उदयपुर। पश्चिम क्षेत्र सास्कृतिक केंद्र उदयपुर द्वारा आयोजित मासिक नाट्य संध्या ‘रंगशाला’ के अंतर्गत रविवार को ‘मिथ्यासुर’ नाटक का मंचन किया गया। हल्की फुहारों के बीच दर्शकों से खचाखच भरे सभागार में इस प्रस्तुति को खूब सराहा गया।
पश्चिम क्षेत्र सास्कृतिक केंद्र उदयपुर के निदेशक फ़ुरकान खान ने बताया की प्रति माह आयोजित होने वाली मासिक नाट्य संध्या रंगशाला के अंतर्गत उजागर ड्रामेटिक एसोसिएशन एवं वेद सतपथी, मुंबई द्वारा ‘मिथ्यासुर’ नाटक का मंचन मंचन रविवार को शिल्पग्राम उदयपुर स्थित दर्पण सभागार में किया गया। इस नाटक के लेखक प्रणय पाण्डे एवं निर्देशक अजित सिंह पालावत है। रंगमंच प्रेमियों ने केन्द्र की प्रशंसा की और ऐसे आयोजन करने के लिए धन्यवाद किया। अंत में सभी कलाकारों का सम्मान किया गया।
कार्यक्रम में केन्द्र के उप निदेशक (कार्यक्रम) पवन अमरावत, कार्यक्रम अधिशाषी हेमंत मेहता सहित शहर के कई गणमान्य अतिथि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन सिद्धांत भटनागर ने किया।
नाटक की कहानी -
“मिथ्यासुर” मानव सभ्यता के विकास में मिथकों और कहानियों की भूमिका की पड़ताल करता है। यह नाटक सत्य और भ्रम, ज्ञान और अज्ञान के बीच की जटिल परतों को उजागर करता है, विशेषकर तब, जब इन पर धर्म और सत्ता की शक्तियाँ प्रभाव डालती हैं।
18वीं सदी के हिंदुस्तान की पृष्ठभूमि पर आधारित यह कथा एक छोटी-सी रियासत में घटित होती है, जहाँ एक प्राचीन मंदिर, उसके महायाजक सोमदेव, और उनके संरक्षक देवता राक्षस राजा कुंभ की उपस्थिति राज्य की दिशा तय करती है। यह कोई साधारण राक्षस नहीं, बल्कि एक ऐसा मिथकीय सत्ता-प्रतीक है जो सोमदेव के स्वप्नों के माध्यम से शासकों को आदेश देता है, मानव बलि की माँग करता है, और भय व भविष्यवाणियों के ज़रिये शासन करता है।
लेकिन संकट तब गहराता है जब यह राक्षस अचानक पुजारी के स्वप्नों में आना बंद कर देता है। देवी आदेशों की चुप्पी में, शासन कैसे किया जाए? खासकर तब, जब घाटी पर कंपनी सरकार के साथ युद्ध का खतरा मंडरा रहा हो?
मिथ्यासुर सोमदेव की उस आंतरिक और बाह्य यात्रा का चित्रण करता है, जिसमें वह न केवल राज्य के भविष्य के उत्तर खोजता है, बल्कि अपनी व्यक्तिगत आस्था, अधिकार और “सत्य” की परिभाषा से भी जूझता है। इस मार्ग में उसका सामना होता है एक राजकुमारी से, जो विज्ञान, तर्क और मानवीय विवेक की पक्षधर है। इन दोनों की टकराहट और संवाद से उभरती है वह महीन रेखा, जो मिथक को वास्तविकता से अलग करती है।