उदयपुर। एक युवती के पिछले तीन साल से पूरे शरीर पर फफोले हो रहे थे और उसके फूटने से पूरे शरीर पर घाव हो गए थे। यहां तक युवती के सिर के बाल भी टूटकर गिर गए थे। बेडवास स्थित जीबीएच जनरल हॉस्पीटल में इस युवती का करीब डेढ महीने उपचार के बाद बीमारी से निजात मिल गई। युवती का यह उपचार पूरी तरह निःशुल्क किया गया।
ग्रुप डायरेक्टर डॉ. आनंद झा ने बताया कि तीस वर्षीय युवती को परिजन करीब डेढ महीने पहुंचे जीबीएच जनरल हॉस्पीटल के चर्म रोग विभाग में लेकर पहुंचे थे। युवती के शरीर पर पानी के फफोले हो रहे थे और उसके फूटने से जगह-जगह घाव हुए थे। यहां चर्म रोग विशेषज्ञ डॉ. अनुज कोठारी और सीनियर रेजीडेंट डॉ. सिमरन सिंह औजला ने पाया कि युवती के मुंह और गुप्तांग में भी छाले हो रहे थे और वहां भी घाव हो रहे थे। युवती का परिजनों ने सरकारी व निजी अस्पतालों में काफी उपचार करा दिया था, लेकिन कोई फर्क नहीं पड रहा था। फफोलो और घाव के कारण जगह जगह इंफेक्शन हो रहा था। अब तक हुए इलाज को देखने के बाद इसके इलाज में कैंसर में काम आने वाली दवा का उपयोग तय किया गया। इसके लिए जीबीएच मेमोरियल कैंसर हॉस्पीटल के मेडिकल ऑकोलॉजिस्ट डॉ. मनोज यू महाजन से परामर्श कर मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के इंजेक्शन की डोज से उपचार की रूपरेखा तय कर दो डोज इंजेक्शन दिया गया। करीब डेढ महीने चले इलाज के बाद अब मरीज पूरी तरह चर्म रोग से मुक्त हो गया है।
चर्म रोग विशेषज्ञ डॉ. अनुज कोठारी के अनुसार पेम्फीगस वल्गैरिस नामक यह रोग एक लाख लोगों से बमुश्किल तीन से पांच लोगों में होता है। इसमें व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता विपरीत काम करने लगती है और त्वचा की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाती और त्वचा संबंधित रोग इस तरह फैलता है। खूजली, फफोलो, दर्द और घाव के कारण व्यक्ति परेशान हो जाता है। कई बार तो इलाज के अभाव में रोगी की बीमारी लंबे समय तक चलती रहती है और इसके इलाज के लिए चिकित्सक स्टूराइड्स या इम्यूनोसप्रेसेंट का भी उपयोग करते है। कई बार मरीज की मौत भी हो जाती है। इस मरीज के उपचार में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के इंजेक्शन का उपयोग करना तय किया, लेकिन उसका उपयोग कैंसर रोग विशेषज्ञ और कुशल नर्सिंग टीम की निगरानी में ही किया गया और मरीज की हर दूसरे दिन पूरे शरीर पर करीब डेढ से दो घंटे लगकर ड्रेसिंग की गई।
डॉ. आनंद झा