 
                            राजस्थानी और हिन्दी दोनों भाषाओं में समान रूप से सकारात्मक चिंतन प्रस्तुत कर विपुल साहित्य रचने वाली सशक्त हस्ताक्षर का नाम है बसन्ती पंवार। साहित्य की ऐसी कोई विधा नहीं जिस पर इन्होंने कलम न चलाई हो। आपको राजस्थानी भाषा की पहली महिला उपन्यासकार, पहली लोरीकार और सशक्त व्यंग्यकार का गौरव मिला। पहली बार मिलने पर कोई कह नहीं सकता कि यही बहुचर्चित लेखिका और स्वयंसिद्धा बसन्ती पंवार हैं।
बड़ी-सी लाल बिन्दी और भावपूर्ण चेहरा बोलती आँखें और मृदुभाषी बसन्ती जी को नजरअंदाज करना कतई आसान नहीं है। सहज सरल स्वभाव वाली बसन्ती जी का बात करने का सलीका, इनकी तहजीब और तरीका अनायास ही मन मोह लेता है। अब तक करीब पच्चीस पुस्तकें लिख चुकी बसन्ती जी की रचनाएँ, पुस्तकें बोधगम्य हैं। अनुभवों की आँच में तपी इनकी कविताएँ, कहानियाँ, लघुकथाएँ, आलेख सब कुछ सारगर्भित, सार्थक तो हैं ही, साथ ही सकारात्मक चिंतन को दिशा देने वाले हैं। बसन्त पंचमी के शुभदिन जन्मी बसन्ती जी पर माँ सरस्वती की असीम कृपा है।
जयपुर से प्रकाशित अनुकृति जुलाई सितंबर 2025 में इनके बारे में लिखा कि स्कूली वार्षिक पत्रिका में लिखी इनकी रचनाएँ लेखिका के रूप में इनकी शुरुआत थी। पहला उपन्यास 'सौगन' 1997 में राजस्थानी भाषा में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास पर इन्हें "सांवर दैया पेली पोथी पुरस्कार" 1998 में मिला। उसके बाद सम्मान और पुरस्कारों का जो सिलसिला शुरू हुआ तो अब तक 60 की संख्या पार हो गई है। अभी सिलसिला जारी है।
साहित्यकार अपने युग का प्रतिनिधि होता है। युग की प्रवृत्तियों, भावनाओं और आशा-आकांक्षाओं को ही वह अपनी रचनाओं से मूर्त रूप प्रदान करता है। साहित्यकार वही बात कहता है जो सब लोगों के अनुभव में दिन-रात आती है।" उपरोक्त पंक्तियों की लेखिका ने अक्षर-अक्षर इन्हीं भावों को साहित्य रचते समय आत्मसात किया है। इनकी साहित्यिक यात्रा वाकई अद्भुत है, अनुपम है।
इनके संघर्ष, नौकरी और घर-परिवार में संतुलन बनाते हुए शिक्षा और सपनों की, मौन से मुखर होने तक की तमाम जद्दोजेहद को समझने और जानने का मौका मिला। साधारण से असाधारण प्रतिभा की धनी बसन्ती जी के जीवन के विविध पहलुओं से साक्षात्कार करने के बाद मैं दावे से कह सकती हूँ कि इनके पूरे जीवन में हार, थकान, निराशा जैसे शब्दों की गुंजाइश नहीं है।
स्त्री जीवन की त्रासदी, विडम्बनाएँ और स्वयं सिद्धा बनने तक की चुनौतियों को बड़ी शिद्दत से इन्होंने रचनाओं में कलमबद्ध किया है। वे कहती हैं, "किसी को सातों सुख नहीं मिलते लेकिन फिर भी जीवन में मुझे जो भी मिला, प्रभु और बड़ों के आशीर्वाद स्वरूप खूब मिला। संतुष्ट हूँ मैं अपने जीवन से। अब तो कुछ भी आकांक्षा या इच्छा नहीं है हाँ हर माँ की इच्छा होती है कि उसका परिवार, उसके बच्चे फले-फूलें.... बड़े प्रेम से मिल-जुलकर रहें यही मैं भी चाहती हूँ।"
साहित्य संबंधित कुछ अधूरे काम हैं जैसे 'हिन्दी से राजस्थानी भाषा में शब्दकोश का निर्माण' एवं 'उपनषिद का राजस्थानी भाषा में अनुवाद' ये दोनों कार्य पूरे हो जाएँ। ईश्वर उनकी दोनों अभिलाषा पूर्ण करें, यही दुआ है। बहुत खूबसूरत संदेश उनका यहाँ दे रही हूँ- 'मैं चाहती हूँ कि घर-परिवार, समाज, देश-दुनिया में निस्वार्थ प्रेम का साम्राज्य हो, सभी दूध और पानी की तरह मिलकर रहें। जानती हूँ मेरी यह इच्छाएँ असम्भव हैं लेकिन चाहत का कोई क्या करे...." नवोदित लेखिकाओं के लिए बसन्ती जी का संपूर्ण जीवन और उनका सार्थक लेखन प्रेरक बनेगी।
बसन्ती जी कागज और कलम को अपने अभिन्न मित्र मानती हैं। जिन्होंने उन्हें साहित्य जगत में पहचान दिलाई और उनके भावों को आत्मसात किया। उम्मीद है हमेशा की तरह अनुकृति का यह अंक आप लोगों को पसंद आएगा।
"मुझे मिटानी हैं
नफरत, ईर्ष्या... द्वेष की भावनाएँ
लड़ाई.... झगड़े....खून-खराबा.... दरिंदगी
फिर खो जाना है
मिल जाना है पंचतत्वों में....
ऐसे ही मेरा खो जाना
हो जाएगा सार्थक
इसलिए, मुझे खो जाना है एक दिन
प्रकृति की गोद में....।"
परिचय :
विदुषी साहित्यकार बसन्ती पंवार का जन्म
5 फरवरी 1953 को बीकानेर में पिता स्व. राणालाल पंवार एवं माता रूकमा देवी के परिवार में हुआ। आपने एम. ए. (राजस्थानी भाषा), बी. एड. की शिक्षा प्राप्त की। आप
राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर की पूर्व सदस्य हैं ।महिलाओं की साहित्यिक संस्था सम्भावना की अध्यक्ष, खुशदिलान-ए-जोधपुर एवं अन्य संस्थाओं की सक्रिय सदस्य हैं।
राजस्थानी भाषा में आपकी सौगन का दूसरा संस्करण, अैड़ौ क्यूॅं ? दो उपन्यास, जोऊं एक विस्वास कविता संग्रह, नुवौ सूरज कहानी संग्रह, खुशपरी बाल कहानी संग्रह, धरणी माथै लुगायां’हिन्दी से राजस्थानी में अनूदित काव्य संग्रह, इंदरधनख’’ (संपादित गद्य संग्रह, हूंस सूं आभै तांई (अनुवाद हिन्दी से राजस्थानी में-संस्मरणात्मक निंबध,राधा रौ सुपनौ कहानी संग्रह, चूंटिया भरुं ?’ व्यंग्य संग्रह,कमाल रौनक रौ बाल कहानी संग्रह,
हालरियौ हुलरियौ बाल लोरी संग्रह,म्हैं बावळी काव्य संग्रह कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं।
राजस्थानी भाषा में आपकी कृतियां हारूंली तो नीं डॉ. पद्मजा शर्मा के हिन्दी काव्य संग्रह का राजस्थानी भाषा में अनुवाद , उपनिषद का राजस्थानी भाषा में अनुवाद ,हिन्दी से राजस्थानी शब्दकोष और मोनोग्राफ प्रकाशनाधीन हैं।
हिन्दी भाषा में आपकी कब आया बसंत कविता संग्रह, नाक का सवाल व्यंग्य संग्रह,
नन्हे अहसास काव्य संग्रह, तलाश ढाई आखर की’कहानी संग्रह, फाॅर द सेक ऑफ नोज अंग्रेजी में अनुवाद, अपना अपना भाग्य राजस्थानी आत्मकथा का हिन्दी में अनुवाद,
संस्कारों की सौरभ पत्र शैली में बाल निबंध,
बचा रहे धरती का ऑंचल प्रकृति काव्य और अहसासों की दुनिया काव्य संग्रह कृतियां का प्रकाशन हुआ है। प्यार की तलाश में प्यार उपन्यास, एक व्यंग्य संग्रह और एक काव्य संग्रह प्रकाशनाधीन कृतियाँ हैं।
राजस्थानी और हिन्दी की पत्र-पत्रिकाओं साझा संकलनों में कहानियाँ, कविताएँ, लेख, व्यंग्य, लघुकथाएँ, संस्मरण, पुस्तक समीक्षा आदि का लगातार प्रकाशन । आकाशवाणी जोधपुर, जयपुर दूरदर्शन से वार्ता, कहानी, कविता, व्यंग्य आदि का प्रसारण । राजस्थानी भाषा के ’’आखर’’ कार्यक्रम (जयपुर) में और जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर, राजस्थानी विभाग के ’गुमेज’ कार्यक्रम में भागीदारी ।
आप राजस्थानी भाषा की पहली महिला उपन्यासकार, पहली लोरी लेखिका एवं दूसरी व्यंग्यकार । राजस्थान विश्व विद्यालय, जयपुर से शोधार्थी सुमन वर्मा द्वारा बसन्ती पंवार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर पीएचडी हो रही है । केन्द्रीय साहित्य अकादमी, नई दिल्ली से पुरस्कृत उपन्यास के राजस्थानी भाषा में अनुवाद का कार्य, केन्द्रीय साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा सौंपा गया है । यूट्यूब पर मैं बसंत नाम से चेनल है। आपके पुरस्कारों और सम्मान की लंबी सूची हैं आपको देश भर की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थाओं द्वारा 5 दर्जन से अधिक अलंकरण और सम्मान प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है।