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इश्क का महीना है या महीने भर का इश्क, नहीं समझ आता हमें ये फरवरी वाला इश्क

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18 Feb 21
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इश्क का महीना है या महीने भर का इश्क,  नहीं समझ आता हमें ये फरवरी वाला इश्क

सागर से भी अधिक गहरा और आक्षितिज पसरा हुआ शब्द है प्यार, और इतने ही अनन्त व्यापक और घनीभूत हैं इसके निहितार्थ। प्यार के आकार-प्रकार भी कई हैं और परिणाम भी। प्यार की कोई एक परिभाषा नहीं, अपने-अपने हिसाब से हर कोई इसे परिभाषित करता रहा है।  फिर भी सदियों से प्यार कई-कई रूप-रंग और रसों में अभिव्यक्त होता हुआ लगातार बढ़ता ही जा रहा है आगे से आगे।

 

प्यार को नहीं बांधा जा सकता किसी एक दिन में

प्यार के लिए एक दिन मात्र नहीं होता। प्यार तो खुद में एक जिंदगी समेटे होता है । लोग फरवरी महीना आते ही प्यार के गीत गाने लग जाते हैं। तो मेरा सवाल उन सभी युवाआें से है कि क्या प्यार के लिए कोई एक दिन मात्र बनाया  गया है।  प्यार का इज़हार और फरवरी माह इन दोनों  को एक साथ जोड़ा गया है। युवा  पीढ़ी अपने प्रेम के प्रकटीकरण के लिए बेसब्री से प्रेम दिवस या वेलेंटाइन डे का इंतजार करती है। पर  मेरा मानना यह है कि  अगर प्यार सच्चा है तो उसे एक दूसरे को कहने की जरूरत नहीं होगी।  प्यार तो आँखों से बयां हो जाता है। जिसे लाख छुपाये छुपाया नहीं जा सकता । तभी कहा गया है - खैर खून खाँसी खुशी, बैर प्रीत अभिमान। रहिमन दाबे ना दाबे जानत सकल जहान।

 

सात्विक प्रेम के किस्से

एक जमाना था वह। और वाकई क्या जमाना था। तब मजनू-लैला की एक झलक पाने भर के लिए कई-कई जन्म लेने को तैयार रहते थे। तब प्रेमी प्रेमिका को खुदा ही नहीं खुदा से भी बड़ा दर्जा देते थे। तब का प्रेम चाहे वो राम-सीता का हो या सावित्री-सत्यवान का या लैला-मजनू का, शीरी-फरहाद का हो या फिर हीर-रांझा का। पूरी तरह से पवित्र और सात्ति्वक था। तब का प्रेम सुन्दरता या पैसे का मोहताज नहीं होता था, वह पूरी तरह से निःस्वार्थ और परम दिव्य हुआ करता था। और प्यार भी ऎसा-वैसा नहीं बल्कि उच्चतम आदर्शों से परिपूर्ण हुआ करता था। 

 

मूल्यों में बदलाव

आज युवाओं की सोच बदल गई है, सामाजिक मूल्यों में बदलाव आ रहा है। अब प्रेम में भी युवा बहुत ‘प्रेक्टिकल’ हो चला है। मौसम के बदलने की तरह उसके ‘ब्रेक अप’ और ‘पैच अप’ होते हैं। वह मानता है कि बिना गर्ल फ्रैण्ड के कॉलेज लाइफ में मजा नहीं है, लेकिन शादी के लिए वह घरवालों से बैर लेने के ‘मूड’ में नहीं होता और उनकी मर्जी को प्राथमिकता देता है।

प्रेम के लिए इस तरह की सोच कितनी सही और कितनी गलत है, इसका फैसला भी खुद युवाओं को ही करना होगा। आज का प्यार सिर्फ महंगे गिफ्ट और पैसों के खर्च पर निर्भर है। जब तक आपका साथी आपकी जरूरत र्पूति करता रहेगा, तभी तब आप साथ हो, और जिस दिन उसने आपको इंकार कर दिया, उस दिन ये प्यार एक दिन में खत्म।

 

फिल्मी प्यार

वक्त बदलता रहा, और बदलता रहा प्रेम का स्वरूप भी। फिर आई 20वीं सदी और प्रेम फिल्मी हो गया। फिल्मों की तरह जीवन यहाँ एक कल्पना मात्र ही है और कुछ नहीं । फिल्मों में प्रेमियों का जीवन देख आज के समय में हम युवा भी एक दूसरे से वैसी ही उम्मीद लगा बैठते हैं जो कि सही न होने पर भी हमारा प्रेम पल भर में काँच की तरह बिखर जाता है। जरूरी नहीं  कि प्रेम में सब कुछ आपकी आशा के अनुरूप हो ही। हो सकता है आपका प्रेमी उतना सक्षम न हो इन सब के लिए, लेकिन उसका प्रेम सच्चा हो प्रेम और पैसे की परिभाषा अलग-अलग हो सकती है।

 

प्रेम में आकर्षण नहीं

उम्र, स्थान और हालात के हिसाब से बदलते प्रेम की परिभाषा हर दिल को समझना जरूरी है। जिस तरह बहती हवा को या फूलों की खुशबू को हम देख नहीं सकते जबकि उसे अनुभव कर सकते हैं, उसी तरह प्रेम भी एक एहसास है, जो दिल से होता है। प्यार अनेक भावनाओं, अलग-अलग विचारों का समावेश होता है, रवैयों का मिश्रण है, जो उनको देखने मिलने की चाह पारस्परिक स्नेह से लेकर खुशी की ओर धीरे-धीरे अग्रसर करता  है।

ये एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना है जो सब भूलकर उसके साथ जाने को प्रेरित करती है। ये किसी की दया, भावना और स्नेह प्रस्तुत करने का तरीका भी माना जा सकता है। खुद के प्रति, या किसी जानवर के प्रति, या किसी इन्सान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने को प्यार कहा जाता है।

 

 प्यार में साथ रहना जरूरी नहीं

सच्चा प्यार वह होता है जो सभी हालातों में आप के साथ हो दुख में साथ दे, आप का और आपकी खुशियों को अपनी खुशियां माने,  प्यार पाने का नहीं देने का नाम है, जिसके साथ आप सब कुछ खोकर भी खुश हैं वो है प्यार ।

कहते हैं कि अगर प्यार होता है तो हमारी जिन्दगी बदल जाती है पर जिन्दगी बदलती है या नहीं, यह इंसान के उपर निर्भर करता है प्यार इंसान को जरूर बदल देता है। प्यार का मतलब सिर्फ यह नहीं कि हम हमेशा उसके साथ रहें, प्यार तो एक-दूसरे के पास न  रहने पर भी खत्म नहीं होना चाहिए। जिसमें दूर कितने भी हों, अहसास हमेशा पास का होना चाहिए।

किसी से सच्चा प्यार करने वाले बहुत कम लोग मिलते हैं और अगर वो आपके पास है तो उसे समय रहते पहचानें।  प्यार दोस्ती यानी पक्की दोस्ती से भी तोला जाता है। क्योंकि दोस्ती अक्सर प्यार में बदल जाती है पर प्यार कभी दोस्ती में नहीं बदलता। इसलिए प्यार का पहला नाम दोस्ती भी हो सकता है 

 

आकर्षण वाला प्यार

बहुत से लोगो को मैंने कहते सुना है कि प्यार का दूसरा नाम आकर्षण है और कई बार होता भी यही है जिसे हम प्यार समझते हैं वो मात्र एक आकर्षण होता है। यदि किसी व्यक्ति की सुन्दरता से आपको प्यार है तो वो प्यार नहीं आकर्षण मात्र है। प्यार में यह जरूरी नहीं कि दोनों समान हों। क्योंकि प्यार कभी  भी सोच-समझ कर नहीं किया जाता।  बहुत लोग कहते हैं -पहली नज़र में प्यार हो गया। पर इसे सच नहीं माना जा सकता। पहली नजर में प्यार नहीं, केवल और केवल आकर्षण हो सकता है।

निस्वार्थ प्रेम

निःस्वार्थ प्रेम, वह है जिस प्रेम में कोई स्वार्थ न हो। यह निःस्वार्थ भाव से की गई सेवा का ही एक रूप है। हम किसी से कोई उम्मीद नहीं रखते कि हम इसके लिए करेंगे तो ही वह हमारे लिए करेगा या वह हमारे लिए करेगा तो ही हम उसके लिए करेंगे। यह एक प्रकार से स्वार्थी होने का प्रमाण है।

निस्वार्थ भाव से किया गया प्रेम ही, सबसे सच्चा प्रेम होता है  इसके अलावा दुनिया में हर प्रकार का प्रेम स्वार्थ से परिपूर्ण और झूठा होता है। जब तक हम उनके लिए काम करेंगे, जब तक हम उनकी मनोकामनाएं पूरी करेंगे तब तक वह हमसे खुश रहेंगे और हम प्रेम होने का नाटक करेंगे। हम उसमें ही उलझते चले जाते हैं। हम उस इंसान के लिए अपना जीवन त्याग देते हैं। अपनी पूरी जमा पूंजी लगा देते हैं, लेकिन जिस दिन उसका स्वार्थ पूरा हो जाता है, उस दिन वह हमसे दूर भागने लगता है। हमारी अच्छाई में बुराई गिनता और गिनाता है।

 

प्यार में वासना नहीं

प्यार को अक्सर वासना के साथ तुलना की जाती है और पारस्परिक संबध के तौर पर रोमांटिक स्वर के साथ तौला जाता है। कई बार इससे शादी शुदा जोड़े भी अलग हो जाते हैं, यहि कहते हुए कि अब हममें प्यार नहीं रहा या वे कहीं और किसी और के प्यार में है। लेकिन ये कहाँ तक सत्य है  ये प्यार जो आज किसी और से, व  कल किसी और से। ये प्यार नहीं हो सकता मात्र वासना का एक रूप या दैहिक आकर्षण मात्र हो सकता है परन्तु कुछ विवाहित जोड़े या प्रेमी युगल कई बार बहुत लड़ाई एवं तनाव के बावजूद अलग नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनकी आत्मा ही एक है जो भीतर से एक है, वे बाहर से अलग हो ही नहीं सकते है।

यह एक एहसासों का बंधन है जो दो प्रेमियों के बीच दाम्ंपत्य जीवन को प्रगाढ़ करने में सहायक सिद्ध होता है। सच्चे प्यार को दो शब्दों में बयान नहीं कर सकते हैं और ना ही प्यार की कोई परिभाषा है. ये शब्दहीन है इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है।  सच्चा प्यार इंसान को कहीं भी किसी भी अवस्था में हो सकता है। प्यार गरीबी या अमीरी, धर्म-जाति और रंग-रूप नहीं देखता,   ये तो सिर्फ प्यार ही देखता है। हर कोई इतना खुशनसीब नहीं कि उसे सच्चा प्यार नसीब हो। अगर आपके पास में कोई ऎसा है तो उसके प्यार को तौले नहीं समझें, क्योकि जो आज है वो कल हो न हो।


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