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हिन्दी चिन्ता का नहीं चिन्तन का विषय

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15 Sep 18
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हिन्दी चिन्ता  का नहीं चिन्तन का विषय उदयपुर राजस्थान विद्यापीठ के संघटक श्रमजीवी महाविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित विस्तार व्याख्यान में मुख्य वक्ता डॉ. जयप्रकाश शाकद्वीपीय ने बताया की भाषा संप्रेषण का एक सशक्त माध्यम है। वैश्वीकरण के इस दौर में हिन्दी निरन्तर सृमद्ध हुई है। हिन्दी आज हमारे लिए चिन्ता का नहीं बल्कि चिन्तन का विषय है। किसी भी राष्ट्र का गौरव उसकी राष्ट्र भाषा से जुडा हुआ है। राष्ट्र की एकता व अंखडता के लिए राष्ट्र भाषा की महत्ती आवश्यकता है। संगम सचिव प्रो. नीलम कौशिक ने कहा की हिन्दी हमारे जीवन मूल्यों को सीखने हेतु सहायक भाषा है। संविधान ने हिन्दी को राष्ट्र भाषा के पद पर आसिन्न कर दिया, लेकिन विडम्बना यह है कि जो भाषा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्र चेतना का प्रतीक थी स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राजभाषा बन गई और राजभाषा अधिनियम के बाद आज मात्र सम्फ भाषा के रूप में जानी जाने लगी है। प्रो. हैमेन्द्र चण्डालिया ने कहा की हिन्दी का देश की स्वतन्त्रता व संरचना में महत्वपूर्ण योगदान रहा। प्राचार्य प्रो. सुमन पामेचा ने बताया की हिन्दी आज नदी की तरह विश्व पटल पर अग्रसर हो रही है। विभागाध्यक्ष प्रो. मलय पानेरी ने स्वागत उद्बोधन में कहा की भाषा अपने प्रभाव की अपेक्षा प्रवाह से समृद्ध होती है और हिन्दी ने अपने इसी गुण के कारण विश्व स्तर पर जगह बनायी है। संचालन डॉ. राजेश शर्मा ने किया तथा धन्यवाद डॉ. ममता पानेरी ने दिया।


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