स्वयं पर विजय पाना है तो इन्द्रियों को वश में करें ः आचार्यश्री विमदसागरजी
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18 Oct 16
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उदयपुर । ज्ञान और वैराज्य ऐसी शक्ति है जिसके माध्यम से साधु सब कुछ प्राप्त कर लेता है और वो अपने आपको जीत लेता है, उसमें सब कुछ प्राप्त करने की शक्ति आ जाती है। साधु सबसे पहले स्वयं पर विजय पाता है तब ही उसमें साधुत्व आता है। सबसे बडी बात अपने शरीर की पांचों इन्द्रियों को वश में करना। यह आम सांसारिक के वश की बात नहीं है। जो सांसारी इन पांचों इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर लेता है वह स्वयं साधु कहलाता है। लेकिन साधु ज्ञान का भण्डार होत है, उसमें साधना की शक्ति होती है, त्याग और तपस्या की अथाह क्षमता होती है और इन्द्रियों को वश में करने की कला होती है तब ही जाकर वह स्वयं पर विजय प्राप्त करता है और साधु कहलाता है। जिसने मन को वश में कर लिया, जिसने इन्द्रियों को वश में कर लिया समझो उसने स्वयं तो क्या दुनिया पर विजय प्राप्त कर ली और परमात्मा के करीब पहुंच गया। उक्त विचार आचार्यश्री विमदसागरजी महाराज ने आदिनाथ भवन सेक्टर 11 में आयोजित प्रातःकालीन धर्मसभा में उपस्थित श्रावकों के समक्ष व्यक्त किये।
आचार्यश्री ने कहा कि संसार में मनुष्य अपनी इन्द्रियों के वशीभूत होकर कई ऐसे पाप कर्म कर बैठता है जिसका निदान इस जनम में करना नामुमकिन होता है। उसे पाप कर्मों की सजा भोगनी ही होती है और उसके लए मोक्ष के द्वार भी बन्द हो जाते हैं। अगर मनुष्य को मोक्ष की कामना है और परमात्मा के करीब रहने की इच्छा है तो उसे स्वयं पर विजय प्राप्त करनी होगी और स्वयं पर विजय प्राप्त करने का एक ही रास्ता है अपनी इन्द्रिय पर वश में कर उन पर विजय प्राप्त करना। हालांकि यह कार्य कठिन ही नहीं कठिनतम है लेकिन साधना, त्याग, तपस्या करने से यह मार्ग भी आसान हो जाता है।
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