कोटा | राजस्थान में बारां जिला मुख्यालय से लगभग 80 कि.मी दूर शाहबाद का विशाल किला एक पहाड़ी पर स्थित है। इसके समीप का सघन वन तथा प्राकृतिक परिवेश अत्यत मनोरम है। किला अपनी विशिष्ट स्थिति एवं प्राकृति दुर्गमता के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण है।
किले के उत्तर में माधोखोह तथा पहाड़ी है, जबकि दक्षिण में वन क्षेत्र एवं 100 मीटर चौड़ी खाई, पूर्व में प्राकृति गहराई लिए कुण्डाखोह नाम का पानी का चश्मा तथा पश्चिम में एक ऊंची पहाड़ी तथा वन भमि की ओर से मुडियर ग्राम होते हुए किले का मुख्य द्वार आता है। इसका निर्माण 1520 ई. में करवाया था। इसका नाम पूर्व में कुछ ओर रहा होगा। शाहाबाद नाम शेरशाह या ओरंगजेब
का दिया हुआ प्रतीत होता है।
किला चारों ओर से ऊची दीवारों से घिरा हुआ है। यह भीतर से खण्डहर तथा वीरान है, किन्तु इसका बाहरी परकोटा सुरक्षित है। प्राचीन काल में इसकी बुर्जो पर 18 तोपे रहती थी, जिनमें से 16 फीट लम्बी नवलवान तोप अत्यंत विख्यात थी, जो आज भी विद्यमान है। किले के अन्दर की अन्य सरचनाओं में एक विशाल नवल बावड़ी है, जिसमें नीचे जाने के लिए सीढ़ियाँ हैं। इसका दालान खण्डहर हो चुका है, किन्तु बावड़ी में आज भी पानी भरा हुआ है। किले में तोपखाना तथा बारूदखाना अच्छी स्थिति में है, जबकि कुछ मंदिर बुर्जे व छतरियाँ भग्नावस्था में हैं।
यहाँ पर स्थानीय शासकों एवं मुगल शासकों के शिलालेख प्राप्त हुए है। वि.सं. 1678 (1622ई.) के एक लेख में कोटा के राव छत्रसिंह द्वारा एक नमन (स्मारक) युवराज के लिए निर्मित करवाने का उल्लेख है। वि.सं. 1864 के लेख से ज्ञात होता है कि कोटा के महाराव उम्मेदसिंह के शाहाबाद नगर का सेनापति व प्रधान चिरंजीव महताब था। शिलालेख में फौजदार जालिमसिंह व उसके पुत्र मदनसिंह का भी उल्लेख मिलता है।
** ओरंगजेब की मृत्यु के पश्चात मराठा सरदार खाण्डेराव ने इस किले पर अपना अधिकार कर लिया था, किन्तु कोटा के महाराव भीमसिंह प्रथम ने 1714 ई. में इसे महराठों से जीत लिया। कोटा के फौजदार ने
1778 ई.में इसे अपने राज्य का स्थायी हिस्सा बना लिया।
बादल महल :- किले की पहाड़ी की तलहटी में चौहान शासक इन्द्रमन के समय राजसी भवन “ बादल महल” का निर्माण कराया गया जो 18वीं शताब्दी ई. का प्रतिनिधित्व करता है।इसके अवषेश आज भी देखें जा सकते हैं। यह महल भवन निर्माण एवं पाषाण कारीगरी का सुंदर नमूना है। विशाल द्वार अलंकृत है। दरवाजे के साथ एक ऊँचे चबूतरे पर दोनों ओर बड़ी-बड़ी पाषाण प्रतिमाऐं स्थापित थी। यह एक पंख युक्त हाथी की उड़ती हुंई प्रतिमांए जो अपनी सूंड एवं चारों पैरों में पांच छोटे-छोटे हाथी लेकर उड़ रहे हैं। यह दोनों प्रतिमाऐं आज भी कोटा कलेक्ट्रेट परिसर में जिला कलेक्टर कार्यालय भवन में नीचे लगी हुई है। स्थानीय लोग इस विचित्र प्रतिमाओं को “ अलल पंख” कहा जाता है।