वी.बी.आर.आई. में राष्ट्रीय संगोष्ठी सह कार्यशाला: 

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Published on : 16 Oct, 25 11:10

आदिवासी/परंपरागत ज्ञान और पारंपरिक खाद्य एवं औषधीय पौधों का सतत उपयोग: प्रचार, संरक्षण और संवर्द्धन

वी.बी.आर.आई. में राष्ट्रीय संगोष्ठी सह कार्यशाला: 

उदयपुर.पारंपरिक स्वदेशी ज्ञान और पारंपरिक खाद्य एवं औषधीय पौधों के सतत उपयोगप्रसारसंरक्षण और सुरक्षा” विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी सह कार्यशाला का आयोजन 14 अक्टूबर, 2025 को विद्या भवन रूरल इंस्टीट्यूट (वी.बी.आर.आई.), उदयपुर परिसर में किया गया। कार्यशाला का उद्देश्य पारंपरिक खाद्य एवं औषधीय पौधों के प्रसारसंरक्षण और संवर्धन हेतु एक रणनीतिक रूपरेखा तैयार करना थाजिसमें प्रमुख विद्वानोंगैर-सरकारी संगठनों और प्रैक्टिशनरों की सक्रिय सहभागिता रही। इसने सामुदायिक ज्ञान प्रणालियों को सशक्त बनाने और आने वाली पीढ़ियों के हित में उनके सतत उपयोग को प्रोत्साहित करने पर भी विशेष ध्यान केंद्रित किया। कार्यक्रम संयोजक प्रोकनिका शर्मानिदेशकवी.बी.आर.आई. ने बताया की उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता श्री राजेंद्र जी भट्टमुख्य संचालकविद्या भवन सोसाइटीउदयपुर द्वारा की गयी एवं कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रोअशोक कुमार जैनपूर्व निदेशकएस.केइंस्टीट्यूट ऑफ एथनोबायोलॉजीजीवाजी यूनिवर्सिटीग्वालियर थे   कार्यक्रम के आयोजन में सहयोग सेंटर फॉर माइक्रोफाइनेंस तथा फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी (एफ..एस.) के द्वारा किया गया ।आयोजन सचिव डॉअनीता जैन ने बताया की कार्यक्रम चार सत्रों में आयोजित किया गया  सेमीनार के विभिन्न तकनीकी सत्रों की विषयवस्तु को बताते हुए उन्होंने कहा कि सेमीनार में 100 से प्रतिभागियों ने आनलाईन एवं आफलाईन भाग लिया।

कार्यशाला का उद्घाटन स्वप्रोएस.केजैन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए किया गयाजिन्हें भारत में एथनोबॉटनी का जनक माना जाता है। उनके द्वारा आदिवासी और पारंपरिक ज्ञान को मान्यता देने एवं संरक्षण के क्षेत्र में किए गए योगदान आज भी शोध और संरक्षण कार्यों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता प्रोकेजैन ने इस बात पर जोर दिया कि पारंपरिक खाद्य और औषधीय पौधों में स्वास्थ्यपोषण और सतत आजीविका के लिए अपार संभावनाएँ निहित हैंकिंतु वे बढ़ते खतरों का सामना कर रहे हैं। आईयूसीएन (IUCN) की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 21% औषधीय और सुगंधित पौधों की प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैंजो संरक्षण की तात्कालिक आवश्यकता को रेखांकित करती है। उन्होंने कहा की यदि हम प्रकृति के साथ नहीं रहे तो लोकवनस्पति विज्ञान का अध्ययन नहीं कर सकते 

अध्यक्षीय सम्बोधन में श्री राजेन्द्र भट्ट ने कहा कि भोजन के रुप में काम आने वाले पौधो की प्रजातियों पर विशेष रुप से जोर देना होगा। कार्यक्रम संयोजक प्रोकनिका शर्मा ने इस प्रकार के सेमीनार की आवश्कता पर जोर देते हुए कहा कि लोकवनस्पति विज्ञान को बढावा देना चाहिए।

बैंगलोर से जुड़े ऑनलाइन वक्ताप्रोअरविन्द सकलानी ने न्यूट्रास्यूटीकल पर प्रकाश डालते हुए अश्वगंधाहल्दीकोलियस आदि से बनाये जा रहे औषधीय  पोषक गुणों से भरपूर उत्पादों के बारे में बताया।

ऑफलाइन तकनीकी सत्र में  प्रोएसएसकटेवा ने राजस्थान में पाये 

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