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राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता को लेकर विचार-विमर्श

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19 Jan 19
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राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता को लेकर विचार-विमर्श

उदयपुर,   सूचना केंद्र में शुक्रवार को राजस्थानी भाषा की मान्यता के मुद्दे पर लम्बे समय से सक्रिय एवं राजस्थानी मासिक श्माणकश् के सम्पादक पदम मेहता की उपस्थिति में शहर के रचनाधर्मियों की बैठक आयोजित की गई। उक्त बैठक में राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता को लेकर उज्जवल सम्भावनाओं की बात उभर कर सामने आई। तथा यह विश्वास व्यक्त किया गया कि लोक सभा के बजट सत्र में राजस्थानी के साथ-साथ भोजपुरी एवं छत्तीसगढ़ी भाषाओं को आठवीं अनुसूची में जोड़ने का प्रस्ताव पारित हो जाएगा।

विचार-विमर्श के दौरान राजस्थानी के विभिन्न रचनाधर्मियों ने अपने विचार साझा करते हुए इस तथ्य पर जोर दिया कि राजस्थानी को न केवल शिक्षा एवं रोजगार से जोड़े जाने की महती आवश्यकता है बल्कि इस बात की भी आवश्यकता है कि हम अपने घरों में नई पीढ़ी के बीच राजस्थानी भाषा को व्यवहार में बरतना शुरु करें। ऐसा होने पर ही हम राजस्थानी के प्रति हमारे मन में मौजूद हीनता बोध से बाहर निकल सकेंगे। स्कूल स्तर पर विद्यार्थी राजस्थानी का चयन करें इसके लिए शिक्षा विभाग तथा विभिन्न समुदायों को पुरजोर कोशिश करनी होगी।चर्चा के दौरान यह मुद्दा भी सर्व सम्मति से उभरा कि राज्य सरकार अपने स्तर पर विधानसभा से प्रस्ताव पारित करके राजस्थानी को द्वितीय राजभाषा का दर्जा बिना किसी बाधा के दे सकती है।

उक्त बैठक में गीतकार किशन दाधीच, वरिष्ठ साहित्यकार-आलोचक कुंदन माली, वरिष्ठ साहित्यकार ज्योतिपुंज, कवि-चित्रकार चेतन औदिच्य, कहानीकार गौरीकांत शर्मा, गीतकार पुरुषोत्तम पल्लव,लालदास पर्जन्य, करुणा दशोरा, अनुश्री राठौड़,शिवदान सिंह जोलावास, कौशल मूंदड़ा, रवि शर्मा, नाना लाल आचार्य, दिनेश गोठवाल, राहुल सिंह भाटी आदि उपस्थित रहे।


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