कोटा कोटा की लेखिका रेणू सिंह ' राधे ' की पुस्तक काव्य संग्रह "प्रकृति की दहलीज पर" और भीलवाड़ा की लेखिका शिखा अग्रवाल की संपादित पुस्तक शृंगार ' का विमोचन पिछले दिनों कोटा में आयोजित समरस संस्थान के एक समारोह में किया गया।
मुख्य अतिथि अहमदाबाद के मुकेश कुमार स्नेहिल रहे अध्यक्षता जितेन्द्र निर्मोही ने की तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में रामेश्वर शर्मा, डॉ. शशि जैन और भगवती प्रसाद गौतम ने पुस्तकों पर अपने विचार रखें।
बड़ी संख्या में उपस्थिति साहित्यकारों के समक्ष पुस्तकों की विवेचना करते हुए मुख्य वक्ता और समीक्षक विजय जोशी ने कहा कि मुख्य वक्ता कथाकार एवं समीक्षक विजय जोशी ने कहा कि यह संयोग ही है कि आज दोनों पुस्तकें "शृंगार एक स्वाभाविक वृत्ति " तथा "प्रकृति की दहलीज पर" लोकार्पित हुई हैं वे प्रकृति और मनुष्य के श्रृंगार की मूल भावनाओं को उकेरती हैं।
जोशी ने कहा कवयित्री एवं लेखिका शिखा अग्रवाल द्वारा सम्पादित "शृंगार एक स्वाभाविक वृत्ति " पर विजय जोशी ने कहा -"यथा शीर्षक अपने भीतर उन सभी आयामों को समाहित किए हुए है जिससे शृंगार, शृंगार रस, रूप और गंध की समस्त संवेदनाओं को महसूस किया जा सकता है। आलेखों में शृंगार शब्द की व्याख्या और उसके दैहिक और आत्मिक प्रसंगों के साथ शृंगार और फैशन के मूल भावों को विश्लेषित करते हुए इनके परम्परागत और परिवर्तित होते भावों को उल्लेखित किया है तो शृंगार बोध से ओतप्रोत कविताएँ रूप और रस की संवेदना से भरपूर हैं।" पुस्तक की स्टेच्यू शीर्षित कविता के भावों की व्याख्या करते हुए इसे शृंगार के उदात्त भावों की सार्थक रचना कहा।
मुख्य वक्ता ने कवयित्री रेणु सिंह राधे की कृति "प्रकृति की दहलीज पर" विजय जोशी ने कहा कि - " प्रकृति के श्रृंगार को बनाए और संरक्षित रखने की मूल भावना से ओतप्रोत इस कृति में जीवन जीने के लिए प्राकृति के सान्निध्य को महत्वपूर्ण तरीके से उजागर किया है। यही नहीं संग्रह की कविताओं में पंच तत्वों के अन्तर्सम्बन्धों को भी गहरे से विवेचित किया है।" उन्होंने कहा कि पुस्तक में चाँद और चाँदनी पर सात कविताएँ हैं जिनमें कवयित्री की अभिव्यक्ति परंपरागत उल्लेख से भिन्न है। विजय जोशी ने संग्रह की बादल, पानी, हवा, पेड़ , फल, फूल, रेत, नदी पर लिखी कविताओं का उल्लेख करते हुए खामोशी तथा आवारा चाँद कविताओं की व्याख्या करते हुए कहा कि - "चाँद मामा, चाचा एवं उदास की कहानी के साथ कभी आवारा बन जाता है तो वह असहनीय हो जाता है, वहीं गाँव की ख़ामोश पगडंडियाँ ऊबड़ - खाबड़ होकर भी लौटते बुढ़ापे और नवयौवना की पतली कमर एवं उसके सुकोमल गालों सी आकर्षक लगती है।"
संचालन डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने किया और समरस संस्थान जिला कोटा इकाई के अध्यक्ष राजेंद्र कुमार जैन ने आचार व्यक्त किया