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मप्र में भाजपा के लिए बजी खतरे की घंटी

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21 Jan 18
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मध्य प्रदेश में 20 नगरीय निकायों के चुनाव नतीजे भारतीय जनता पार्टी के लिए खतरे का संकेत देने वाले हैं। नगरीय निकायों के 20 अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही 9-9 सीटों पर जीत मिली है। एक सीट पर भाजपा की बागी उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल रहीं हैं, जबकि एक स्थान सेमरिया के वोटों की गिनती कोर्ट द्वारा लगाई रोक के कारण नहीं हुई है।
भाजपा का एक उम्मीदवार र्निविरोध निर्वाचित होने में सफल रहा। जिन नगरीय निकायों में चुनाव हुए हैं, उनमें ज्यादतर आदिवासी बाहुल्य इलाके हैं। चुनावों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जमकर प्रचार किया था, लेकिन कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कोई दिलचस्पी किसी स्तर पर नहीं दिखाई।
दिग्विजय सिंह के गृह नगर राघोगढ़ में सेंध लगाने की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की कोशिश भी सफल नहीं हो पाई। दिग्विजय सिंह इन दिनों नर्मदा परिक्रमा कर रहे हैं। इस कारण भाजपा को उम्मीद थी कि वह राघोगढ़ के किले को भेदने में कामयाब रहेगी। चुनाव प्रचार के दौरान यहां मुख्यमंत्री सिंह की सभा के बाद कांग्रेस और भाजपा के कार्यकर्त्ताओं के बीच विवाद हुआ। प्रशासन को धारा 144 लगाना पड़ी थी। इन चुनावों में भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही अध्यक्ष के पद के लिए 43-43 फीसदी वोट मिले हैं।
भाजपा के चुनाव जीतने वाले पार्षदों की संख्या भी ज्यादा है। इस कारण भाजपा 46 फीसदी वोट हासिल करने में सफल रही है, जबकि कांग्रेस के पार्षद उम्मीदवारों को कुल 42 फीसदी वोट मिले हैं। इन 20 स्थानों पर पार्षदों के कुल 356 पदों का चुनाव हुआ। भाजपा के 194 और कांग्रेस के 145 पार्षद उम्मीदवारों चुनाव जीते हैं। 13 निर्दलीय पार्षद चुने गए हैं।
मध्य प्रदेश में इस साल के अंत तक विधानसभा के चुनाव होने हैं। राज्य की कुल 230 सीटों में 47 सीटें आदिवासी और 35 सीटें दलित वर्ग के लिए आरक्षित हैं। वर्ष 2013 में हुए विधानसभा चुनाव के ठीक पहले भाजपा द्वारा नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के कारण कांग्रेस को अपनी परंपरागत सीटों से हाथ धोना पड़ा था। पहली बार भाजपा को निमाड़-मालवा और महाकौशल के आदिवासी क्षेत्रों में एतिहासिक सफलता हासिल हुई थी।
पिछले कुछ समय से दलित-आदिवासी भाजपा से नाराज चल रहे हैं। इसकी वजह पार्टी की आरक्षण को लेकर नीति मानी जा रही है। राज्य में दलित और आदिवासी वोटों को साधने के लिए मुख्यमंत्री ने कई नई योजनाएं भी लागू की हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक (आरएसएस) संघ भी दलित और आदिवासी वोटों को साधने के लिए एक श्मशान, एक जलाशय और एक देवालय योजना पर तेजी से काम कर रहा है।
ताजा चुनाव नतीजों ने संघ और भाजपा दोनों की ही चिंता बढ़ा दी है। धार और बड़वानी जैसे आदिवासी बाहुल्य जिलों में कांग्रेस की जीत को बदलाव का संकेत माना जा रहा है।
मध्य प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने चुनाव परिणामों के बाद कहा कि पार्टी हार के कारणों की समीक्षा करेगी। लंबे समय बाद ऐसी स्थिति बनी है कि कांग्रेस ने चुनावी मुकाबले में अपने आपको भाजपा की बराबरी पर ला खड़ा किया है। कांग्रेस के पक्ष में आए परिणाम चौंकाने वाले इसलिए भी हैं, क्योंकि पार्टी के दिग्गज नेताओं ने अपने उम्मीदवारों के पक्ष में चुनाव प्रचार करना तो दूर जनता से मतदान करने की अपील भी नहीं की।
सामान्यत: राज्य के कांग्रेसी नेता स्थानीय चुनावों में कोई दिलचस्पी नहीं लेते हैं। पिछले 14 साल से भाजपा इसका फायदा उठाते हुए चुनाव जीत जाती है। आने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस पार्टी में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर घमासान मचा हुआ है। पिछले कई दिनों से अनुमान लगाया जा रहा है कि कांग्रेस मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुकाबले में पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाएगी।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की पसंद भी सिंधिया ही बताए जाते हैं। सिंधिया के नाम पर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे नेता सहमत नहीं हो रहे हैं। इस कारण सिंधिया के नाम का एलान नहीं हो पा रहा है। पार्टी में चल रहे चेहरे की घमासन के बीच आए इन चुनाव परिणामों से यह संकेत साफ मिल रहे हैं कि लोगों में राज्य की शिवराज सिंह सरकार के खिलाफ नाराजगी है।
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