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वैदिक तपोवन उत्सव का तीसरा दिन सफल

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17 May 25
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वैदिक तपोवन उत्सव का तीसरा दिन सफल

देहरादून। वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून में आयोजित पांच दिवसीय ग्रीष्मोत्सव के तीसरे दिन का आयोजन धार्मिक श्रद्धा और वैदिक ऊर्जा से परिपूर्ण रहा। प्रातःकालीन वृहद यज्ञ आचार्य रवीन्द्र कुमार शास्त्री के ब्रह्मत्व में संपन्न हुआ, जिसके पश्चात श्री नरेन्द्र दत्त आर्य, बिजनौर द्वारा भजन प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का संचालन हरिद्वार से पधारे विद्वान श्री शैलेशमुनि आर्य ने किया।

यज्ञ के उपरांत महिला सम्मेलन का आयोजन आश्रम के सभागार में किया गया, जिसकी अध्यक्षता आचार्या सत्यवती जी ने की और संचालन श्रीमती पुष्पा गोसाईं ने किया। सम्मेलन की शुरुआत एक बालिका द्वारा भजन 'संसार मुसाफिरखाना है...' से हुई, तथा एक अन्य कन्या ने भजन 'जितने दिन भी जियो...' प्रस्तुत किया। द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल की छात्राओं ने मंगलाचरण व सामूहिक भजन 'मेरे देश की बहनों...' प्रस्तुत कर वातावरण को भावविभोर कर दिया।

सम्मेलन की मुख्य वक्ता आचार्या डॉ. अन्नपूर्णा जी रहीं। उन्होंने अपने विचारों में वेदों को समस्त ज्ञान-विज्ञान का भंडार बताते हुए कहा कि वेदों का ज्ञान सर्वव्यापक परमात्मा द्वारा चार ऋषियों को दिया गया था। उन्होंने आर्य का वास्तविक अर्थ बताते हुए कहा कि आर्य वही है जो श्रेष्ठ गुण, कर्म एवं स्वभाव से युक्त हो। उन्होंने नारी को राष्ट्र का आधार बताया और कहा कि यदि नारी सुसंस्कारित होगी तो पूरा समाज संस्कारित होगा।

डॉ. अन्नपूर्णा जी ने बताया कि माता-पिता का धार्मिक और चरित्रवान होना बच्चों के संस्कारों की नींव है। उन्होंने राम-लक्ष्मण संवाद का उदाहरण देते हुए कहा कि जिनके माता-पिता धार्मिक व चरित्रवान हों, वे ही प्रलोभनों से विचलित हुए बिना अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते हैं। उन्होंने परमात्मा की सर्वव्यापकता, सृष्टि संचालन में उसकी भूमिका तथा दीपक के समान विद्वान के प्रभाव की व्याख्या भी की।

इसके पश्चात श्रीमती कमला नेगी ने योग विषयक शंकाओं का समाधान प्रस्तुत किया। अन्य आचार्याओं के विचार भी सम्मेलन में प्रस्तुत हुए, परन्तु उनकी अनुपलब्धता के कारण विस्तृत वर्णन संभव नहीं हुआ।

ग्रीष्मोत्सव का समापन 18 मई, रविवार को प्रातः यज्ञ व समापन सत्र के साथ होगा, जो दोपहर 1 बजे तक संपन्न होगा। आज के कार्यक्रम में शैलेश मुनि सत्यार्थी, सुशील भाटिया, प्रवीणानंद वैदिक (गोवा), अतुल भाटिया (बिजनौर), रोशन लाल आर्य (लुधियाना), पं. उमेशचंद्र कुलश्रेष्ठ, नरेश दत्त आर्य और पीयूष शास्त्री जी सहित अनेक विद्वान उपस्थित रहे।
 


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