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ब्रह्माण्ड को जानने का हमारा ज्ञान बाल्यावस्था के समानःसत्यपालसिंह

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06 Jul 19
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ब्रह्माण्ड को जानने का हमारा ज्ञान बाल्यावस्था के समानःसत्यपालसिंह

उदयपुर, सांसद एवं पूर्व केन्द्रीय राज्य मंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह ने कहा कि जीवन में हर ओर विज्ञान और अध्यात्म का संगम दिखाई देता है। विज्ञान और अध्यात्म दोनों सत्य की यात्र है, ये खोज के मार्ग हैं, परस्पर पूरक हैं, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हमारा पुराज्ञान सम्पदा अत्यधिक सम्पन्न है तथा विडम्बना है कि हम पाश्चात्य ज्ञान विज्ञान पर ही आश्रित हैं। विज्ञान के सन्दर्भ में हमारा ज्ञान अभी बाल्यावस्था का ही है क्योंकि हम समस्त ब्रह्माण्ड का 4 प्रतिशत से अधिक नहीं जानतें।

डॉ. डी.एस. कोठारी के 114 वें जन्मदिन पर आयोजित अध्यात्म विज्ञान दिवस एवं स्मृति संगोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे। उन्हने कहा कि स्थूल और सूक्ष्म चेतना के योग की समझ ही हमें सत्य और परमानन्द तक ले जा सकती हैं। भौतिक एवं लौकिक उपलब्धियों के लिए विज्ञान आवश्यक है लेकिन अध्यात्म हमें लौकिक विसंगतियों में स्थिरप्रज्ञ रहने का सामर्थ्य प्रदान करता है। यहीं कारण है कि विज्ञान हमें सुख सुविधा देता है जबकि अध्यात्म हमें आनन्द देता है। आपने उपनिषद के श्लोकों एवं कथाओं के माध्यम से आदिकाल से ई६वर की उपस्थिति को स्पष्ट किया, साथ ही अनेक सरल उदाहरणों से विज्ञान व अध्यात्म के समन्वय को सिद्ध किया।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में मोहनलाल सुखाडया विश्वविद्यालय के विज्ञान महाविद्यालय के अधिष्ठाता प्रो. बी.एल. आहूजा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए डॉ. डी.एस. कोठारी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर डॉ. डी.एस. कोठारी की पौत्री दामाद शरद भंसाली ने डॉ. डी.एस. कोठारी के पारिवारिक एवं विज्ञान सम्बन्धी प्रेरक प्रसंग सुनाकर सभी को भावविभोर किया।

विज्ञानसमिति के संस्थापक डॉ. के.एल. कोठारी ने समिति के कार्यों की रूपरेखा प्रस्तुत की एवं­ प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप, भक्तिमयीं मीरा पर मेवाड को गौरव है उसी तरह ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र् में प्रो. डी.एस. कोठारी का बहुमूल्य योगदान है, उन्हें मेवाड की विभूति के रूप में सदैव याद किया जाना चाहिए। विज्ञान समिति के अध्यक्ष डॉ. एल.एल. धाकड ने संगोष्ठी परम्परा का उल्लेख करते हुए अतिथियों का परिचय दिया।

दर्शन विज्ञान प्रकोष्ठ के संयोजक डॉ. एन.एल. कच्छारा ने अध्यात्म व विज्ञान के आपसी समन्वय की आवश्यकता बताते हुए संगोष्ठी की वैचारिक पृष्ठ भूमि व्यक्त की। इसरो के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. सुरेन्द्र पोखरना ने अध्यात्म के गूढ रहस्यों का विश्लेषण एवं विवेचन किया तथा उदयपुर में अन्तरराष्ट्रीय अध्यात्म विज्ञान शोध संस्थान की स्थापना की योजना प्रस्तुत की।

कोटा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. पी.के. दशोरा ने संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहा कि लोक कल्याण के लिए अध्यात्म एवं विज्ञान का योग आवश्यक है और इसे पौराणिक संदर्भों में व्यक्त किया। माईन्ड, मेटर और मेन के अन्तर्सम्बन्धों को उजागर किया। विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. नीरज शर्मा ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. के.पी. तलसेरा एवं प्रकाश तातेड ने किया। इस कार्यक्रम में नगर के प्रबुद्ध नागरिक एवं महिलाएं उपस्थित रहीं। उनमें डॉ. एस.के. वर्मा, डॉ. बी.पी. भटनागर, डॉ. देव कोठारी, डॉ. के.बी. शर्मा, डॉ.ज्योति भंसाली, डॉ. एस. आर. जाखड, डॉ. वाय एस कोठारी, मुनी६ा गोयल, डॉ. सुजान सिंह प्रमुख थे। इस अवसर पर तुलसी निकेतन रेजीडेन्शियल स्कूल, दिल्ली पब्लिक सीनियर सैकण्डरी स्कूल, दिगम्बर जैन बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय, जवाहर जैन सीनियर सैकण्डरी स्कूल के विद्यार्थियों ने इस संगोष्ठी का लाभ लिया।


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