श्रीजी अरविन्द सिंह मेवाड बहुमुखी प्रतिभा के धनी है। आप अच्छे खिलाडी, पायलट, शिक्षित, कुशाग्र दिमाग, चिन्तनशील तथा सारभूत अध्ययन एवं चिन्तन-मनन कर उसे प्रभावशाली तरीके से लिपिबद्ध करने जैसी अनेक खूबियों के धनी है।
हिन्दी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर श्रीजी की समान दक्षता है। हिन्दी-अंग्रेजी साहित्य, इतिहास तथा संस्कृति विषयक पुस्तकों में आपकी विशेष रुचि है। इसी कारण स्थानीय स्तर से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक सभी प्रकार की संगोष्ठी व सभा में आप अपने गहन ज्ञान की छाप छोडते है।
महाराणा साहिब भगवत सिंह जी मेवाड ने श्रीजी अरविन्द सिंह मेवाड को पन्द्रह सौ वर्ष पुरानी विरासत के संरक्षण-संचालन के साथ मेवाड की गौरवशाली वंश परम्पराओं के निर्वहन का महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा था। श्रीजी हुजूर महाराणा मेवाड चैरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के अध्यक्ष एवं प्रबंध न्यासी के रूप में मेवाड वंश के कर्त्तव्यों का निर्वहन कर अपना दायित्व निभा रहे हैं तथा एच.आर.एच. ग्रुप ऑफ होटल्स के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक के रूप में रोजगार युक्त व्यवसायिक गतिविधियों को निरंतर आगे बढा रहे है।
१९८४ के बाद जब श्रीजी ने सिटी पैलेस संग्रहालय को अपनी देखरेख में लिया तब संग्रहालय अपनी शैशवावस्था में था। प्रस्तावित अधिनियमों के अनुरूप अपने पूज्य पिताश्री द्वारा सौंपी गई महत्वपूर्ण विरासत का संवर्द्धन व इतने विशाल परिसर की देखभाल और रखरखाव का कार्य दृढ-संकल्प के साथ आरंभ किया। आपने कर्त्तव्यों के प्रति समर्पण, नेतृत्व क्षमता, प्रबंधकीय कौशल से विरासत संरक्षण के क्षेत्र में ऐसे कीर्तिमान स्थापित किए है जिससे आलोचकों के मुंह बन्द हो गए और प्रशंसकों के पास अपने वर्णन के लिए शब्दों की कमी हो गई। श्रीजी ने पुरखों की विरासत को नव्य-भव्य स्वरूप प्रदान कर भावी पीढी के लिए इन्हें अक्षुण्णता के शिखर पर पहुंचाया है। श्रीजी हुजूर मेवाड की जीवंत विरासत के माध्यम से युवा पीढी को प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं।
मैं, श्रीजी अरविन्द सिंह मेवाड को तब से जानता हूँ जब हम मेयो कॉलेज अजमेर में एक साथ अध्ययन करते थे, वे मेरे जूनियर थे। चाय की जेम्स फिनले एंड कंपनी के बाद मैंने टाटा टी में लगभग ३४वर्षों से अधिक अपनी सेवाएं प्रदान की एवं सेवानिवृत्ति के पश्चात् पुनः श्रीजी हुजूर के सम्फ में आया। १९९५ में मुझे महाराणा मेवाड चैरिटेबल फाउण्डेशन में कार्य करने का सौभाग्य मिला। मैंने श्रीजी हुजूर से न केवल प्रशासनिक कार्य बल्कि मानवीय मूल्यों और दया के भावों को सीखा है। श्रीजी सभी के साथ बिना किसी भेदभाव के समान व्यवहार रखकर मिलते हैं, यही श्रीजी की महानता है और सही मायने में वे एक महान शिक्षक भी है।