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कैंसर जागरूकता के लिये 66 दिन मोटरसाईकिल पर पूरा देश घुमे गौरव

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23 Oct 18
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कैंसर जागरूकता के लिये 66 दिन मोटरसाईकिल पर पूरा देश घुमे गौरव
उदयपुर। पेशे से वेडिंग प्लनर मूलतः जोधपुर निवासी गौरव मोहनोत ने अकेले 66 दिन तक मोटरसाईकिल पर साढे 16 हजार किमी. की यात्र कर आज पुनः उदयपुर पंहुचे। इस दौरान वे क८मीर से कन्या कुमारी व अरूणाचल प्रदेश से लेकर लेह,भूटान, नेपाल तक की यात्र की और हर जगह उन्हें बच्चों,अध्यापकों एवं जनता का अपार स्नेह मिला। यात्र के दौरान करीब 40 हजार लोगों से मिलें और उन्हें उन सभी वस्तुओं के बारें में बताया जिनसे कैंसर होने की संभावना होती है।
मोहनोत ने बताया कि अपने जोधपुर निवासी सचिन श्रीवास्तव के मात्र् ढाई व६ार् के बेटे दक्ष की ब्लड कैंसर से हुई मौत ने उन्हें इतना झकझोरा कि वे इससे बचने के लिये जनता को जागरूक करने के लिये देशभर की यात्र पर निकल पडे। यात्र के दौरान ई८वर ने भी उनका साथ दिया। बीच में लगातार पन्द्रह दिन तक बेंगलोर तक उन्हें लगातार बारीश का सामना करना पडा लेकिन बारीश भी उनकी राह में बाधा नहीं डाल पायी।
अनेक स्थानों पर वे स्कूली एवं कॉलेज के छात्रें से मिले और उन्हें हर प्रकार के नशे से दूर रहकर कैंसर को आमंत्र्ण नहीं देने के लिये जागरूक किया। उन्होंने बताया कि देश में कुल कैंसर रोगियों में से 40 प्रति कैंसर रोगी अकेले पंजाब में पाये जाते है क्योंकि वहंा पेस्टिसाईड्स का भरपूर उपयोग होता है और कैंसर होने का यह सबसे बडा मुख्य कारण है। इसके अलावा 30 प्रतिशत कैंसर जेनेटिक भी होता है जिससे सिर्फ जागरूकता से ही बचाव संभव है।
बीकानेर में स्पेशल कैंसर हॉस्पिटल है और वहां सिर्फ कैंसर रोगियों के स्पेशल रेल भी चलती है जिसमें सिर्फ कैंसर रोगी ही सवार होते है। इस पूरी यात्र का खर्च उन्होंने स्वयं ने वहन किया है। यात्र के दौरान उन्हें चतुर्थ स्टेज पर चल रहा एक ऐसा कैंसर रोगी भी मिला जिसे लंग्स का कैंसर था उसमें जीने की बहुत चाह थी लेकिन वह भी जनता था कि अब उसका जीवन लम्बा नहीं है। इसको लेकर मैं भी काफी व्यथित हुआ था।
66 दिन में वे प्रतिदिन 300-400 किमी. चलते थे सिर्फ एक दिन ऐसा जब उन्होंने 700 किमी की यात्र की थी। वे लेह के पास खरडूंगला भी गये जो समुद्रतल से 18320 मीटर की उंचाई पर स्थित है और वहंा जाकर देश के सिपाहियों से मिले।
यात्र के दौरान वे यात्र के दौरान वे रतलाम, इंदौर, जलगांव, पुणे, कोल्हापुर, पंजिम,उडुपी, बेंगलुरु,कोयंबटूर,तिरूवनंनतपुरम, कन्याकुमारी, रामेश्वरम, पांडिचेरी, चेन्नई, ओंगोल, हैदराबाद, विजयवाडा, विशाखापत्तनम, ब्रह्मपुर, भुवनेश्वर, खडगपुर, कोलकाता, दुमका, सिलीगुडी, अलीपुर द्वार, थिम्पू, कलिम्पोंग,दार्जिलिंग, काठमांडू, बुटवल, गोरखपुर, लखनऊ, लखीमपुर खरी, नैनीताल, कौसानी, कर्णप्रयाग, बद्रीनाथ, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, देहरादून, चंडीगढ,अमृतसर, पठानकोट, चंबा, किश्तवाड,श्रीनगर, द्रास, कारगिल, लेह, हेनले भी गये। इस कार्य में उनकी पत्नी प्रतिभा सिंघवी मोहनोत का अप्रत्यक्ष रूप से पूर्ण सहयोग रहा।

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