उदयपुर । तेलीवाड़ा स्थित हुमड़ भवन में अयोजित धर्मसभा में परम पूज्य चतुर्थ पट्टाधीश प्राकृताचार्य ज्ञान केसरी आचार्य श्री 108 सुनीलसागर जी महाराज के सुशिष्य क्षुल्लक सुमित्र सागरजी महाराज ने उपस्थित श्रावकों से कहा कि जीवन को अगर शांत, निर्मल और सुखी बनाना है तो अहंकार को त्यागना होगा। प्रभुश्री राम वह तो स्वयं प्रभु थे, अयोध्या नगरी ही क्यों तीनों लोकों के राजा थे लेकिन उनमें भी किंचित मात्र भी अहंकार नहीं था। अगर वह अपने जीवन में अहंकार को स्थान देते तो आज न तो रामायण लिखी जा सकती थी, न ही पढ़ी जा सकती थी और ना ही प्रभुश्री राम मर्यादा पुरूषोत्तम केे नाम से जाने जाते।
महाराज ने कहा कि आज कोई भी व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता है कि मुझ में अहंकार नहीं है। अहंकार की कोई एक परिभाषा नहीं है। यह मकान मैंने बनाया, यह कार मैंने खरीदी, बच्चों को मैंने पढ़ाया, इनकी शादी मैंने करवाई, इन लोगों की मुसीबत के समय मैंने मदद की। मनुष्य के अन्दर यह जो मैं है ना यही अहंकार है। जब तक इस मैं रूपी अहंकार को त्यागा नहीं जाएगा तब तक मनुष्य के जीवन में कभी शांत परिणाम नहीं आ सकता है।
सकल दिगम्बर जैन समाज अध्यक्ष शांतिलाल वेलावत ने बताया कि धर्मसभा में पूर्व आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज के सभी पूर्वाचार्यों के चित्र का अनावरण किया गया। उसके बाद शांतिधारा, दीप प्रज्वलन, सुनीलसागाजर महाराज ससंघ की अद्वविली सेठ शांतिलाल नागदा, सुरेशचन्द्र राज कुमार पदमावत, देवेद्र छाप्या, पारस चित्तौड़ा, विजयलाल वेलावत, राजपाल लोलावत, शांतिलाल चित्तौड़ा, कनक माला छाप्या आदि श्रावकों ने मांगलिक क्रियाएं की।
महामंत्री सुरेश राज कुमार पदमावत ने बताया कि धर्मसभा का संचालन बाल ब्रह्मचारी विशाल भैया ने किया जबकि मंगलाचरण बाल ब्रह्मचारी दीदी पूजा हण्डावत ने किया।
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