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देश के कृषि वैज्ञानिकों का २१ दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण

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06 Sep 19
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देश के कृषि वैज्ञानिकों का २१ दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण

उदयपुर । महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के तत्वाधान में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित जैविक खेती पर अग्रिम संकाय प्रशिक्षण केन्द्र के अर्न्तगत २१ दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम ’’जैविक कृषि का उत्पादकता, आर्थिक लाभ तथा पर्यावरणीय पहलुओं के आँकलन’’ पर देश के कृषि वैज्ञानिकों का २१ दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण का आयोजन अनुसंधान निदेशालय, उदयपुर द्वारा ०५ सितम्बर से २५ सितम्बर २०१९ तक किया जा रहा है। डॉ. एस.के. शर्मा निदेशक, जैविक खेती अग्रवर्ती संकाय प्रशिक्षण केंद्र, उदयपुर ने बताया कि इस २१ दिवसीय प्रशिक्षण में देश के ९ राज्यों (गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उडीसा, हरियाणा, दिल्ली एवं राजस्थान) की १६ विभिन्न संस्थानों के २५ वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं।

इस प्रशिक्षण के उद्घाटन सत्र में डॉ. नरेन्द्र सिंह राठौड, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने कहा कि जैविक कृषि में उत्पादकता तथा पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ लाभ का कारक सबसे महत्वपूर्ण है। अतः जीरो पेस्टीसाइड फूड, ग्रीन फूड, प्राकृतिक फूड, स्लो फूड आदि के नाम से बाजार में जैविक खाद्य पदार्थ बेचे जा रहे हैं। इनकी लोकप्रियता समाज में बढ रही है। अतः विश्व के १८१ देशों में जैविक कृषि की जा रही है। करीब ३० लाख जैविक किसान प्रमाणित जैविक खेती कर रहे हैं। जैविक खेती में लाभ तभी संभव है जब बाजार में कृषि उत्पाद का प्रीमियम मूल्य प्राप्त होगा। इसकी दर २० से १०० प्रतिशत हो सकती है।

उन्होंने बताया कि आज विश्व में कुल खेती के १.४ प्रतिशत भाग पर जैविक कृषि की जा रही है, लेकिन हमारे देश में कुल खेती के १ प्रतिशत क्षेत्र पर ही जैविक खेती की जा रही है। चीन भारत से ज्यादा जैविक कृषि कर रहा है। अतः किसानों तथा वैज्ञानिकों तक इस खेती के बारे में सटीक जानकारी पहुँचाना आवष्यक है। हमें किसानों को नवाचारों से जोडना होगा तथा मांग एवं आपूर्ति के बारे में अवगत कराना होगा। उन्होंने जैविक खेती में प्रमाणीकरण एवं मार्केट की समस्या के बारे में बताया।

मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए डॉ. शिव सिंह सारंगदेवत, कुलपति, जर्नादन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर ने बताया कि जलवायु परिवर्तन तथा प्रदूषण की समस्या ने वर्तमान कृषि पद्धति को बदलने को मजबूर कर दिया है। मानव स्वास्थ्य, मृदा स्वास्थ्य तथा जल स्वास्थ्य सम्पूर्ण मानव जाति तथा जैव प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण है। अतः उन्हें बचाने के लिए जैविक खेती के सिद्धान्तों को अपनाना हागा। मार्केट आधारित कृषि के साथ प्रकृति आधारित कृषि को समाज तथा जीवन पद्धति से जोडना होगा। सदियों से हमारे देश में जैविक कृषि की पद्धतियाँ प्रचलित है, लेकिन अब इनको नये जमाने के अनुसार आधुनिक विज्ञान से जोडना होगा।

अनुंधान निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष, डॉ. ए.के. मेहता ने प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए बताया कि स्वास्थ्य के प्रति सजगता के कारण पेस्टीसाइड एवं हमारे देश एवं विदेश में लोगों द्वारा प्रदूषण रहित खाद्य उत्पादों का ७-८ प्रतिशत जैविक खाद्य हैं। हमारे देश में कुल कृषित क्षेत्र का मात्र १ प्रतिशत क्षैत्र जैविक कृषि के तहत है। राजस्थान में जैविक कृषि के तहत लगभग २.११ लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल है। राजस्थान में जैविक कृषि को बढावा देने के लिए २०१७ में जैविक कृषि नीति घोषित की गई।

२१ दिवसीय प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम निदेशक एवं जैविक खेती केन्द्र के निदेशक डॉ. एस. के. शर्मा ने बताया कि इस प्रशिक्षण का मुख्य ध्येय प्रशिक्षाणार्थी वैज्ञानिकों को जैविक कृषि स्टेण्डर्ड, मानक एवं प्रमाणीकरण के बारे में विश्व स्तर पर नवीनतम बदलाव, जैविक कृषि से लाभ-लागत का आंकलन, देशज जैविक कृषि ज्ञान पर नवीन प्रयोग जैविक खाद्यों का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव, जीरो बजट प्राकृतिक कृषि, जैविक फसलों में पोषण प्रबंधन, कीट एवं रोग नियंत्रण तथा खरपतवार प्रबंधन की तकनीकों, जैविक फार्म विकसित करना, जैविक उत्पादकों के अनुभव तथा जैविक कृषि में व्यवसाय के अवसरों पर मुख्यतया चर्चा, जैविक किसानों तथा जैविक इकाईयों का भ्रमण एवं प्रायोगिक कार्य करवाये जायेगें। इस केन्द्र की जैविक खेती इकाई पर वैज्ञानिकों को प्रायौगिक प्रशिक्षण दिये जायगे।

    इस कार्यक्रम में वैज्ञानिकों द्वारा जैविक कीटनाशक, मृदा स्वास्थ्य, हरी खाद तथा वर्मीकम्पोस्ट पर लिखित चार तकनीकी फोल्डर्स का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम का संचालन पाठ्यक्रम समन्वयक, डॉ. देवेन्द्र जैन ने किया एवं धन्यवाद पाठ्यक्रम समन्वयक, डॉ. बी. जी. छीपा द्वारा दिया गया।


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