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पुस्तक चर्चा अवध के वीर ( काव्य संग्रह )

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16 May 25
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पुस्तक चर्चा  अवध के वीर ( काव्य संग्रह )



पुस्तक के शीर्षक से ही आभास होता है कि इसमें अवध के राजा राम और उनके परिवार से जुड़े नायकों को आधार बना कर काव्य सृजन किया गया है। तुलसी दास द्वारा रचित रामायण जैसे खंड काव्य को 104 पृष्ठ की पुस्तक में समेट लेना आसान काम नहीं है।            अयोध्या में जब राम लाला की स्थापना हो रही थी उसे 21 दिन पूर्व राम की रामायण गाथा को लिखना शुरू कर स्थापना तक अपने संकल्प को पूरा किया। छोटी - छोटी कविताओं, दोहों, चालीसा आदि में लिखी यह पुस्तक कई मायनों में खास है। आध्यात्म भावों से आप्लावित पुस्तक बालकों, किशोरों के साथ - साथ बड़ों के लिए भी पठनीय है। 
       राम के जन्म से लेकर 14 वर्ष के लिए वनगमन और अयोध्या लौटने तक के सभी प्रमुख प्रसंगों को बहुत ही सुंदर कविताओं में पिरोया गया है। सभी प्रसंगों का काव्य लालित्य देखते ही बनता है। काव्य रचना इस प्रकार है कि लगता है सभी प्रसंग आँखों के सामने चलचित्र की तरह चल रहे हो। राम और भाइयों की बाल सुलभ अठखेलियां हैं, भाई का प्रेम है, उर्मिला की वेदना है, वन में लक्ष्मण द्वारा कुटी निर्माण से सेवा भावना है, राम के आगमन की प्रतिक्षा करती शबरी है, मृग छल से सीता हरण है, राम का सहयोगी वानरों से विदा लेकर अयोध्या लौटना, अयोध्या को सजा कर राम के स्वागत में पलकें बिछाना है और इन्हीं के बीच अन्य प्रसंगों को बहुत ही भावपूर्ण लेखनी में छुआ है, प्रस्तुत किया है। अवध के वीरों की गाथा पूर्ण होने पर आध्यात्म और अन्य भावों की भी कुछ कविताएं लेखिका की काव्य सृजनता का बोध कराती है। बच्चों को भारतीय संस्कृति से जोड़ते हुए उन्हें शिक्षित कर संस्कारवान भी बनती है।
   अयोध्या में राम लला की स्थापना पर लिखे दोहों से शुरू हुई बानगी देखिए ( पृष्ठ 15)...
राम अवध में आ गये, ले बालक नव रूप। माँ भारती हर्षाई, खुशियाँ लाई खूब ।।
शिक्षा संस्कारित भरें, रामायण हर रूप। आज बालक पड़ने दो, इसकी हल्की धूप ।।
           "बच्चा - बच्चा राम बने" कविता ( पृष्ठ 17 ) के सुंदर और संदेश परक भाव देखिए........... " मानवता के मन मंदिर में, आज अवध का धाम बने । /चारों दिशाओं में गुंजित नभ हो, ऐसा कोई काम करें। /मात-पिता की आज्ञा माने, गुरु सेवा और चितंन हो। /कलयुग में भी हर घर में अब, बच्चा बच्चा राम बने।/ भाई-भाई में प्रेम बसा हो, खरी कसौटी सभी कसा हो। /त्याग तपस्या वाले गुण, सब रग में हैं आज रसा हो। /गुरु वशिष्ठ सी शिक्षा-दीक्षा, जो अमृत का पान करे। /कलयुग में भी हर घर में अब, बच्चा - बच्चा राम बने ।"
          "राजा दशरथ के लाल भयो है" कविता में बालक राम का शब्द चित्र ( पृष्ठ 19 ) मन को छू लेता है.........."कौशल्या के राम हुए है कैकयी भरत की मैया।/ मात सुमित्रा के दो लाल हुए लक्ष्मण-शत्रुघ्न दोऊ भैया। / दो भाई तो गौर वर्ण के राम भरत दो श्याम शरीरा। /तीनों तो हैं चपल और चंचल राघव धीर वीर गंभीरा।  खेल खिलौने धनुष-बान के बँधी चारों के पैर पैजनियाँ । / देख देख कर माँ हर्षाए दशरथ जी करे अपनी छय्या। जाकर अवध में दे दो बधाई।
        " आज जनक की नगरी में" कविता में सीता स्वयंबर और धनुष तोड़ने के प्रसंग ( पृष्ठ 21) में काव्य की खूबी देखिए........ " राजा जनक जी करे अगवानी, नैनों बहता नीर / राजीव लोचन अनन्तगुणी, देखो कैसे है गंभीर /बार-बार कई प्रश्न लिये वह, करें प्रतिज्ञा घोर /दोनों हैं अति सुकुमार शरीरा, यह कैसे हैं रणधीर।/ सहज उठे राम गुरु आज्ञा से, धनुष तोड़ दिया वीर / सिया राम की राम सिया के, हो गई एक तकदीर / परशुराम का गर्व हारा है, हुआ परा अपरा का ज्ञान / अवधपुरी और जनकपुरी में, बह गई सुखद समीर।"
         " फर्ज भरत का " कविता में राम को वनवास की सुन कर माताओं की वेदना और भरत का भ्राता प्रेम का सृजन ( पृष्ठ 24,25) देखते ही बनता है......... "मात कौशल्या पत्थर हो गई, उर्मिल दीप सँजोई है। / माँ सुमित्रा के दो सहारे, ममता   भी बिखराई है। / रघुकुल की यह धर्म पताका, देखो कैसे डोल रही है। /सूर्यवंशी कुल दीपक पर, कैसी विपदा होई है। / राज सिहासन त्याग तभी वह, वनवासी बन जाता है। /  और सिंहासन रखने को, राम खड़ाऊ लाता है। / अपनी कुटिया नंदीग्राम में, आकर स्वयं बनाते हैं। / चौदह वर्ष रह कुशा पर, अपना फर्ज निभाते हैं।"
          राम जब बन में पहुंचे तो भाई लक्ष्मण ने निवास के लिए एक कुटी बनाई और भाई प्रेम और सेवा का अमूल्य संदेश दिया है " लखन "कविता में ( पृष्ठ 33 )...... " ले /सुन/राम के /वचन को /लखन आगे तैयार हो गए/ और बना दी एक/ अति मनुहारी/ राम कुटिया/ भाई सेवा/ करने/वह/ तो"
          " सीता हरण " कविता में रावण द्वारा सीता का हरण और साहसी जटायु का विलाप का सृजन यूं करती है लेखिका ( पृष्ठ 37 )..…... "रूप बदलकर साधु दशानन, आता है।/ कपटी बनकर सीता हर ले, जाता है।/ सुन विलाप जटायू साहसी, आता है। /चंद्रहास आगे घायल हो, जाता है।/ दक्षिण दिशा जाते रावन की, बात करें ।/ अंतिम विदा गोदी राम के, शीश धरें।"
             " राम मेरे द्वार" कविता है शबरी द्वारा राम के इंतजार, खुशियों और उन्हें कंद मूल फल के भोग लगाने के मार्मिक प्रसंग की ( पृष्ठ 49 ).......  "मन की थाली आगे धरलूँ, प्रेम का दीप जलाऊँ। /घट मंदिर में बैठे राम को, केशर तिलक लगाऊँ। /युगों-युगों बाँट निहारूँ, कैसे जाऊँ हार।/ चख-चख के मैं भोग धराऊँ, अपने हाथों रोज कराऊँ।/ राम दरश को पा अखियाँ, जीवन सफल बनाऊँ। /जायेंगे-जायेंगे मुझको चरण कमल से तार। /आयेंगे-आयेंगे एक दिन राम मेरे द्वार..... शबरी.."
            रावण की मुक्ति तक का वृतांत " लंका चालीसा " में किया गया है। जब राम लंका से जाने लगते हैं तो " देखो सज गया पुष्पक विमान " की काव्यधारा ( पृष्ठ 51 ) देखिए..... " देखो सज गया पुष्पक विमान उसमें बैठे श्री भगवान । / उसमें बैठे श्री भगवान, देखो सज गया..../ आन बान और शान से देखो, बैठी जानकी मैया।/ संग साथ अनुज लखन बिराजे, देखो दोनो भैया /करते लंका से प्रस्थान, उसमे बैठे श्री भगवान । नल-नील सुग्रीव जामवंत, हनुमान संग मे आते। / हाथ जोड़ ले सबसे विदा, अब लौट अवध को जाते।/  माने वानर सेना का उपकार, उसमे बैठे श्री भगवान ।/ देखो सज गया...."
           "आज अवध में राम पधारे" कविता में राम के बनवास  और लंका विजय के उपरांत लौटने पर अवध में छाए उल्हास से स्वागत की तैयारियां मन को लुभाती हैं ( पृष्ठ 53 )........
" घर -घर बंदनवार सजा दो, मंगल कलश धरा दो / आज अवध में राम पधारे, घर-घर दीप जला दो। /  हर्षित सारे नर-नारी हैं, बच्चे-बच्चे गाते / चौदह बरस के वनवासी, अब लौट अवध में आते। / फूल बिछा दो शूल हटा दो, दिशा-दिशा बतलादो /रंग बसंती ले कर अब, धर्म ध्वजा फहरादो। /मन के मोती जुड़े रहे, एक माला बनवा दो /अब चमन में कोई न बिखरे, एक बन्ध लगवा दो।/राम सिंहासन राजतिलक, रामराज्य दिखलादो /सभी रहे अब मूलमंत्र में, मर्यादा सिखलादो।"
           "आज अवध में मंगल है" कविता में राम आगमन का कितना सुंदर वर्णन किया गया है( पृष्ठ 57 )......." राम पधारे दशरथ घर में आज अवध में मंगल है। /तीनों माता हर्षित हुई है, आज अवध में मंगल हैं। / बालपन के बाल राम जी, ठुमक ठुमक कर चलते हैं। /तीनों भाई पीछे-पीछे देखो, अपने पग भी धरते हैं।/ बाल छवि का वर्णन तुलसी, अपने पद में करते हैं। /रामनवमी गर्वित हो रही, आज अवध में मंगल है।"
          अँखिया खुशी से चार हुईं हैं, मैं नन्हा सा राम, चौदह वर्ष बन के बटोही, कलयुग में भी आओ राम, मित्रता( तुम मेरे राम हो गए ), परमानंद, हनुमान दोहे, हनुमान जन्मोत्सव,
राम मेर पास - पास, आदि रचनाएं भी राम भक्ति के स्वरों से गूंजती हैं। अन्य रचनाओं में अध्यात्म भाव लिए " राम कहूं या कृष्ण कहूं " ( पृष्ठ 81) की बानगी देखिए...... " राम कहूँ या कृष्ण कहूँ, मेरा प्रभु सभी मैं रहता है। /जात धर्म ऊँच नीच में, मेरा प्रभु सभी में बहता है। /सगुन रहा आकार लिये, तुम निराकार हो निर्गुण हो। /तुम तुलसी के राम बने हो, कहीं सूर के कान्हा हो।/ राम कहूँ या कृष्ण कहूँ../कहीं कबीर की वाणी, कहीं मीरा गीत सुहाने हो। /रविदास के पद पंकज से, रसखान बने सवैया हो। /ठुमक ठुमक चलते हो, सर मोरपंख भी धरते हो।/ कितनी शोभा भारत की, आकर खूब बड़ाते हो। राम कहूँ या कृष्ण कहूँ..../ कही बसा सुर का सागर, जन पर मानस छाया है। /मीरा थी एक प्रेम दीवानी, राम रतन धन पाया हैं।"
        पुस्तक की भूमिका में वरिष्ठ साहित्यकार राकेश कुमार नैयर लिखते हैं, " रेखा सक्सेना  का यह काव्य सरल तथा ग्रहीय भाषा में होने से बालकोपयोगी है। उन्होंने रामचरितमानस के सभी महत्वपूर्ण प्रसंगों अपने काव्य में समेटा है। काव्य में परम्परागत परिवेश से जोड़ा गया है ताकि वह आने वाली पीढ़ी को संस्कृति से जीड सकें। इन्होंने काव्य क्षेत्र में कुछ समय में ही एक विशिष्ट पहचान बनाई है। खासकर के आध्यात्मिक काव्य में। उनका सदैव प्रयास रहा है कि बालकों, किशोरों व युवाओं को सरल भाषा में अपने धर्म का ज्ञान करा कर सांस्कृतिक बोध जागृत किया जाए ताकि वे अपने धर्म के सही स्वरूप को पहचान सकें।" 
           लेखिका अपने प्राक्कथन में लिखती हैं, " अवध के वीर मेरा प्रथम काव्यात्मक संकलन है । जनवरी चौबीस सबके लिए सुखद बयार लेकर आई जिसमें बाईस दिन में अवध के राम प्रंसग के साथ अन्य घटनाओं, वृत्तांतों का वर्णन किया गया । राम कथा सचमुच एक सागर है। इसमें जब भी डुबकी लगाओ अनमोल मोती ही हाथ लगते हैं। कुछ राम नाम के मोती मेरे हाथ लगे हैं उन्हें आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ। " झालावाड़ के जिला कलेक्टर अजय सिंह राठौड़, स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ , स्वामी वरुणेन्द्र तीर्थ युवाचार्य भानपुरा , त्यागी झंकारेश्वर दास, श्री पीपाजी धाम झालावाड के  शुभकामनाएं संदेश भी शामिल हैं ।
पुस्तक : अवध के वीर ( काव्य संग्रह )
लेखिका : रेखा सक्सेना ' अरुणिम रेखा '
प्रकाशक : काव्यांजलि, कोटा
संस्मरण : प्रथम 2024
प्रकार : पेपरबैक
पृष्ठ : 106
मूल्य : 180
साहित्यिक परिचय :
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रेखा सक्सेना 'अरुणिम-रेखा' जन्म दिनांक : 9 जुलाई 1973 को झालावाड़ में हुआ। आपने 
 बी.एससी. (गणित), बी एड़, एम.ए. (हिन्दी, मनोविज्ञान, सामाजिक कार्य, शिक्षा, पुस्तकालय विज्ञान) एवं आर. एस. सी. आई. टी. की शिक्षा प्राप्त की। लिखना, पढ़ना, पढ़ाना, सीखनाऔर सीखना आपकी अभिरुचि है। मगवा समूह प्रकाशन (झालावाड़ के मोती, कोटा के मोती, जय माँ गंगा), बाल कविता साझा संकलन फूल सजीले आम रसीले, ई पत्रिकाओं में साझा संकलन, नव उदय मासिक पत्रिका, पताका आदि में प्रकाशन। अवध के वीर आपका प्रथम काव्य संग्रह है। दो कृतियां लेखन प्रक्रिया में हैं।
संपर्क : 14, शुभम सिटी, झालावाड़ राजस्थान।
मो. 9460036984, 8209530339
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