भारत की एशियाई क्रिकेट प्रतियोगिता में विजय का तिलक और ट्रॉफ़ी नहीं लेने का निर्णय 

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Published on : 30 Sep, 25 06:09

भारत की एशियाई क्रिकेट प्रतियोगिता में विजय का तिलक और ट्रॉफ़ी नहीं लेने का निर्णय 

गोपेन्द्र नाथ भट्ट 

 

खेल केवल शारीरिक कौशल और रणनीति का मंच नहीं होते, वे राष्ट्रों की भावनाओं, राजनीति, और कूटनीति के भी प्रतीक बन जाते हैं। विशेषकर भारत-पाकिस्तान के बीच होने वाले मैच तो सिर्फ़ खेल नहीं, बल्कि करोड़ों दर्शकों की उम्मीदों और संवेदनाओं का प्रश्न बन जाते हैं। हाल ही में 2025 की एशियाई क्रिकेट प्रतियोगिता (एशिया कप) में भारत ने पाकिस्तान को हराकर खिताब अपने नाम किया, लेकिन यह जीत एक अद्वितीय विवाद से जुड़ गई — भारतीय टीम ने ट्रॉफ़ी स्वीकार करने से इनकार कर दिया। यह घटना खेल जगत में अभूतपूर्व थी। भारत ने रविवार को खेले गए रोमांचक मुकाबले में पाकिस्तान को 5 विकेट से हराकर एशिया कप का खिताब अपनी झोली में डाल लिया. एशिया कप के 41 सालों के इतिहास में यह पहला मौका था, जब भारत और पाकिस्‍तान की टीम फाइनल में टकराई. भारत की जीत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) का जिक्र करते हुए एक बड़ा पोस्‍ट किया है. पीएम मोदी ने अपने पोस्‍ट में कहा कि खेल के मैदान में ऑपरेशन सिंदूर. साथ ही इस जीत के साथ ही देश भर के अलग-अलग इलाकों में लोगों ने जश्‍न मनाया. वहीं कई राजनेताओं ने भी जीत पर टीम इंडिया को बधाई दी है. 

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र करते हुए एक्‍स पोस्‍ट में लिखा, "खेल के मैदान पर ऑपरेशन सिंदूर. परिणाम वही जीता भारत, हमारे क्रिकेटरों को बधाई."

 

एशिया कप, 1984 से आयोजित होने वाला महाद्वीपीय क्रिकेट टूर्नामेंट है। इसमें एशियाई देशों की टीमें भाग लेती हैं और भारत सबसे ज़्यादा बार यह खिताब जीतने वाला देश है। भारत-पाकिस्तान के मैच इस टूर्नामेंट के आकर्षण का केंद्र रहते हैं। दोनों देशों के बीच राजनीतिक संबंधों के उतार-चढ़ाव के बावजूद खेल आयोजन होते रहे हैं। भारत की टीम ने अब तक आठ बार एशिया कप जीता था; 2025 की यह जीत उसका नौवां खिताब थी। इस लिहाज़ से यह जीत ऐतिहासिक मानी जा रही थी। लेकिन ट्रॉफ़ी विवाद ने इस उपलब्धि को अलग ही रंग दे दिया।

 

एशिया कप 2025 संयुक्त अरब अमीरात (दुबई) में आयोजित हुआ। फाइनल 28 सितंबर 2025 को भारत और पाकिस्तान के बीच खेला गया। भारत ने शानदार प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तान को हराया और एक बार फिर महाद्वीपीय चैंपियन बना। भारतीय कप्तान सुर्यकुमार यादव की अगुवाई में टीम ने संयम और रणनीति का बेहतरीन उदाहरण पेश किया। जीत के बाद दर्शकों को उम्मीद थी कि ट्रॉफ़ी वितरण समारोह होगा, राष्ट्रगान बजेंगे, और खिलाड़ी विजयी कप के साथ फोटो खिंचवाएँगे। मगर हुआ इसके बिल्कुल उलट।

 

एशियाई क्रिकेट परिषद एसीसी के अध्यक्ष इस समय पाकिस्तान के मंत्री मोहसिन नक़वी है। प्रोटोकॉल के अनुसार विजेता टीम को ट्रॉफ़ी एसीसी अध्यक्ष के हाथों ही सौंपी जाती है। भारतीय टीम के प्रबंधन और खिलाड़ियों ने यह आपत्ति जताई कि वे पाकिस्तानी मंत्री से ट्रॉफ़ी नहीं लेना चाहते।जब पुरस्कार वितरण समारोह शुरू हुआ तो भारतीय टीम मंच पर आई, लेकिन जैसे ही ट्रॉफ़ी देने की प्रक्रिया शुरू हुई, टीम ने एकजुट होकर संकेत दिया कि वे ट्रॉफ़ी स्वीकार नहीं करेंगे। परिणामस्वरूप आयोजकों ने ट्रॉफ़ी मंच से हटा दी। दर्शक हतप्रभ रह गए; टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर यह दृश्य तुरंत वायरल हो गया।भारतीय कप्तान सुर्यकुमार यादव ने बाद में प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा, “मैंने ऐसा दृश्य पहले कभी नहीं देखा कि विजेता टीम को ट्रॉफ़ी न दी जाए। हम जीत कर भी ट्रॉफ़ी के बिना लौट रहे हैं।” इस बयान ने विवाद को और हवा दी।इस घटना के कई कारण और परतें समझी जा सकती हैं। भारत-पाकिस्तान के बीच हाल के वर्षों में राजनीतिक और सुरक्षा तनाव बढ़ा है। सीमा पार आतंकवाद, कूटनीतिक खींचतान और आपसी संवाद की कमी ने दोनों देशों के संबंधों को संवेदनशील बना दिया है।भारतीय टीम का यह कदम एक प्रकार का प्रतीकात्मक विरोध माना जा सकता है। खिलाड़ियों ने सीधे-सीधे कोई राजनीतिक बयान नहीं दिया, लेकिन ट्रॉफ़ी न लेने का निर्णय उनकी असहमति को दर्शाता है।

ए सी सी में भी आम जनमत पाकिस्तान के प्रति सख़्त रहा है। खिलाड़ियों को यह भी डर था कि अगर उन्होंने पाकिस्तानी मंत्री के हाथों ट्रॉफ़ी ली तो देश के कुछ हिस्सों में उनकी आलोचना होगी।

प्रोटोकॉल बनाम भावनाएँ ए सी सी के नियमों के अनुसार अध्यक्ष ही ट्रॉफ़ी देते हैं, लेकिन भारतीय टीम ने भावनाओं को प्राथमिकता दी।

 

 

 

 

इस घटना ने मीडिया और सोशल मीडिया पर तूफ़ान खड़ा कर दिया।भारत में अधिकांश लोगों ने टीम के निर्णय का समर्थन किया और इसे “राष्ट्रसम्मान” से जोड़कर देखा। Fxपाकिस्तान में इसे खेल भावना के ख़िलाफ़ करार दिया गया और भारतीय टीम की आलोचना की गई।

 

अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इसे “क्रिकेट इतिहास की अभूतपूर्व घटना” बताया और लिखा कि खेल और राजनीति को अलग रखना कठिन हो गया है।

 

 

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने भी इस मामले पर ध्यान दिया और कहा कि वह रिपोर्ट तलब करेगी। ए सी सी ने बयान जारी कर कहा कि वह “विजेता टीम को औपचारिक रूप से ट्रॉफ़ी भेजने” पर विचार कर रही है। जेसीयह घटना एक बार फिर इस प्रश्न को सामने लाती है कि खेल और राजनीति को कितना अलग रखा जा सकता है। ओलंपिक से लेकर फ़ुटबॉल तक, अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों में कई बार राजनीतिक विरोध और बहिष्कार हुए हैं। भारत-पाकिस्तान का मामला भी इसका उदाहरण है।

 

क्रिकेट में 1990 के दशक में भी कई बार दोनों देशों के बीच सीरीज़ रद्द हुई। हाल के वर्षों में भारत ने पाकिस्तान में द्विपक्षीय सीरीज़ खेलने से इनकार किया है। इसके बावजूद बहुपक्षीय टूर्नामेंटों में दोनों टीमें आमने-सामने होती हैं।

 

इस घटना ने भारतीय क्रिकेट को दो तरह की छवि दी है।एक ओर इसे राष्ट्रसम्मान के रूप में देखा गया,दूसरी ओर कुछ विश्लेषकों ने कहा कि खेल भावना के नज़रिए से यह अनुचित था।

भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने आधिकारिक बयान में कहा कि “टीम का निर्णय उनके विवेक पर था, बोर्ड उसका सम्मान करता है।”

 

खिलाड़ियों के लिए यह आसान निर्णय नहीं था। एक ओर वर्षों की मेहनत का प्रतीक ट्रॉफ़ी थी, दूसरी ओर राष्ट्रीय भावनाएँ। उन्होंने सम्मान के बजाय भावनाओं को प्राथमिकता दी। दर्शकों के लिए यह घटना मिश्रित भावनाएँ लेकर आई — जीत की खुशी भी थी और विवाद का खट्टापन भी।

यह विवाद कई सवाल छोड़ गया है। क्या भविष्य में ए सी सी या आई सी सी ऐसे प्रोटोकॉल बनाएँगे जिससे विजेता टीम को ट्रॉफ़ी देने के लिए तटस्थ व्यक्ति चुना जाए?क्या खेल में राजनीति के हस्तक्षेप को सीमित करने के लिए ठोस नियम बनेंगे?क्या भारत-पाकिस्तान क्रिकेट संबंध और तनावपूर्ण हो जाएँगे?विशेषज्ञों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय खेल परिषदों को ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर पहले से तैयारी रखनी चाहिए ताकि खेल का उत्साह राजनीति की भेंट न चढ़े।

 

भारत की 2025 की एशिया कप जीत खेल इतिहास का गौरवशाली अध्याय है, लेकिन ट्रॉफ़ी विवाद ने इसे अभूतपूर्व बना दिया। इस घटना ने दिखा दिया कि अंतरराष्ट्रीय खेलों में भी राजनीति और भावनाएँ गहरी पैठ रखती हैं।खेल केवल ट्रॉफ़ी जीतने का नाम नहीं, बल्कि खेल भावना, अनुशासन और आपसी सम्मान का भी प्रतीक है। भारतीय टीम ने अपने विवेक से निर्णय लिया — इसे सही या ग़लत कहना सरल नहीं। पर इतना निश्चित है कि यह घटना आने वाले वर्षों तक चर्चा का विषय रहेगी और शायद खेल परिषदों को नए मानक बनाने के लिए प्रेरित करेगी।

 


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