उदयपुर, देश-दुनियाँ में कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग को लेकर हर कोई चिन्तित है, लेकिन आंकड़े एक अलग तस्वीर उजाकर करते हैं। वह यह कि भारत केवल 0.36 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर कीटनाशकों का ही उपयोग करता है, जबकि वैश्विक औसत 2.5 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर है।
‘बदलते कृषि परिदृश्य में सतत् पौध संरक्षण की उन्नति’’ विषय पर यहां राजस्थान कृषि महाविद्यालय सभागार में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन शुक्रवार को मुख्य आयोजन सचिव एवं राजस्थान कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. मनोज कुमार महला ने यह जानकारी देते हुए बताया कि भारत में कीटनाशकों के उपयोग को लेकर स्थिति काफी ठीक कही जा सकती है। आंकड़ों के अनुसार चीन जैसे देशों में 11 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर से भी अधिक कीटनाशकों का उपयोग किया जा रहा है, जो भारत से लगभग 30 गुना अधिक है। परीक्षण किये गये 97 प्रतिशत भारतीय खाद्य नमूने सुरक्षित अवशेष सीमा के भीतर पाये गये। इससे स्पष्ट है कि भारत पौध संरक्षण रसायनों का विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करता है। 2050 तक वैश्विक जनसंख्या लगभग 10.8 अरब तक पहुंचने की उम्मीद है तथा देश की आबादी 1.75 अरब के आसपास होगी। ऐसे में खाद्य सुरक्षा, प्राकृतिक संसाधन संरक्षण और ग्रामीण आजीविका सभी को एक साथ मिलकर चलना होगा।
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, एन्टोमोलोजिकल रिसर्च एसोसिएशन एवं क्राॅप केयर फेडरेशन आॅफ इण्डिया (सीसीएफआई), नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सम्मेलन के प्रथम एवं दूसरे दिन 6 विभिन्न तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया।
भारतीय फसल देखभाल महासंघ (सीसीएफआई) के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. हरीश मेहता ने भारत में कीटनाशकों के उपयोग से जुड़े मिथकों और भ्रांतियों पर विशेष व्याख्यान दिया। उन्होंने भारत में कीटनाशकों के उपयोग से जुड़े 10 मिथकों के बारे में बताया। उनका कहना था कि भारतीय किसान जरूरत से ज्यादा कीटनाशकों का उपयोग करते हैं, कीटनाशकों के उपयोग से भारत में कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। कीटनाशकों के छिड़काव के आकस्मिक संपर्क से किसान प्रभावित होते हैं, भारतीय बाजार नकली कीटनाशकों से भरा पड़ा है, कीटनाशकों के कारण भारतीय जल स्त्रोत प्रदूषित हो रहे हैं। भारत ऐसे कीटनाशकों का उपयोग करता है जो अन्य देशों में प्रतिबंधित हैं, जैविक या जैविक कीटनाशक रासायनिक कीटनाशकों से बेहतर होते हैं। उन्होंने यह भी कहा भारत में कीटनाशकों के उपयोग के बारे में फैली गलत सूचनाओं में तत्काल सुधार की आवश्यकता है। फसल सुरक्षा के बारे में हमारी समझ को भय से नहीं, बल्कि तथ्यों से दिशा मिलनी चाहिए।
तकनीकी सत्रों में वैज्ञानिकों ने आक्रामक कीटों के प्रबंधन के लिए नवीन सटीक रणनीतियाँ, अप्रयुक्त जैव कीटनाशक व स्थायी कीट नियंत्रण के लिए आशाजनक नए रास्ते, फाइटोफैगस माइट्स और उनका प्रबंधन, संरक्षित खेती में खतरे और कीट प्रबंधन आदि विषयों पर व्याख्यान दिये। इसके अलावा वैज्ञानिकों ने कीट एवं रोग प्रबन्धन में नये अणु, सूत्रीकरण और जैव तकनीकी खोजें, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव और कीटों में उभरते रूझान, कीटों की जैव पारिस्थितिकी और उनके कारण होने वाले नुकसान का आंकलन, टिकाऊ पौध संरक्षण के लिए जैव और आईपीएम दृष्टिकोण आदि विषयों पर व्याख्यान और गहन चर्चा की गई। इन सत्रों में कुल 15 वैज्ञानिकों ने व्याख्यान दिये साथ ही 51 मौखिक प्रस्तुति के अलावा पोस्टर सत्र का आयोजन किया गया। राष्ट्रीय सम्मेलन के विभिन्न विषयों पर आयोजित पोस्टर प्रस्तुति सत्र को सभी ने सराहा। पोस्टर प्रस्तुति सत्र के निर्णायक मण्डल में डॉ. अशोक अहलावत और डॉ. श्याम सिंह सारंगदेवत एवं उनकी टीम के सदस्यों द्वारा मूल्यांकन किया गया।