उदयपुर। *"लोग चाहे तीर की तलवार की बातें करें
आइए, हम प्रीत की मनुहार की बातें करें-"दिनेश सिंदल"*
"मौजूदा दौर में सूचना क्रांति की इस तेज़ रफ़्तार आंधी ने आज फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे पटलों ने इंसान को इतना संवेदनहीन अमानवीय और अभद्र बना दिया है कि हमारी रचनात्मक सर्जना की ऊर्जा चुकती जा रही है। साथ ही में ख़ुदगरजी और दिखावे की फ़िज़ूल दौड़ में हम सब भूल गए कि व्यस्त रहने में और रचनात्मकता के साथ उत्पादक होने में बहुत फर्क़ है।" उक्त विचार स्थानीय भारतीय लोक कला मंडल में सुप्रसिद्ध राष्ट्रीय कवि, ग़ज़लकार और कथाकार श्री दिनेश सिंदल ने डाॅ. शकुंतला सरूपरिया द्वारा लिए जा रहे साक्षात्कार में व्यक्त किये। पद्मश्री देवीलाल सामर स्मृति में 'डाॅ.भंवर सुराणा स्मृति आयोजन समिति' एवं 'तनिमा पत्रिका' की ओर से प्रतिमाह आयोजित "इंद्रधनुषी सृजन रत्न कार्यक्रम" में दिनेश सिंदल ने कहा कि हम में से अधिकांश को अब इस "डिजिटल नॉनसेंस' की लत लग चुकी है। जीवन के अनेक घंटे जो हम अति रचनात्मक कार्यों में बिता सकते हैं। उसकी बजाय हम फ़िज़ूल एकांत में ख़ामोशी से ऑनलाइन बैठे रहते हैं। इंसान की यह प्रवृत्ति आज परिवार समाज और देश व संस्कृति के लिए घातक सिद्ध होती जा रही है।" श्री दिनेश सिंदल ने दुनिया में प्रेम के घटते हुए रंगत की चर्चा करते हुए कहा कि "जिस तरह बादल का कोई टुकड़ा कभी चंद्रमा के आगे आ जाता है और हम चांदनी को नहीं देख पाते हैं। तब इसका अर्थ यह नहीं कि चांदनी नहीं है, चांदनी है बस हमारी दृष्टि उस तक नहीं पहुंच रही है। ठीक इसी तरह प्रेम सदैव हमारे बीच है। सिर्फ़ बाज़ार की कोशिश रहती है, हमारी दृष्टि को संकुचित करने की और बाजार की कोशिश रहती है वह बादल का टुकड़ा बनाने की।" लगभग डेढ़ घंटे चले साक्षात्कार में श्री दिनेश सिंदल ने मानवीय मूल्य के क्षरण, लोकतांत्रिक आस्था, देश में हिंदी की स्थिति, हिंदी कविता और ग़ज़ल, सिनेमा और वेब सीरीज में भाषाई विकृतियों के प्रभाव, मीडिया चैनलों में बढ़ती हुई अभद्रता,अश्लीलता, साहित्य में नव विमर्श, स्त्री विमर्श, मंचीय कवि सम्मेलन के हालात, साहित्य में नवीन पीढ़ी की चुनौतियों विषयों पर विस्तृत चर्चा करते हुए साक्षात्कार में श्रोताओं के सामने अनेक मुक्तक, गीत और ग़ज़ल भी सुनाये। उनके द्वारा कहे गए कई मुक्तकों को श्रोताओं ने बहुत पसंद किया।
"रहा पेट के सामने, अपमानित ये शीश। वेतन का दिन एक है, रोटी के दिन तीस"।
"जिस नर ने इस दुनिया में इक नारी का सम्मान किया
यूं समझो कि उसने दुनिया सारी का सम्मान किया"।।
"लो उड़ी अपने घरों से कामकाजी औरतें
बांध कर पत्थर परों से कामकाजी औरतें"।
"लोग आए हैं यहां अंगार लेकर
हम उन्हीं के सामने हैं प्यार लेकर।।
जोधपुर के ख्याति प्राप्त कवि एवं ग़ज़लकार श्री दिनेश सिंदल की कविता गजल दोहों की दो दर्जन से अधिक पुस्तक प्रकाशित हैं वहीं "होंठ की बांसुरी" सीडी मैं अनेक गीत व मुक्तक प्रसारित हैं। देश भर के लगभग 100 संग्रह में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं तथा देश के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों में कवि एवं मंच संचालक के रूप में आप बेहद लोकप्रिय हैं।
इस कार्यक्रम के आरंभ में भारतीय लोक कला मंडल के निदेशक प्रसिद्ध रंगकर्मी डॉ.लईक हुसैन ने सभी का स्वागत किया। कवयित्री श्रीमती वीना गौड़ ने संचालन किया व सौरभ दर्शन के संपादक व कवि श्री दिनेश "दीवाना" ने धन्यवाद की रस्म अदा की। इस अवसर पर नगर के गणमान्य प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।