गोपेन्द्र नाथ भट्ट
राजस्थान विधानसभा की सभी 200 सीटों को भरने के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने
राज्य के बारां जिले की खाली एक सीट अंता विधानसभा सीट पर उप चुनाव की घोषणा कर दी है। इसके साथ ही राजस्थान की राजनीति में नई हलचल पैदा हो गई हैं और प्रदेश में
राजनीतिक सरगर्मियाँ भी तेज हो गई हैं।
निर्वाचन आयोग ने अंता विधानसभा की रिक्त सीट पर मतदान की तिथि 11 नवंबर और मतगणना की तिथि 14 नवंबर 2025 निर्धारित की है। इस उप चुनाव के परिणाम का असर न केवल बारां जिले की राजनीति पर पड़ेगा,बल्कि प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों पर भी इसके दूरगामी परिणाम दिखाई पड़ सकते है।
अंता विधानसभा की सीट पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा के कब्जे में थी,परन्तु राज्य विधानसभा द्वारा निवर्तमान विधायक के निलंबन के कारण यह सीट रिक्त हो गई। अब इस रिक्त सीट पर सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों ही अपनी साख बचाने के लिए पूरी ताकत झोंकने की तैयारी में हैं। भाजपा इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर देख रही है,जबकि कांग्रेस इसे अपनी प्रतिष्ठा की बहाली का अवसर मान रही है। राजस्थान में वर्ष 2025 का यह पहला बड़ा उप चुनाव है,इसलिए इसके परिणाम को आगामी पंचायत और नगरीय निकायों के चुनावों के भावी संकेत के रूप में भी देखा जा रहा है। राज्य के प्रमुख राजनीतिक दलों ने अंता में मतदाताओं को साधने के लिए अपने दौरे शुरू कर दिए हैं। मतदान से पहले यहां देश और प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं के चुनाव प्रचार के लिए आने की संभावना भी जताई जा रही है। प्रदेश के दक्षिणी पूर्वी बांरा जिले के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में इन दिनों सर्द मौसम के साथ-साथ चुनावी गर्मी का माहौल बनने लगा है। अंता विधानसभा क्षेत्र मुख्य रूप से कृषि प्रधान इलाका है। यहाँ चुनाव में किसान, श्रमिक और युवा वर्ग निर्णायक भूमिका निभाते आए हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार यहाँ सिंचाई, रोजगार, शिक्षा और पेयजल जैसी स्थानीय समस्याएँ चुनावी मुद्दों के केंद्र में रहती आई है। भारत के चुनाव आयोग ने अंता विधानसभा क्षेत्र में मतदान की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए सभी तैयारियाँ शुरू कर दी हैं। सुरक्षा बलों की तैनाती, बूथों की समीक्षा और मतदाता सूची का पुनरीक्षण कार्य भी जारी है। राज्य निर्वाचन विभाग मतदाताओं को जागरूक करने के लिए स्वीप कार्यक्रम की योजना को भी आगे बढ़ा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अंता का यह उप चुनाव जहां राजस्थान में सत्तारूढ़ दल भाजपा के जनाधार की परीक्षा साबित होगा। यदि भाजपा अपनी यह सीट बरकरार रखती है, तो यह उसके लिए जनता के विश्वास का प्रमाण माना जाएगा, वहीं कांग्रेस या किसी अन्य उम्मीदवार की जीत प्रतिपक्ष के लिए संजीवनी बूटी साबित हो सकती है। कुल मिलाकर, अंता विधानसभा का यह उप चुनाव वर्ष 2025 को विदाई से पहले राजस्थान की राजनीति का महत्वपूर्ण पड़ाव बन सकता है। आने वाले दिनों में होने वाली चुनावी घोषणाओं, जनसभाओं और मतदाताओं की भागीदारी से यह स्पष्ट होगा कि जनता किस दल को अपने भविष्य की बागडोर सौंपना चाहती है। आने वाले कुछ हफ्ते बारां जिले की राजनीतिक तस्वीर को आइने की तरह स्पष्ट करने वाले हैं।
अंता विधानसभा के उप चुनाव की गरमाहट के मध्य राजस्थान की राजनीति में सत्ता पक्ष भाजपा के भीतर रणनीतिक वार्ताओ का दौर भी जोरों पर है। इस क्रम में सत्ताधारी भाजपा अपनी रणनीति बनाने में जुटी हुई है और शुक्रवार को मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा , पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन राठौड़ की,राजे के सरकारी निवास सिविल लाइन्स पर एक अहम बैठक भी हुई है। हाड़ौती अंचल का बारां जिला वसुंधरा राजे का राजनीतिक गढ़ और उनके सांसद पुत्र दुष्यन्त सिंह के झालावाड़ संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है। वसुंधरा राजे के आवास पर हुई मुख्यमंत्री शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री राजे और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राठौड़ की इस महत्वपूर्ण बैठक का उद्देश्य अंता सीट पर पार्टी की स्थिति को मजबूत करना, उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया पर आगे की रणनीति तय करना और संगठनात्मक समन्वय बढ़ाना बताया जा रहा है।
इधर कांग्रेस ने अशोक गहलोत सरकार में मंत्री रहें स्थानीय नेता प्रमोद जैन भाया को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार कांग्रेस ने अंता में अपने मजबूत कार्ड को फिर से आजमाने का फैसला किया है लेकिन पार्टी के लिए अंता उप चुनाव की जंग जीतना इतना आसान भी नहीं है, क्योंकि भाजपा की भजन लाल सरकार का उप चुनाव जीतने का ट्रैक स्कोर उसके पक्ष में है। वर्तमान भाजपा सरकार के कार्यकाल में अब तक प्रदेश में हुए सात उप चुनावो में कांग्रेस को महज एक सीट हासिल हुई है,वहीं भाजपा ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की है। इस तरह मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा की वर्तमान सरकार में हुए उपचुनाव का ट्रैक रिकॉर्ड कांग्रेस के पक्ष में नहीं रहा है। भाजपा ने राज्य में अब तक कुल 7 विधानसभा सीटों खींवसर, झुंझुनूं, रामगढ़, सलूंबर, देवली- उनियारा, दौसा और चौरासी विधानसभा सीट पर हुए उप चुनावों में से पांच सीटों पर शानदार जीत दर्ज की है जबकि, कांग्रेस को सिर्फ एक विधानसभा सीट दौसा पर जीत मिली है और आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले की चौरासी सीट बाप (बीएपी) पार्टी के खाते में गई है। उप चुनाव से पूर्व कांग्रेस के पास इन 7 विधानसभा सीटों में से 4 विधानसभा सीटें थी । इस प्रकार इन उप चुनावों में एक तरफ से भाजपा ने क्लीन स्वीप दर्ज की थी, जबकि कांग्रेस ने अपनी तीन विधायक सीटों को खोया था। ऐसे में राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अब कांग्रेस के लिए अंता उप चुनाव का मैदान फतह करना असंभव तो नहीं लेकिन आसान भी नहीं कहा जा सकता है। राजनीतिक जानकार बताते है कि प्रायः उप चुनावों में सत्ताधारी दल ही आगे रहते है। इस दृष्टि से अंता उपचुनाव के कारण राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली से सटे राजस्थान की सियासत एक बार फिर से गरमा गई है। दोनों ही दल चुनावी जंग जीत एक दूसरे के मुकाबले लीड लेने की कवायद में जुट गए हैं। हालांकि इस उप चुनाव की हार- जीत से राजस्थान की सत्ताधारी भाजपा की सेहत पर कोई सियासी असर नहीं पड़ने वाला क्योंकि भाजपा के पास विधानसभा में पर्याप्त बहुमत है लेकिन इससे एक परसेप्शन जरूर सेट हो सकता है। भाजपा अगर चुनाव जीतती है तो इसे सरकार के काम पर जनता की मुहर लगने के तौर पर पेश किया जाएगा लेकिन, यदि अंता में कांग्रेस अथवा प्रतिपक्ष का कोई उम्मीदवार विजयी होता है तो यह राज्य सरकार की प्रतिष्ठा का सवाल होगा। लिहाजा भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां इस उप चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना जंग जीतने की रणनीति का ताना बाना और खाका तैयार कर रही है।