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नाम को सार्थक किया दिव्यांग महावीर ने

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10 Jan 20
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नाम को सार्थक किया दिव्यांग महावीर ने

उदयपुर,  ’कौन कहता है-आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबयित से उछालों यारों।’ कवि दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों को अपने नाम के अनुरूप सार्थक कर दिखाया है, ब्याबर-केकड़ी निवासी महावीर सिंह ने। जन्म से ही निःशक्तता से अभिशप्त महावीर सिंह ने घुटनों के बल 24 वर्ष गुजारे लेकिन हौसला नहीं खोया और वे घर-परिवार और समाज के कार्यों में सदैव आगे ही आगे रहे। महावीर सिंह का सम्बल बने पिता ने उनकी  शिक्षा-दीक्षा का गरीबी के बावजूद उचित प्रबंध किया। महावीर सिंह कुछ वर्षांे पूर्व पांवों पर खड़े होने की ललक लेकर नारायण सेवा संस्थान में आए जहां उनकी पोलियो करेक्टिव सर्जरी की गई और वे दो-तीन माह बाद ही वे बैसाखी के सहारे खड़े होने और चलने लगे। उन्होंने ईश्वर का धन्यवाद किया और साथ ही संकल्प भी लिया कि वे घर-परिवार के पोषण के साथ उन जैसे ही दिव्यांगों की सेवा और सहायता में शेष जीवन गुजार देंगे। ऐसा वे कर भी रहे हैं। पिछले ही वर्ष उन्हें 3 दिसम्बर को विश्व विकलांगता दिवस पर निदेशालय, विशेष योग्यजन, राजस्थान सरकार द्वारा प्रशस्ति पत्र व 10 हजार रूपये की नकद राशि से सम्मानित किया गया। राजस्थान विकलांग संघ के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में महावीर सिंह विकलांगों के कल्याण कार्यों में सतत् सक्रिय हंै।


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