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जीवन में समता के साथ धैर्य जरूरीःसुमित्र सागरजी

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19 Aug 18
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जीवन में समता के साथ धैर्य जरूरीःसुमित्र सागरजी
उदयपुर, हुमड़ भवन में प्रातःकालीन धर्मसभा में क्षुल्लकश्री सुमित्र सागरजी महाराज ने कहा कि जिसके जीवन में धैर्य और समता होती है उसका जीवन सुखी और आनन्दित होता है और जो इनसे परे होकर अपना जीवन यापन करता है वह हमेषा ही दुखी और तनावग्रस्त होता है। चाहे कोई भी व्यक्ति हो वह जीवन के किसी भी क्षेत्र में जाए या काम अगर वह लोभ और स्वयं के स्वार्थ के वषीभूत होकर ही काम करेगा तो वह कभी भी सफल नहीं हो पाएगा। लोभ और स्वार्थ कुछ समय तो मनुश्य को आनन्दित कर सकता है लेकिन उसके दूरगामी परिणाम बड़े खतरनाक होते हैं।
क्षुल्लकजी ने कहा- प्रभु श्री राम के जीवन में भी धैर्य और समता भाव था और उन्होंने इनका आजीवन पालन किया तभी जाकर तो मर्यादा पुरूशोत्तम श्री राम कहलाए। भगवान भी हमेषा उन पुण्यात्माओं के पास ही रहते हैं जो परोपकारी हो, धर्म- गुरू में आस्था रखते हो और जो धैर्य और समता भाव के धनी हो। इसलिए आपको प्रभु के चरणों में स्थान पाना है, मोक्ष मार्ग पर जाना है तो जीवन में कभी भी लालच और स्वार्थ के वषीभूत होकर दूसरों का अहित मत करना। जो मिले उसमें ही सन्तोश करके और उसे प्रभु का प्रसाद समझ कर ग्रहण करते रहना। ऐसा करने से प्रभु भी आपका साथ देंगे। इसलिए जीवन में समता भाव और आत्मा के स्वभाव को पहचान कर आत्म कल्याण की ओर बढ़ने का प्रयास करो इसी में जीवन का सार है।
सकल दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष षांतिलाल वेलावत ने बताया कि झीलों की नगरी उदयपुर में परम पूज्य चतुर्थपट्टाधीश आचार्य श्री 108 सुनीलसागरजी महाराज के सुसप्त शिष्य धर्मभूशण जी एवं समस्त सन्तों के सानिध्य में बीसा हुमड़ भवन में चातुर्मास के तहत जैन रामायण का वाचन किया जा रहा है। महामंत्री सुरेष राज कुमार पदमावत ने बताया कि धर्मसभा में उदयपुर षहर के साथ ही मेवाड़- वागड़ अंचल से भी कई श्रावक हुमड़ भवन पहुंच कर जैन रामायण श्रवण करने का लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
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