इक्यासी वर्षीय पद्मश्री डॉ. राज बोथरा का असाधारण जीवन, जो कभी चिकित्सीय उत्कृष्टता और सामाजिक सेवा का उत्सव था, दिसंबर 2018 में एक अप्रत्याशित दस्तक के साथ पूरी तरह बदल गया। दशकों तक चिकित्सा, परोपकार और भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करने में समर्पित रहे इस सर्जन और इंटरवेंशनल पेन विशेषज्ञ को अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में राष्ट्रपति के. आर. नारायणन द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। अपने लंबे करियर में उन्होंने भारत और अमेरिका दोनों में उल्लेखनीय कार्य किए। चिकित्सा से परे, डॉ. बोथरा ने नरगिस दत्त फाउंडेशन की स्थापना में योगदान दिया, मदर टेरेसा फाउंडेशन के लिए काम किया और निकोटिन, एड्स और शराब सेवन पर जागरूकता अभियान चलाए। वर्षों से उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्रियों, अमेरिकी राष्ट्रपतियों, मदर टेरेसा और पोप जॉन पॉल द्वितीय जैसे प्रभावशाली व्यक्तित्वों के साथ काम किया और भारत व अमेरिका दोनों में सार्वजनिक सेवा के लिए अनेक पुरस्कार प्राप्त किए।
फिर भी, इन उपलब्धियों के बावजूद, डॉ. बोथरा को एफबीआई द्वारा गिरफ्तार किया गया, ऐसे आरोपों में जो बाद में झूठे साबित हुए। 1,301 दिनों तक उन्होंने गलत तरीके से कारावास झेला, अपने परिवार से दूर, हर परिचित चीज़ से वंचित होकर। जून 2022 में बारह आम अमेरिकियों की जूरी ने उन्हें सर्वसम्मति से निर्दोष घोषित किया।
अब डॉ. राज बोथरा की आत्मकथा *USA v Raj* भारत आई है। इस किताब का अनावरण मुंबई के जे डब्ल्यू मैरियट में अभिनेता अनुपम खेर और तुषार कपूर द्वारा किया गया—यह एक मार्मिक क्षण था, जब वह व्यक्ति, जिसकी आस्था, संस्कृति और परिवार ने उसे अंधेरे समय में सहारा दिया, अपने देश में वापस लौटा। किताब के अनावरण के साथ ही इसके फिल्म रूपांतरण की घोषणा भी हुई, जिसे हाल ही में टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (TIFF) में प्रस्तुत किया गया था। इस अवसर पर अनुपम खेर और तुषार कपूर के अलावा डॉ. बोथरा की पत्नी पम्मी बोथरा, बेटी सोनिया बोथरा, फिल्म के निर्देशक—प्रसिद्ध फिल्ममेकर रवी के. चंद्रन, अभिनेत्री एमिली शाह (जो *जंगल क्राई* में नजर आई थीं और फिल्म में सोनिया की भूमिका निभाएंगी), *आर्या* फेम अंकुर भाटिया और निर्माता प्रशांत शाह (बॉलीवुड हॉलीवुड प्रोडक्शंस) मौजूद थे। फिल्म का निर्माण ट्विकेनहैम प्रोडक्शंस के सहयोग से किया जाएगा। दिग्गज अभिनेता कबीर बेदी इस फिल्म में डॉ. राज बोथरा की भूमिका निभाएंगे। फिल्म की पटकथा और संवाद ज़िल्ले-हुमा, शुभो दीप पाल, हुसैन दलाल और अब्बास दलाल लिख रहे हैं, जो डॉ. बोथरा की आत्मकथा पर आधारित होंगे। ऑस्कर विजेता रेसुल पुकुट्टी फिल्म की साउंड डिज़ाइन करेंगे। फिल्म की शूटिंग भारत और ब्रिटेन दोनों जगहों पर होगी, ताकि डॉ. बोथरा के जीवन और विरासत का वैश्विक विस्तार दिखाया जा सके।
डॉ. बोथरा ने अपनी गिरफ्तारी के बारे में याद करते हुए कहा, "मेरा पूरा संसार बिखर गया, मेरा परिवार उजड़ गया, मेरे व्यवसाय बंद हो गए और सभी बैंक खाते फ्रीज़ कर दिए गए। मुझे कहा गया कि अगर मैंने दोषी मानने से इनकार किया तो मैं जेल में ही मर जाऊँगा। मैंने कहा—तो ऐसा ही सही। मुझे बस यही विश्वास था कि अंत में सच की जीत होगी… मैं उस देश से आता हूँ जहाँ गरिमा और सम्मान जीवन से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं।"
अनुपम खेर ने डॉ बोथरा को संबोधित करते हुए कहा, "मैं डॉ. बोथरा और उनकी पत्नी पम्मी को पिछले 30-35 सालों से जानता हूं। इन्होंने अपने देश के लिए काफी सोशल सर्विस की है, तोह उनका यह कहना कि वह एक साधारण इंसान है, मैं इस बात को नहीं मानता सर, मेरी नज़र में आप एक असाधारण व्यक्ति हैं क्योंकि जितना काम आपने अपने देश के लिए किया है वह सराहनीय है और जब मैने सुन की एफ बी आई ने आपको गलत चार्जेस पर गिरफ़्तार किया है, तोह मुझे बेहद फिक्र हुई। और जब आपको तीन साल कैद में रखा गया तो मन में यही बात आई कि अगर दुनिया के सबसे महान देश कहे जाने वाले अमरीका में अगर ऐसा कुछ हो सकता है, तो कुछ भी हो सकता है। पर मैं आपको बधाई देना चाहता हूं कि आपने साहस दिखाया और सच को अपने साथ रखा। मुझे बेहद खुशी है कि आज आप भारत में है, मुंबई में हैं और हमारे साथ बैठे हैं। मैं मेरे चाहने वालों से यही कहना चाहूंगा कि डॉ बोथरा की किताब ज़रूर पढ़ें ताकि आपको इनके साहस के बारे में मालूम हो। उन्होंने अंत में कहा,"ब्राउन लाइव्स मैटर।"
तुषार कपूर ने कहा, "जैसा कि मैंने कहा, मुझे डॉ. राज बोथरा को जानते हुए 36 साल हो चुके हैं और चाहे कोई कुछ भी कहे, उन्होंने जो सहा है, उसका वर्णन करने के लिए कोई शब्द पर्याप्त नहीं है। मुझे लगता है कि यह किताब उस दर्द को सही मायनों में दर्शाती है। मैं सिर्फ इतना कहना चाहूँगा कि हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए, जो कि यह साबित करता है कि मुश्किल समय टिकते नहीं, बल्कि मज़बूत लोग टिके रहते हैं। शायद ब्रह्मांड ने उन्हें यह सब इसलिए झेलने दिया ताकि वे हमारे लिए साहस का एक ठोस उदाहरण बन सकें।"
यह आत्मकथा एक गहरी अंतरात्मा की पुकार बन जाती है। डॉ. बोथरा ने कहा,"मैंने यह किताब अमेरिका के आम लोगों को जागरूक करने के लिए लिखी है। अगर मुझे न्याय प्रणाली की कठोरता का अंदाज़ा नहीं था, तो निश्चित है कि आम अमेरिकी नागरिकों को भी इसका अंदाज़ा नहीं होगा। अगला कोई भी हो सकता है।" उनके विचार सिर्फ न्यायिक सुधार तक सीमित नहीं हैं, बल्कि एक गहरी नैतिक अपील भी हैं: "हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है उस संस्कृति को बदलना, जो ‘किसी भी कीमत पर जीत’ पर आधारित है। यह बदलाव कानून से लागू नहीं किया जा सकता, न ही थोपकर। यह हमारे दिलों से निकलना चाहिए। हमारी साझा मानवता और न्याय की साझा इच्छा हमें एक उज्ज्वल और निष्पक्ष भविष्य की ओर ले जाए।”