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"फाँस" संवेदनाओं के धरातल पर उभरती कहानियाँ

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07 Jun 23
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"फाँस" संवेदनाओं के धरातल पर उभरती कहानियाँ

अपने परिवेश प्रति सजग और व्यापक दृष्टि से सम्पन्न व्यक्ति जब अपने विचारों को अपनी अनुभूति के आधार पर गहराई से विश्लेषित करता है तो उसके सामाजिक और पारिवारिक सरोकारों की स्व चेतना का आभास होता है। यह सन्दर्भ जब एक सृजनकर्ता के साथ सामने आता है तो वह अपनी रचना में नवीन तथ्यों को ही उजागर नहीं करता है वरन् तार्किक रूप से भी अपनी संवेदना के आयामों को उभारता है।
इन्हीं सन्दर्भों को अपने भीतर तक संरक्षित और पल्लवित किये हुए हैं कहानीकार विजय कुमार शर्मा जिनकी कहानियाँ अपने समय के साथ कदमताल करते हुए पाठकों को पठन हेतु आमंत्रित करती हैं। कहानियों की यही विशेषता इन्हें एक संवेदनशील कहानीकार के रूप में सामने लाती हैं।
कहानीकार विजय कुमार शर्मा का यह कहानी संग्रह "फाँस" मानवीय सन्दर्भों का ऐसा कहानी संग्रह है जिसमें परिवार और समाज के बदलते मूल्यों का सच और उससे उपजे प्रभाव का का खुलासा हुआ है। शीर्षित कहानी "फाँस" की तासीर प्रतीकात्मक रूप में समूचे कहानी-संग्रह में अन्तःसलीला-सी बहती प्रतीत होती है। कहानियों के सभी पात्र अपने-अपने मन-मस्तिष्क में करवट लेती वैचारिक चुभन से जीवन के पथ पर अग्रसर होते हैं।
संग्रह की प्रथम कहानी 'प्रायश्चित' कहानी में व्यक्ति को न समझने की ग्लानि को उजागर किया गया है, वहीं " ऊँच-नीच" कहानी 'मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है' को सार्थक रूप से सामने लाती है। 'अहम् के घेरे' यथा शीर्षक पात्रों की भाव-संवेदनाओं को उजागर करती है। 'बेरहम' कहानी में पारिवारिक द्वन्द्व और अपने-अपने स्वार्थ में डूबे पात्रों का वास्तविक रूप गहराई से विवेचित हुआ है।
'पहचान' कहानी में भाषावाद के प्रभाव और उससे उपजे सन्दर्भों की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। इसी प्रकार 'महक उठी मालती' कहानी में अतीत के झरोखों से बहती रिश्तों की बयार बहती हुई प्रत्येक पात्र को गंधायमान कर देती है। इसी को स्पर्श करती कहानी है 'इन्द्रधनुष' जिसमें अपने-पराये' की पहचान करने की दिशा प्रदान की है।
'प्रतिदान' कहानी सामाजिक जीवन की सच्चाइयों को सहजता अभिव्यक्त करती है और एक प्रेरक परिवेश का निर्माण करती है। 'जवाब' कहानी में पारिवारिक जीवन में रमें पात्रों की ऊहापोह का खुलासा कर यथार्थ का समावेश किया गया है। 'फर्ज़' एक  चिकत्सक के जीवन की संवेदनात्मक कहानी है जिसमें छोटी-छोटी खुशियों में बड़ी खुशियाँ खोजने का जतन सामने आया है। 'उपहार' कहानी में निःसंतान दम्पति के वैचारिक द्वन्द्व और उनकी महीन संवेदनाओं को गहराई से उकेरा गया है। 'निरुत्तर' कहानी अपने तेवर की अलग कहानी है जिसमें पारिवारिक सन्दर्भों में पत्नी और माँ के रिश्ते के मध्य सुदृढ़ सेतु बना पति और पुत्र के आन्तरिक द्वन्द्व का सार्थक चित्रण हुआ है।
शीर्षित कहानी 'फाँस' में मानवीय मूल्यों की प्रतिस्थापना डॉक्टर के पात्र के माध्यम से मार्मिक रूप से उभर कर सामने आयी है जो द्वन्द्व से उभरकर कर्म की ओर प्रेरित करती है। मूक प्राणी का अपना जीवन होता है वह मनुष्य के साथ के सम्बन्धों को ओढ़ता-पोढ़ता रहता है। 'मोती' इन्हीं भावों की संवेदनात्मक कहानी है जो मूक से वाक् की यात्रा का दर्शाव देती है। 'प्रेम के पर्याय' कहानी में क्रोध तथा प्रेम की परिणति को विस्तार से तथापि प्रभावी रूप में उजागर किया गया है। 
कहानीकार विजय कुमार शर्मा की ये कहानियाँ मात्र समाज में होने वाले परिवर्तन की गाथा ही नहीं कहती वरन् सामाजिक  संघर्ष और आस की पराकाष्ठा को भी उजागर करती है। पारिवारिक और सामाजिक जीवन और जगत की वास्तविकताओं को विश्लेषित करती इन कहानियों में सामाजिक सरोकारों को प्रभावी तरीके से व्यक्त किया गया है साथ ही विषय वस्तु की वैविध्यता को सूक्ष्म रूप से अभिव्यक्त करते हुए विवेचना भी की है। 
इस संग्रह की सभी कहानियाँ अपनी सहज प्रभावी भाषा के कारण उल्लेखनीय तो है ही पठनीय भी है इस माने में भी कि ये कहानियाँ समाज में दृष्टिगोचर होते  मूल्यहीनता का आकलन करते हुए पात्रों की मनःस्थिति से परिवर्तित होते जा रहे उनके कार्य - व्यवहार को भी उजागर करती हैं। 
ये कहानियाँ इस बात की भी साक्षी हैं कि संवेदनाओं के धरातल पर जब कहानीकार अपने परिवेश के साथ आत्मसात् होता है तो कहानियों में उभरते पात्र अपने-अपने भाव और विचार के साथ सहज रूप से बतियाते लगते हैं।


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