उदयपुर। श्रमणसंघीय आचार्य डॉ.shiv muniमुनि महाराज ने कहा कि जिस प्रकार मिश्री पानी में मिलकर अपने अस्तित्व को खो देती है वैसे ही परमात्मा की भक्ति में हम भी ऐसे लीन हो जाए की परमात्मा और आफ कोई बीच कोई फासला ही नहीं रहें। सिद्ध विशाल बरदग का वृक्ष है और हम बीज है। हमें वृक्ष बनना है तो जीवन में सहजता, सरलता, विनय, समर्पण और श्रद्धा की नितांत आवश्यकता है।
वे आज महाप्रज्ञ विहार स्थित शिवाचार्य समवसरण में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्हने कहा कि कभी किसी को भोजन में अन्तराय नहीं देना चाहिए। साधु गोचरी जाते हुए यदि घर के सामने गाय या कोई ब्राह्मण भिक्षु खडा है तो उसको लांघकर नहीं जाना चाहिए। आफ पास उसको अगर कपडे, भोजन, ज्यादा है तो बांट देना चाहिये। किसी गरीब को दुःख देकर आपका दिल पसीजता नहीं है तो आप इंसान नहीं हो सकते हैं। क्या साथ लेकर आए थे और क्या साथ में लेकर जाओगें यही से लिया है और यही छोडकर जाना है। आज आफ पास धन है तो बांट देना चाहिये क्योंकि जर-जोरू और जमीन का कभी विश्वास मत करना क्योंकि वे कब धेखा दे जाए, कब विश्वासघात हो जाए कुछ पता नहीं चलता हैं।
उन्हने कहा कि जीवन में भाव महत्वपूर्ण है किसी की सेवा करने का अवसर आए तो चूकना मत उत्कृष्ट भाव से की गई सेवा अनन्त सुख देता है।
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