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साहित्य सुधाकर मानद उपाधि अलंकरण से विजय जोशी सहित कोटा के कई साहित्यकार सम्मानित 

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11 Jan 24
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साहित्य सुधाकर मानद उपाधि अलंकरण से विजय जोशी सहित कोटा के कई साहित्यकार सम्मानित 

कोटा| " सृजनात्मक परिवेश में ऐसे कई आयाम उभरते हैं जो सृजन पक्ष को गति और दिशा दोनो ही देते हैं। यह दिशा इन सन्दर्भों को आधार ही प्रदान नहीं करती वरन् एक स्वच्छ परम्परा को विकसित भी करती है।"  इन सन्दर्भों की बानगी, राजस्थान प्रान्त के अग्रणी साहित्यिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक प्रतिष्ठान साहित्य-मण्डल, श्रीनाथद्वारा के तत्वावधान में आयोजित हिंदी पुरोधा - राष्ट्रभाषा सेनानी, साहित्य वाचस्पति भगवतीप्रसाद देवपुरा स्मृति एवं राष्ट्रीय बाल साहित्य समारोह शनिवार एवं रविवार 06-07 जनवरी 2024 को साहित्य मण्डल के प्रेक्षागृह में देखने को मिली।  
       इस राष्ट्रीय समारोह में दस राज्यों राजस्थान, सिक्किम, उड़ीसा, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, पंजाब, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और दिल्ली के  लगभग साठ प्रतिभा सम्पन्न कला-संस्कृतिधर्मियों तथा  साहित्यकारों को पुरस्कार एवं सम्मान प्रदान किया गया। 
     इस अवसर पर कोटा से बाल कवि माधव शर्मा को श्रीमती गीता देवी काबरा स्मृति 'बालश्री सम्मान' सहित इक्कीस सो रुपए पुरस्कार से, वरिष्ठ पर्यटक लेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल को श्री ताराचन्द्र भंडारी स्मृति 'साहित्य भूषण' सम्मान सहित इक्कीस सो रुपए पुरस्कार से, वरिष्ठ कवयित्री डॉ. कृष्णा कुमारी को 'साहित्य सुधाकर' मानद उपाधि से, कवि योगिराज 'योगी' को 'बाल साहित्य भूषण' सम्मान से, कवि रघुनंदन हटीला 'रघु' को 'काव्य कलाधर' मानद उपाधि से तथा साहित्य सृजक डॉ. वैदेही गौतम को 'साहित्य सौरभ' मानद उपाधि से अलंकृत किया गया। 
         इन्हीं सभी रचनाकारों एवं सृजनकरों के साथ मुझे ( विजय जोशी ) 'राष्ट्रभाषा हिन्दी के क्षेत्र में अनुपम योगदान ' हेतु श्री भगवतीप्रसाद देवपुरा स्मृति समारोह-2024 के अवसर पर "साहित्य सुधाकर" की मानद उपाधि से विभूषित करते हुए मंचासीन अतिथियों तथा सभागार में उपस्थित सृजनधर्मियों द्वारा शॉल, उपर्णा, मुक्तामाल, मेवाड़ी पगड़ी, श्रीफल, श्रीनाथ जी का प्रसाद, उपाधि-पत्र, श्रीनाथ जी की छवि भेंट कर सम्मानित किया गया।
इसके पश्चात् साहित्यकार अंजीव अंजुम ने परिचय प्रस्तुत करते हुए  अन्त में काव्यात्मक अभिव्यक्ति से भाव-विभोर कर दिया -  
"राजस्थान की साँस्कृतिक और साहित्यिक नगरी झालावाड़ में पुरातत्ववेत्ता, इतिहासविज्ञ, कला-साहित्य मर्मज्ञ पिता श्री रमेश वारिद एवं माँ श्रीमती प्रेम वारिद के गृहांगन में 1 जनवरी,1963 को हिन्दी सेवक विजय जोशी का आविर्भाव हुआ। आपने विज्ञान, हिन्दी साहित्य एवं शिक्षा में अधिस्नातक की उपाधि प्राप्त की एवं राजस्थान सरकार, शिक्षा विभाग में अध्यापन कार्य करते हुए 31 दिसम्बर 2022 को सेवा निवृत्त हुए हैं। 
      आपने हिन्दी एवं राजस्थानी भाषा में साहित्य की विविध विधाओं में एक दर्जन से अधिक  पुस्तकों का प्रणयन किया है। ख़ामोश गलियारे, केनवास के परे, कुहासे का सफ़र, चीख़ते चौबारे, निकष पर, आखर निरख, 
सुलगता मौन आपकी श्रेष्ठ सद्य प्रकाशित कृतियाँ हैं। 
       आपकी कृतियों पर तीन समीक्षा-ग्रंथ ‘संवेदनाओं का कथा संसार और विजय जोशी’, ‘कथा कलशों के शिल्पकार विजय जोशी’ तथा ‘विजय जोशी के कथा साहित्य का शैल्पिक सौन्दर्य’ का प्रकाशन जाने माने हिन्दी भाषा सेवी एवं साहित्यकारों द्वारा किया गया है। आपके साहित्य पर  विभिन्न विश्वविद्यालयों से शोधार्थियों द्वारा शोध एवं लघुशोध प्रबन्ध भी प्रकाशित हुए हैं। आपकी श्रेष्ठ रचनाधर्मिता एवं हिन्दी सेवा के लिए भाऊराव देवरस सेवा न्यास, द्वारा पं. प्रतापनारायण मिश्र स्मृति कथा सम्मान, राजस्थान पत्रिका पुरस्कार, मुंशी प्रेम चंद कथाकार सम्मान, हिन्दी भूषण अलंकरण, बावजी चतरसिंह जी अनुवाद पुरस्कार, पं.जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी द्वारा बाल साहित्य सृजक सम्मान सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मानों से आप सम अलंकृत हैं।
श्री रमेश पितु मात प्रेम, वारिद मन हरषे।
गृह आँगन में विजय, सुखद वारिद बन बरसे।।
हिन्दी के संग राजस्थानी का यश गाया।
कथा समीक्षा शोध सृजन इनके मन भाया।।
गलियारे ख़ामोश, चीख़ते चौबारे हैं। 
रचा सुलगता मौन, गगन के ध्रुवतारे हैं।।
       इस संस्कारित और प्रभावी प्रस्तुति के तुरन्त पश्चात् मुझे अपने विचार व्यक्त करने हेतु आमन्त्रित किया। सम्मान के सोपान पर धरे पग को बढ़ाते हुए मैंने माईक लिया और श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि - 
"धन्यवाद अंजुम जी। सम्मान और समारोह को हम...यहाँ जितने भी बैठे हैं ...पारिवारिक और साहित्यिक रूप में सान्निध्य पाया है। सुबह यहाँ चर्चा हो रही थी कि भाषा यदि छूट जाती है तो संस्कृति छूट जाती है...और फिर संस्कार भी जड़त्व की ओर चले जाते हैं। मेरा यहाँ यह अनुभव हुआ कि... सम्मान समारोह हमने सब देखे हैं... औपचारिक और अनौपचारिक। यह पहला सम्मान है, जहाँ संस्कार की आभा और प्यार की सुगंध इस सम्मान में समाहित है। ये सम्मान परिवार से आता है किसी संस्थान से नहीं। संस्था जो बनती है, वह परिवार से बनती है। जब तक परिवार में संस्कार मौजूद हैं ऐसा प्रेम और सम्मान हमें मिलता रहेगा और हम देते रहेंगे। यही बाबूजी की प्रेरणा है। बहुत - बहुत धन्यवाद...।" 
इसके पश्चात् सभी का अभिवादन करते हुए मैंने अपना स्थान ग्रहण किया। मैं साहित्य-मण्डल, श्रीनाथद्वाराके प्रधानमंत्री श्यामप्रकाश देवपुरा सहित साहित्य-मण्डल की कार्यसमिति के सभी सदस्यों का आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने मेरे साहित्य को मूल्यांकित कर सम्मान का यह सोपान प्रदान किया। 
मेरे सृजन कर्म को सदैव प्रोत्साहित और दिशा प्रदान करने वाले मेरे गुरु माता-पिता के आशीर्वाद और प्रेरणा को अनुभूत करते हुए मैंने इस गरिमामय परिवेश को आत्मसात् किया और एक विश्वास के साथ अपने रचनात्मक पथ पर आया...  

- विजय जोशी
कथाकार और समीक्षक, कोटा


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