उदयपुर । पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित मासिक नाट्य संध्या ’’रंगशाला‘‘ म नई दिल्ली के रंगकर्मियों द्वारा नाटक ’’गोरखधंधा‘‘ का मंचन किया गया जिसमें पैसे के पीछे भागते इंसान की फितरत को रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया गया।
शिल्पग्राम के दर्पण सभागार में खेले गये नाटक ’’गोरखधंधा‘‘ का लेखन जयप्रकाश द्वारा किया गया तथा निर्देशन जे.पी.सिंह द्वारा किया गया। नाटक ’’गोरखधंधा‘‘ का ताना-बूना कुछ ऐसा था कि जब पैसा ही धर्म बन जाए, पैसा ही कर्म बन जाए तो सारे सम्बन्ध, सारी नैतिकता अर्थहीन हो जाते हैं। जब पैसा कमाना ही एक मात्र उद्देश्य हो तो इंसान का खुराफाती दिमाग कोई न कोई तिकडम करता रहता है। कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जो रेत से भी तेल निकाल लेते हैं। इस नाटक का मुख्य किरदार ऐसा ही एक व्यक्ति है, जो लोगों से पैसा एंेठने के लिए सारे रास्ते अपनाता है। देखने और सुनने से लगता है कि वो मदद कर रहा है, परोपकार कर रहा है, दूसरों का भला कर रहा है। दरअसल वो भलाई की आड में अपना भला कर रहा होता है। उसका कहना है कि वो बेईमानी भी ईमानदारी से करता है। इस बेईमानी के धंधे में उसको झूठ पर झूठ बोलना पडता है और अन्त में यही झूठ उसके गले की हड्डी बन जाता है, जो न निगलते बनता है और न हि उगलते बनता है। कुल मिलाकर गोरख्ाधंधा सत्य कथ्यों पर आधारित एक असत्य हास्य नाटक है। इसके संवाद, घटनाएं गुदगुदाती ही नहीं बल्कि हमें हँसने के लिए विवश करती हैं।
नाटक दर्शकों के मनोरंजन के साथ-साथ यथार्थ के करीब ले जाने वाला रहा। कलाकारों में सज्जन के किरदार में राघवेन्द्र तिवारी व गुल्लू के चरित्र में सुशील शर्मा का अभिनय दर्शकों को रास आया वहीं गीता की भूमिका में तृप्ति जौहरी, पुलिसवाले नटवर के किरदार में प्रिंस राजपूत व भास्कर, कृष्ण कुमार, गुप्ता जी के किरदार में अरुण सोदे का अभिनय दर्शकों द्वारा सराहा गया।