।