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भ्रूण हत्या का घिनौना सच !

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05 Jan 21
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भ्रूण हत्या का घिनौना सच !

- रीना छंगानी

कन्या भ्रूण हत्या वर्तमान दौर का वह सबसे बड़ा और जघन्य पाप है जो समूची मानव जाति के लिए कलंक है। आज कन्या के महत्त्व को जानने, सोचने-समझने और सामाजिक कुप्रथाओं को बदलने के लिए दृढ़ संकल्पों के साथ आगे आने की आवश्यकता है।

यह कार्य अकेले शासन-प्रशासन नहीं कर सकता। इसके लिए समुदाय को सामाजिक मूल्यों और मानवीय संवेदनाओं के साथ आगे आने और इस दिशा में जागरुकता तथा कन्या भू्रण हत्या पर अंकुश लगाने के लिए हर स्तर पर समर्पित भागीदारी की आवश्यकता है।

महकता गुलाब हैं बेटियाँ

बेटी क्या नहीं है, बहुत कुछ है बेटी। बेटी में समायी होती हैं पूरे संसार की खुशियाँ।  आँगन में खिलने वाले महकते गुलाब सी होती है बेटियाँ, जो खिलती तो घर के आँगन में हैं लेकिन उनकी महक पूरे घर के हरेक कोने में बसी होती है। बेटियाँ हर तरह से बेटों से आगे होती हैं। आज बेटियाँ वो सभी कार्य कर सकती हैं जो बेटे कर सकते हैं या जिनके लिए माँ-बाप को एक बेटे की चाह होती थी, उन सभी कसौटियों पर बेटी खरी उतर सकती है।

सहजता की प्रतिमूर्ति

वो जब तक अविवाहित होती है, स्कूल की शिक्षा के साथ ही माँ को घरेलू कार्यों में भी मदद करती रहती है। पिताजी ने किसी फरमाईश पर कह दिया कि आज नहीं कल। तो वह सहजता से विनम्रतापूर्वक स्वीकार कर लेती है, कोई ना नुकुर या नाराजगी के भाव नहीं रखती। वो खुद कभी नहीं समझ पाती कि एक ही घर में अपने ही भाई के साथ  रहते हुए वो किस तरह के कहे-अनकहे भेदभाव झेल रही है।

बेटी ही देश का भविष्य है। इसलिए बेटियों को भी वैसी ही परवरिश दें, जैसी हम अपने बेटों को देते हैं। भविष्य बचाने के लिए बेटी का संरक्षण जरूरी है।

जरूरी है सामाजिक अभिशाप का खात्मा

प्राचीनकाल से ही भारतीय समाज में लड़कियों को लड़कों से कम सम्मान और महत्त्व दिया जाता रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, खेल आदि क्षेत्रों में लड़कों की तरह इनकी पहुँच नहीं होती थी।  साथ ही दहेज का लेन-देन एक कुप्रथा के रूप में चलन में था जो की र्आथिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए अभिशाप ही था।  इसी  एकमेव मूल कारण से लोग बेटियों को जनम देने से कतराते थे। तभी से चला आ रहा है ये जघन्य अपराध अर्थात भ्रूण हत्या का महापाप, जो कि समाज के लिए खुद एक अभिशाप है।

हर प्रयास में निभाएं अपनी भागीदारी

लड़कियों के अधिकार के संदर्भ में हाल पिछले कुछ समय से जागरुकता कार्यक्रम जैसे बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ या बालिका सुरक्षा अभियान आदि संचालित किए जा रहे हैं। कन्या संतान की रक्षा व बेहतर परवरिश करनी चाहिए। यही इन कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य है। बेटी की शिक्षा व शादी किसी माँ बाप पर बोझ न हो, इसलिए ही सरकार समय-समय पर नवीन योजनाओं का क्रियान्वयन करती रही है।

इस क्षेत्र में सरकार द्वारा निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं। जब तक नारी है तभी तक नर का अस्तित्व है, उसके बिना नर का कोई अस्तित्व नहीं है। आदि शंकराचार्य ने भी कहा है कि शक्ति के बिना शिव शव रूप ही निष्प्राण रहता है। 

महिलाओं को भारतीय समाज में अपने परिवार और समाज के लिये दोयम दर्जे की या एक अभिशाप के रूप में देखा जाता है। इन कारणों से तकनीकी और भौतिकी उन्नति के समय से ही भारत में बहुत से वर्षों से कन्या भ्रूण हत्या की प्रथा चल रही है।

सन् 2001 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार पुरुष और स्त्री अनुपात 1000 से 927 है। कुछ वर्ष पहले तक लगभग सभी दम्पत्ति जन्म से पहले शिशु के लिंग को जानने के लिये लिंग निर्धारण जाँच का इस्तेमाल करते थे। और लिंग के लड़की होने पर गर्भपात निश्चित होता था।

ब्रह्मास्त्र है जागरुकता

भारतीय समाज के लोग लड़के से पूर्व सभी बच्चियों को मारते रहने और लड़का प्राप्त करने तक लगातार बच्चे पैदा करने के आदी थे। जनसंख्या नियंत्रण और कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिये, कन्या भ्रूण हत्या और लिंग निर्धारण जाँच के बाद गर्भपात की प्रथा के खिलाफ भारतीय सरकार ने विभिन्न नियम और कानून बनाये।

गर्भपात के द्वारा बच्चियों की हत्या पूरे देश में एक अपराध है। चिकित्सकों द्वारा यदि लिंग परीक्षण और गर्भपात कराते पाया जाता है। ख़ासतौर से बच्चियों की भ्रूण हत्या की जाती है तो वो अपराधी होंगे, साथ ही उनका लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है। कन्या भ्रूण हत्या से निजात पाने के लिये समाज में लड़कियों की महत्ता के बारे में जागरुकता फैलाना एक मुख्य हथियार है, जिसका इस्तेमाल हम सभी को करना होगा।

नियंत्रण के लिए प्रभावकारी उपाय

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि महिलाओं के भविष्य के लिये कन्या भ्रूण हत्या एक अपराध और सामाजिक आपदा है। भारतीय समाज में होने वाले कन्या भ्रूण हत्याओं के कारणों पर हमें गंभीरता से ध्यान देना चाहिये। सभी को ये समझ बनानी होगी की बेटा व बेटी एक समान है। लैंगिक भेदभाव की वजह से ही मुख्यतः कन्या भ्रूण हत्या होती है। इसके ऊपर नियंत्रण के लिये कानूनी शिकंजा होना चाहिये व है भी।

भारत के सभी नागरिकों द्वारा इससे संबंधित नियमों का कड़ाई से पालन करना चाहिये। और इस क्रूरतम अपराध के लिये किसी को भी गलत पाये जाने पर निश्चित तौर पर सजा मिलनी चाहिये। साथ ही महिलाओं को खुद को भी जागरूक होना होगा कि बेटी है तो कल है। आईये हम सब मिलकर आगे आएं। बेटियों को बचाएँ-बेटियों को पढ़ाएं।


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