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कथा कथन पर बाल गोष्ठी

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30 Oct 25
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कथा कथन पर बाल गोष्ठी

उदयपुर। अखिल भारतीय साहित्य परिषद उदयपुर द्वारा ज्ञान पंचमी के अवसर पर  पहाड़ी वाले हनुमान मंदिर सेक्टर चौदह परिसर में दस से सौलह वर्ष तक की आयु के बालक बालिकाओं की कथा कथन गोष्ठी का आयोजन किया गया।
सवीना की दीपा पंत के द्वारा सरस्वती वंदना से गोष्ठी का प्रारम्भ किया गया।
बच्चों को तीन तरह से कहानी कथन के लिए  कहा गया पहले पोस्टर देखकर दूसरा किसी महापुरुष पर तीसरा आसपास के परिवेश को देखते हुए  कल्पकता को विकसित करते हुए कहानी कहना।
बच्चों ने अवलोकन का समय लिया तत्पश्चात  स्वयं के मौलिक विचारों के आधार पर सृजित कथाओं के कथन से गोष्ठी को आगे बढ़ाया ।
पूजा ने पोस्टर देखकर एकता में बल विषय पर कथा का प्रतिपादित किया , दूसरी कहानी में वृद्धों के प्रति कर्तव्य पालन की प्रेरणा बतायी गई। रक्षिता ने केकड़े और कछुए की कथा सुनाकर सहयोग के गुण का ध्यान दिलाया।
महापुरुष वाली श्रेणी में चौथे संभागी के रूप में आयुषी की कहानी में महाराणा प्रताप का त्याग व साहस अभिव्यक्त हुआ। मयंक द्वारा पृथ्वीराज चौहान को कथामय प्रस्तुत किया,ऐसे ही चाणक्य व पन्नाधाय पर स्वयं के शब्दों में कहानी सुनाई।
परिवेश वाली श्रेणी में एक बालक द्वारा बाल हनुमान द्वारा' सूरज को फल समझने वाली कथा को' रोचक हाव भाव दिखाकर श्रोताओं को आनंदित किया
इसी बीच बाल गोष्ठी की संयोजिका साहित्य परिषद की कार्यकर्ता किरण बाला किरण द्वारा बच्चों को उत्साहवर्धन कर प्रस्तुति देने के लिए सतत प्रेरित किया जाता रहा।
 कहानी में कल्पनाशीलता के शिल्प को समझाने के लिए कोटा के प्रसिद्ध बाल साहित्य सृजक विष्णु हरिहर द्वारा कहानी कैसे लिखी जाए? घटनाएं तथा पात्रों को कैसे प्रस्तुत किया जाए ? 'सूरज टोपीवाला' कहानी सुना कर बताया ।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद के प्रदेश संगठन मंत्री विपिनचंद्र ने बताया कि कहानियों के माध्यम से संवेदना , ज्ञान और प्रेरणा आदि अनेक गुणों की प्राप्त होती है।
कुल पन्द्रह बच्चे पिचहतर मिनट में  प्रस्तुतियां सुनाकर बहुत प्रसन्न थे। हनुमान जी का आशीर्वाद व प्रसाद प्राप्त कर कहानी कथन कार्यशाला का समापन हुआ ।
किरण बाला' किरण 'ने  वर्षा और स्कूल में टेस्ट जैसी विपरीत परिस्थितियों पर भी कार्यशाला में आने हेतु सभी बच्चों का आभार जताया। इस अवसर परअखिल भारतीय साहित्य परिषद के सह संगठन मंत्री दिल्ली से आए मनोज कुमार भी उपस्थित थे ।


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