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एक बार फिर सबरीमाला में आस्थाओं की जीत : विहिप

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18 Oct 18
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एक बार फिर सबरीमाला में आस्थाओं की जीत : विहिप   नई दिल्ली| सबरीमाला में अय्यप्पा भगवान के भक्तों पर जिस तरह की बर्बरता और गुंडागर्दी केरल पुलिस द्वारा की गई उससे ऐसा लग रहा था मानो मार्क्सवादी गुंडे खाकी पहनकर हिंदुओं की आस्था पर प्रहार करने आ गए हो। विश्व हिंदू परिषद के संयुक्त महामंत्री डॉ सुरेंद्र कुमार जैन ने शांतिपूर्ण ढंग से सत्संग कर रहे भक्तों पर सीपीएम सरकार द्वारा किए गए अत्याचारों की निंदा करते हुए उपरोक्त टिप्पणी की। विजयन की पुलिस ने न केवल लाठीचार्ज और पत्थर बाजी की अपितु भक्तों के वाहनों को तोड़ कर उनमें रखे समान को भी लूटा। प्रशासन की सब प्रकार की बर्बरता के बावजूद वह भक्तों की आस्था नहीं कुचल सकी। आस्था की विजय हुई तानाशाही की पराजय हुई। हिंदुओं की आस्था को हमेशा से कुचलने का प्रयास करने वाली सीपीएम सरकार ने वहां धारा 144 लगाकर हिंदू आस्था का मजाक उड़ाने वाली कुछ महिलाओं का मंदिर में जबरन प्रवेश कराने का षड्यंत्र किया है।
डॉ जैन ने चेतावनी देते हुए कहा कि अपने षड्यंत्र में वे सफल नहीं हो पाएंगे। सरकारी दमन व षड्यंत्र के विरोध में सबरीमाला कर्म समिति ने आज 12 घंटे की राज्य व्यापी हड़ताल का आह्वान किया है जिसे सभी समाजिक व धार्मिक संगठनों ने समर्थन दिया है।
डॉ जैन ने कहा कि सबरीमाला में आज जिस तरह की परिस्थिति बनी है उसके लिए केवल सीपीएम सरकार व उनके द्वारा पोषित हिंदू फोबिया से ग्रस्त कुछ तथा-कथित मानवाधिकारवादी ही जिम्मेदार हैं। महिलाओं को अधिकार दिलाने की आड़ में ये तत्व वास्तव में हिंदू आस्था को ही कुचलने का प्रयास करते रहे हैं। इन तत्वों ने कभी पादरी द्वारा बलात्कार से पीड़ित नन के लिए आवाज नहीं उठाई अपितु, पीड़ित नन को वेश्या कहने का दुस्साहस किया है। मुस्लिम महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश पर भी उनकी जवान को लकवा मार जाता है। महिला अधिकारों की रक्षा में सीपीएम का रिकार्ड हमेशा संदिग्ध रहा है। उनके पॉलिट ब्यूरो में किसी महिला को तभी प्रवेश मिला है जब उनके पति पार्टी के महासचिव बने हैं। बंगाल के नंदीग्राम और सिंगुर में उन्होंने महिलाओं के ऊपर जो अत्याचार किए हैं, उससे उनका चरित्र समझ में आता है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय में प्रवेश की मांग करने वाला कोई भी आस्थावान नहीं है। अपितु अब इस तरह की महिलाएं सामने आ रही हैं जो अपने पुरुष मित्र के साथ मंदिर में जाकर भगवान के सामने यौन संबंध बनाने की धमकी देती है और वहां कंडोम की दुकान खोलने की बात करती है।
डॉ जैन ने यह भी कहा कि हिंदू कभी महिला विरोधी नहीं रहा है। परंतु हर मंदिर की कुछ परंपराएं रहती है जिनका सम्मान प्रत्येक को करना चाहिए। इन्हीं विविध परम्पराओं के कारण अनेकता में एकता भारत की विशेषता बन गई। ऐसा लगता है ये सब लोग मिलकर भारत की आत्मा पर ही प्रहार करना चाहते हैं। भारत में ऐसे कई मंदिर है जहां पुरुषों का प्रवेश वर्जित है। क्या ये लोग उन परंपराओं को पुरुष विरोधी कहेंगे? हिंदू फोबिया से ग्रस्त कुछ कथित बुद्धिजीवियों ने अय्यप्पा के भक्तों के लिए गुंडे शब्द का प्रयोग किया है। विहिप इन अपशब्दों के लिए उनकी निंदा करती है। यह आंदोलन पूर्ण रुप से अहिंसात्मक रहा है। लाखों भक्त सड़क पर उतरे हैं परंतु, हिंसा की बात तो छोडो, कभी किसी के लिए अपशब्द का भी प्रयोग नहीं किया गया। उनके इस शांतिपूर्ण आंदोलन की प्रशंसा करने की जगह अपशब्दों का प्रयोग कर वे अपनी मानसिकता को स्पष्ट कर रहे हैं। उन को समझना चाहिए कि हिंदू हमेशा परिवर्तनशील रहा है। क्या दक्षिण के मंदिरों में दलित पुजारियों को स्वीकार नहीं किया गया? परन्तु यह परिवर्तन इन आस्थावानों के अंदर से ही आना चाहिए। कोई भी बाह्य तत्व इनको थोप नहीं सकता।
विहिप के संयुक्त महामंत्री ने कहा कि सबरीमाला की यह परंपरा किसी को अपमानित नहीं करती, कष्ट नहीं देती। यह परंपरा पूर्ण रुप से संविधान की धारा 25 के अंतर्गत ही है। इसलिए यह लड़ाई संविधान की दायरे में रहकर संविधान की भावना की रक्षा करने के लिए ही है। तीन तलाक के कानून का विरोध करने वाले किस मुंह से इस आंदोलन का विरोध कर सकते हैं?
सीपीएम सरकार ने देवसवोम बोर्ड का संविधान इस प्रकार बदल दिया है कि वे हिंदू मंदिरों को गैर हिंदुओं के हवाले कर सकें। विश्व हिंदू परिषद उनके इस संविधान विरोधी और हिंदू विरोधी षड्यंत्र की कठोरतम शब्दों में निंदा करते हुए चेतावनी देती है कि वह हिंदुओं को कुचलने का अपना अपवित्र षड्यंत्र बंद करे। वे केरल तक सिमट गए हैं। हिंदुओं के विरुद्ध लड़ाई में वहां से भी साफ हो जाएंगे। उन्हें अपनी गलती स्वीकार कर के पुनर्विचार याचिका डालनी चाहिए। उन्हें हिंदू आस्था की प्रबलता ध्यान में आ गई होगी।
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