भारतीय आयुर्वेद पद्धति को नई ऊर्जा और विश्वस्तर पर ब्रांड बनाने की रणनीति 

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Published on : 23 Sep, 25 01:09

भारत में अब धन्वंतरि जयंती के बजाय प्रतिवर्ष 23 सितम्बर को मनेगा आयुर्वेद दिवस  

भारतीय आयुर्वेद पद्धति को नई ऊर्जा और विश्वस्तर पर ब्रांड बनाने की रणनीति 

आयुर्वेद विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति है। आयुर्वेद अर्वाचीन काल से भारतीय चिकित्सा पद्धति का अभिन्न बना हुआ है। साथ ही पूरे विश्व में आयुर्वेद की अपनी एक अलग पहचान और प्रतिष्ठा है। आयुर्वेद को नैसर्गिक रूप से सृष्टि, विज्ञान और जीवन के निकट माना जाता है। इसलिए हजारों वर्षों से हमारे वेद और पुराणों में इसका उल्लेख मिलता है। त्रेता युग के रामायण काल में भगवान राम और रावण के मध्य हुए युद्ध में मेघनाद ने अपनी शक्तियों और नागपाश शस्त्र का उपयोग कर जब लक्ष्मण जी को मूर्छित कर दिया था जब राम भक्त हनुमान ने संजीवनी बूटी लाकर उनकी मूर्छा को दूर किया था। ऐसे अनेक प्रसंग आर्युवेद के महत्व को उजागर करते है।

 

भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा इस वर्ष 2025 से प्रतिवर्ष आयुर्वेद दिवस 23 सितंबर को मनाने का निर्णय लिया गया है। इससे पहले यह प्रतिवर्ष दीपावली से पूर्व धनतेरस पर धन्वंतरि जयंती के दिन मनाया जाता था। आयुष मंत्रालय का भारत में प्रतिवर्ष 23 सितम्बर को आयुर्वेद दिवस मनाने का निर्णय केवल एक तिथि परिवर्तन नहीं है बल्कि विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को नई ऊर्जा और विश्वस्तर पर एक ब्रांड बनाने की रणनीति है।

 

आयुष मंत्रालय ने तिथि का चयन एक स्थिर और आधुनिक प्रबंधन दृष्टि से किया गया है । धन्वंतरि जयंती हर सालअक्टूबर-नवंबर में अलग-अलग तिथियों पर आती थी। इससे आयुर्वेद की योजनाओं और प्रचार प्रसार का काम बहुत कठिन हो जाता था।  अब 23 सितम्बर की नई  रखने से आयुर्वेद दिवस को एक समान और सुगम बनाना है ताकि देशभर में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रमों को नियमित एवं प्रभावी ढंग से आयोजित किया जा सके। आयुष मंत्रालय को भी विश्वविद्यालयों, राज्यों और विदेशों में भारतीय मिशनों को पहले से कार्यक्रम तय करने में सुविधा होगी। यह तिथि आयुर्वेद को स्वतंत्र पहचान देंगी और आयुर्वेद को केवल धार्मिक या पौराणिक संदर्भ तक ही सीमित नहीं रखेगी। इसका उद्देश्य तिथि को एक समान और सुगम बनाना है ताकि देशभर में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रमों को नियमित एवं प्रभावी ढंग से आयोजित किया जा सकेगा।आयुष मंत्रालय हर साल आयुर्वेद दिवस पर राष्ट्रीय सम्मेलनों, सेमिनारों,कार्यशालाओं का आयोजन करेगा। साथ ही आम जनता के लिए नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर और परामर्श भी उपलब्ध कराए। जायेंगे।

स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में जागरूकता कार्यक्रम, वाद-विवाद प्रतियोगिताएं, प्रदर्शनी आदि आयोजित होंगी। विदेशों में भारतीय दूतावास और सांस्कृतिक केंद्रों के माध्यम से आयुर्वेद का प्रचार-प्रसार होगा।

 

इस वर्ष पहली बार  23 सितंबर को मनाए जा रहें  आयुर्वेद दिवस की थीम ' लोगों और ग्रहों के लिये आयुर्वेद' विषय पर रखी गई है। इस वर्ष की थीम  हमें इस शाश्वत सत्य से रूबरू कराती है कि आयुर्वेद अर्वाचीन कालीन है और यह केवल इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि ग्रहों के कल्याण के लिये भी ज़रूरी है। आयुर्वेद केवल स्वस्थ विश्व ही नहीं,स्वस्थ ब्रह्माण्ड के स्वास्थ्य के लिए भी कितना उपयोगी है तथा ग्लोबल वार्मिंग के 7से युग में स्वस्थ्य सृष्टि की नींव तैयार करने में भी सक्षम है। आयुर्वेद जीवन का वह विज्ञान है जो मानव जीवन की उत्पति तथा दिनचर्या से शुरू हो कर  उसकी जीवन यात्रा के अंतिम पढ़ाव तक  व्यक्तिगत, सामाजिक,वैश्विक कल्याण के साथ साथ हमारी प्रकृति को अक्षुण्ण बनायें रखने के लिए और वातावरण के साथ संतुलन बनाये रखने में सक्षम है।

 

आज पूरे विश्व में चाहे शारिरिक स्वास्थ्य हो,मानसिक स्वास्थ्य हो,लाइलाज बीमारियों से लड़ना हो,सामाजिक ताने-बाने को सुदृढ़ करना हो,युद्धों को टालना हो,आपसी भाईचारा, प्रेम, सौहार्द और विश्व शांति की बात हो तथा  पर्यावरण को सुरक्षित करना हो, यहाँ तक ग्रहों को बचाना हो, सबमें आयुर्वेद की महती भूमिका है। पूरे विश्व ने  कोविड (कोरोना) काल में आयुर्वेद की ताकत को देखा और परखा है। आयुर्वेद में आचार रसायन जिसका अर्थ है मानव मात्र का आचरण कैसा होना चाहिये, नित्यकर्मों में ऐसे कौन से क्रिया कलाप शामिल होने चाहिए जो  भगवान और प्रकृति  की आराधना करने,अपने से उम्र में बड़े लोगों का आदर सत्कार करने, छोटों को स्नेह देने और उनका ख्याल रखने से लेकर अर्थ,काम, क्रोध ,मद, ईर्ष्या- द्वेष जैसे भावों से दूर रहने से लेकर अनेक ऐसी बातों का वर्णन मिलता है। जिससे हम एक संपूर्ण शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत और सौष्ठव पूर्ण इंसान बन सके और अपने परिवार से लेकर विश्व कल्याण के बारे में सोचने समझने की दिशा में अपनी बुद्धि को लगा सके। आजकल हम देख रहें हैं कि लोगों में लालच, ग़ुस्सा, अधीरता, चिंता, तनाव,अवसाद,असहनशीलता,अहम जैसे अहितकर मनोगत भावों की अधिकता मिलती है जिससे वह अपने जीवन में संतुलन बनाने में असमर्थ होते हैं जिसके परिणामस्वरूप लड़ाई-झगड़े, मानसिकता तनाव, दिशाहीनता और आत्महत्या जैसी घटनायें जन्म ले रही हैं। इसलिए आयुर्वेद में स्वास्थ्य की परिभाषा में ही एक पूर्ण रूप से संस्कारित और विकसित पुरुष नजर आता है। आयुर्वेद के सम्बन्ध में ये श्लोक महत्वपूर्ण है - 

 

समदोष:समाग्निश्च समधातुमलक्रिय:।

प्रसन्नात्मेन्द्रियमना:स्वस्थ इत्यभिधीयते।।(सुश्रुत संहिता)

 

प्रयोजनम् चास्य स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं

आतुरस्य विकार प्रशमनम् च।(च.सू.३०/२६)

 

 

आयुर्वेद में केवल दोषों की समानता वात, पित्, कफ, त्रिदोष, समाग्नि, समधातु, समाग्नि की बात ही नहीं है बल्कि इंद्रियों, आत्मा और तन - मन का भी स्वास्थ्य और प्रसन्न होना ज़रूरी है। अर्थात शारिरिक और मानसिक दोनों तरह से स्वस्थ इंसान ही स्वास्थ्य की परिभाषा में खरा उतरता है। व्यक्ति मात्र की आत्मा, मन और इंद्रियाँ तभी प्रसन्न हो सकती हैं तब वह शारिरिक रूप से स्वस्थ है और जब उसके आसपास का वातावरण और माहौल ख़ुशनुमा,शांत और प्रसन्नता से भरा हो। उसकी आँखें सब ओर अच्छा देखे,उसके कान अच्छी बातें सुने,उसकी जिह्वा अच्छे पौष्टिक खाद्यों का आस्वादन करें,उसकी वाणी में मिठास,शालीनता हो,उसकी नाक स्वच्छ वातावरण की स्वच्छ सुगंध को ग्रहण करें । उसकी  त्वचा शरीर से विषाक्त तत्वों का सही ढंग से उत्सर्जन करे और वातावरण की शीतलता, गर्माहट, नमी आदि सब प्रकार की अनुभूतियों को  वह अच्छी तरह महसूस करे । साथ ही ऋत्वानुसार वातावरण के साथ सामंजस्य बिठा सके। मोटे तौर पर एक स्वस्थ इंसान वही है जो शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ है जिसको जीवन में संतुलन बनाना आता है। जो प्रकृति से प्यार करता है। जो अपने परिवार से लेकर विश्व कल्याण की भावना रखता है। जो अन्य जीवों से भी प्रेम रखता है जो हमारे ग्रहों, पृथ्वी, सूरज, चाँद, सितारे और अन्य ग्रहों यानि पूरे ब्रह्माण्ड परिवार से, विश्व और धरती से आसमान तक को स्वस्थ देखना चाहता है। वह ही एक स्वस्थ इंसान है। विहंगम रूप से आयुर्वेद इसी दिशा में रचनात्मक काम करता है। आज विश्व में जितनी भी बीमारियाँ हैं उनका समाधान भी प्रकृति में ही छिपा हुआ है। कोई भी वनस्पति ऐसी नहीं है जो औषधीय गुण नहीं रखती है। ज़रूरत है उनके दोहन की । उनकी पहचान की, उसके संरक्षण की और व्यापक शोध करने की।आयुर्वेद केवल चिकित्सा पद्धति ही नहीं बल्कि एक संपूर्ण विज्ञान है जो एक स्वस्थ और समृद्ध परिवार एवं  समाज, खुशहाल देश, विश्व और सम्पूर्ण ब्रह्मांड की सुदृढ़ नींव तैयार करता है।

 

भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद आज वैश्विक स्वास्थ्य व्यवस्था में अपनी एक अलग पहचान बना रही है। इसकी जड़ें अर्वाचीन वेद, पुराणों और उपनिषदों में हैं तथा यह केवल रोग निवारक ही नहीं बल्कि स्वस्थ जीवन जीने की एक समग्र पद्धति है। आयुर्वेद के इसी महत्त्व को देखते हुए भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने यह निर्णय लिया है कि अब से हर वर्ष 23 सितम्बर को भारत में आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इसका मुख्य उद्देश्य जन-जन में आयुर्वेद के प्रति जागरूकता पैदा करना है और उन्हें यह अवगत कराना है कि आयुर्वेद केवल वैकल्पिक चिकित्सा नहीं बल्कि जीवनशैली आधारित सम्पूर्ण स्वास्थ्य विज्ञान है। साथ ही पूरे विश्व में आयुर्वेद के महत्व एवं प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना है और युवाओं एवं विद्यार्थियों को आयुर्वेद के अध्ययन और अनुसंधान के लिए आकर्षित करना है। साथ ही आयुर्वेद दिवस मनाने का मकसद इसके शोध, शिक्षा और उद्योग को प्रोत्साहित करना है ताकि आयुर्वेदिक औषधियाँ, उपचार पद्धतियाँ और उत्पाद वैश्विक मानकों पर और अधिक सशक्त बन सके।आयुर्वेद दिवस पर लोगों को यह बताया जाएगा कि आयुर्वेदिक आहार, दिनचर्या और योगाभ्यास कैसे जीवन शैली संबंधी रोगों (मोटापा, मधुमेह, तनाव) को रोक सकते हैं। आयुर्वेद दिवस के नियमित आयोजन से विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य देशों में भारतीय चिकित्सा पद्धति की पहचान मजबूत होगी। इससे आयुर्वेद के अनुसंधान और नवाचार को गति मिलेगी तथा विश्वविद्यालय, अनुसंधान संस्थान और उद्योग आयुर्वेदिक दवाओं, फॉर्मूलेशन और तकनीक पर नए शोध कार्य कर सकेंगे। वर्तमान में भारत में 50 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक का आयुर्वेदिक और हर्बल उद्योग विकसित है। यह आयोजन आयुर्वेदिक उद्योग को बढ़ावा देने में भी सहायक होगा तथा बाज़ार, निर्यात और रोजगार में नई संभावनाएँ खोलेगा। इससे देशवासियों में प्राकृतिक, सुरक्षित और दीर्घकालीन स्वास्थ्य के प्रति विश्वास बढ़ेगा।आयुर्वेद और हर्बल उद्योग और अनुसंधान को नई दिशा मिलेगी और भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली में सशक्त योगदान दे सकेगी। इस प्रकार प्रति वर्ष 23 सितम्बर को आर्युवेद दिवस मनाने का  निर्णय आयुर्वेद को 21वीं सदी की स्वास्थ्य चुनौतियों के समाधान के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। साथ ही यह दिवस भारत की प्राचीन ज्ञान-परंपरा और सांस्कृतिक गौरव के प्रति सम्मान एवं आत्मविश्वास बढ़ाएगा तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र के लक्ष्य को मजबूती देगा।

 

 

आओ !! हम सब विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद का अनुसरण करें।अपनी प्रकृति से प्यार करें और अपनी समस्याओं का हल प्रकृति में ही तलाश करें। साथ ही बिना चिकित्सक के परामर्श से किसी भी चिकित्सा पद्धति की दवा खाने से परहेज करें।

 


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