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जयपुर से समझाईश, पर कोटा आकर हुआ नेत्रदान

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27 Jun 19
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जयपुर से समझाईश, पर कोटा आकर हुआ नेत्रदान

47 वर्षीय,विवेकानंद नगर निवासी श्रीमति प्रभा चित्तौड़ा को दिमाग की नस फटने के कारण,गंभीर अवस्था में जयपुर ले जाना पड़ा ।  वहाँ इलाज़ के दौरान उनकी मृत्यु हो गयी । जयपुर में उनके साथ उनका बेटा आकाश और माता-पिता की करीबी मित्र सुनीता पंजवानी थी । 

 

जयपुर के एसएमएस अस्पताल में,जैसे ही चिकित्सकों ने उनको मृत घोषित किया,आकाश की बची हिम्मत भी टूट गयी । उसने अपने पिता दिनेश चितौङा और  बहन दिशा चितौङा को भी इस दुखद: घटना के बारे में सूचना दी, उसके बाद पार्थिव शरीर को एम्बुलेंस से कोटा लाने का निर्णय लिया गया । 

 

कोटा लाते समय एसएमएस अस्पताल के अंदर एक दीवार पर नेत्रदान की जागरूकता पर लगे पोस्टर पर सुनीता जी की नज़र पड़ी । काफ़ी समय से आकाश उनकी सीमा लाइट हाऊस में उनका सहयोगी है ,तो वह सुनीता जी को भी अपनी माँ समान ही मानता है,यह सोचकर उन्होंने आकाश को कहा कि,अपनी माँ प्रभा के नेत्रदान करवा देते है,पर उस समय उसकी मानसिक स्थिति ठीक न हो पाने के कारण, व निर्णय न ले पाने के कारण, उसने साफ़ मना कर दिया,इधर उनको कोटा के लिए भी निकलना था,तो उस समय सुनीता जी ने ज्यादा समझाईश न करते हुए,कोटा पहुंचने का निर्णय लिया । सुनीता जी को भी लगा कि,रास्ते में वह थोड़ा और नेत्रदान के लिये समझाईश करेंगी,और यदि परिवार के सभी लोग राज़ी हो जाते है,तो नेत्रदान का काम कोटा में भी संभव हो जायेगा । 

 

रास्ते भर उन्होंने आकाश को नेत्रदान के लिये समझाया, आकाश के मन में नेत्रदान को लेकर जो भ्रान्तियाँ थी, उसके लिये सुनीता जी ने रास्ते भर समझाया, कोटा आते-आते आकाश का मन इस बात के लिऐ मान गया कि नेत्रदान ही एक तरीका है, जिससे उसकी माँ किसी और कि आँखो में रौशनी बनकर सदा के लिये रह सकेगी ।

 

चार घंटे का सफर तय करने के बाद घर आते ही आकाश ने अपने पिता को नेत्रदान करवाने के लिये राज़ी किया । दिनेश जी ने सुनते ही नेत्रदान के लिये हाँ कर दी । सुनीता जी जो कि काफ़ी समय से शाइन इंडिया फाउंडेशन के साथ जुड़ी हुई है,उनके कहने पर तेज़ बारिश होने के बावजूद आधे घंटे में नेत्रदान के लिये टीम निवास पर आ गयी और नेत्रदान का पुनीत कार्य सम्पन्न हुआ । 

 

उपस्थित लोगों में यह भ्रान्ति थी कि मृत्यु के इतने देर बाद नेत्रदान संभव है क्या ? तो संस्था सदस्यों ने बताया कि,साधारण दिनों में सामान्यतः मृत्यु के 6 से 8 घंटे के अंदर , सर्दियों में यह समय 10 से 12 घंटे का रहता है, और यदि क़रीबी रिश्तेदारों के कारण कई बार पार्थिव शरीर को बर्फ पर या डीप फ्रीज़ में रखा जाता है,तो ऐसे में नेत्रदान लेने का समय बढ़कर 24 घंटे का हो जाता है ।

 

परंतु सदैव प्रयास यही रहना चाहिये कि,यदि नेत्रदान का मानस बना चुके है, तो नेत्रदान की प्रक्रिया जितना जल्दी सम्पन्न हो जाये तो बेहतर है । इसी तरह समय सीमा में होने के बाद भी यह जरूरी नहीं है कि कॉर्निया सुरक्षित हो,इसलिये संस्था सदस्य मौके पर पहुँच कर ,आँखो की जाँच करने के बाद ही यह निर्णय लेते है कि,नेत्रदान लेना है,या नहीं । प्रभा चितोड़ा जी के नेत्रदान को सम्पन करने में शाइन इंडिया फाउंडेशन व तकनीकी सहयोग आई बैंक सोसायटी ऑफ राजस्थान,कोटा के तकनीशियन का रहा ।


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