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धारा 66 ए पर संप्रग से अलग थी NDA की राय

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25 Mar 15
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सरकार ने आज स्पष्ट किया कि सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66ए पर उसकी राय पूववर्ती संप्रग सरकार से अलग थी और उसने इस बारे में उच्चतम न्यायालय को लिखित में सूचित किया था कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आजादी का सम्मान करती है और वह सोशल मीडिया पर ईमानदार विरोध या आलोचना पर लगाम लगाने के पक्ष में नहीं है। इसके साथ ही इस सरकार ने न्यायालय से यह आग्रह भी किया था कि वह अतिरिक्त, अधिक सख्त दिशा निर्देश लाने की इच्छा रखती है ताकि धारा 66-ए का दुरूपयोग रोक जा सके। इस धारा के तहत वेबसाइटों पर कथित ‘अपमानजनक’ सामग्री डालने पर किसी को गिरफ्तार किया जा सकता है।

केंद्रीय आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में कहा, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में हमारी सरकार ने बहुत ही सोच समझकर फैसला किया कि हम पूर्ववर्ती सरकार के रुख का समर्थन नहीं करते हैं।’ उन्होंने कहा, 'हम अभिव्यक्ति की आजादी का समर्थन करते हैं। हम सोशल मीडिया पर विचारों, संवाद का आदर करते हैं और हम सोशल मीडिया पर ईमानदार विरोध, मत, नामंजूरी या आलोचना के संवाद पर लगाम लगाने के पक्ष में नहीं हैं।’

उच्चतम न्यायालय के फैसले पर शुरुआती टिप्पणी में प्रसाद ने कहा कि सरकार ने जोर दिया था कि वह सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66 ए की किसी व्याख्या का समर्थन नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार ने उच्चतम न्यायालय में अपने हलफनामे में भारत सरकार की ओर से हमने स्पष्ट कहा कि 'अगर धारा 66 ए की व्याख्या अनुच्छेद 19 (1) तथा अनुच्छेद 19 (2) के साथ मेल नहीं खाती है हम इस व्याख्या का किसी भी तरह समर्थन नहीं करेंगे।’
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