वैदिक विद्वान एवं पवमान मासिक पत्रिका के सम्पादक डा. कृष्ण कान्त वैदिक जी का 4 सितम्बर, 2025 को 75वां जन्म दिवस था। उनके जन्म दिवस पर गुरुकुल पौंधा, देहरादून में एक भव्य आयोजन किया गया। आयोजन में वृहद यज्ञ हुआ जिसके पश्चात् विद्वानों के उपदेश एवं आशीर्वाद सहित उनके द्वारा ऋषि दयानन्द सरस्वती जी के ऋग्वेद भाष्य के प्रथम मण्डल के अनुसंधान, सम्पादन व उसके संस्कृत-हिन्दी, हिन्दी एवं अंग्रेजी अनुवाद का चार-चार खण्ड, कुल बारह खण्डों में लोकार्पण हुआ। आयोजन में मुख्य अतिथि वैदिक साहित्य के प्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित यशस्वी ऋषिभक्त श्री अजय आर्य, दिल्ली थे। इस आयोजन में प्रसिद्ध ऋषिभक्त संन्यासी स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी, आचार्या अन्नपूर्णा जी, आचार्य डा. धनन्जय आर्य, डा. यज्ञवीर जी, आचार्य संजीव जी, वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के यशस्वी मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी, श्री विजय झा, दिल्ली आदि मुख्य विद्वान उपस्थित थे। इस अवसर पर आयोजित वृहद जन्म दिवस यज्ञ के मुख्य यजमान वैदिक विद्वान डा. कृष्णकान्त वैदिक जी सपत्नीक थे। उनके परिवार के सभी सदस्य भी यज्ञ वेदी के चारों ओर उपस्थित थे। इस आयोजन में वैदिक जी के परिजनों सहित गुरुकुल के 100 से अधिक ब्रह्मचारी एवं अन्य अनेक आर्य स्त्री-पुरुष भी यज्ञशाला वा सभागार में उपस्थित थे। यज्ञ पूर्वान्ह 11.30 बजे से आरम्भ होकर दोपहर 12.30 बजे समाप्त हुआ।
यज्ञ के बाद सभा में उपस्थित विद्वानों के सम्बोधन हुए जिसका संचालन प्रसिद्ध ऋषिभक्त आचार्य डा. धनंजय जी ने किया। आचार्य धनंजय जी ने आज के आयोजन की भूमिका प्रस्तुत की एवं साथ ही डा. वैदिक विद्वान डा. कृष्ण कान्त वैदिक के 75वें जन्मदिवस पर उन्हें अपनी और सभी आर्यविद्वानों की ओर से शुभकामनायें एवं बधाई दी। आचार्य धनंजय जी ने डा. वैदिक जी के उच्च सरकारी सेवा में रहकर साथ साथ संस्कृत भाषा के अध्ययन एवं गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. करने के बाद अथर्ववेद से संबंधित विषय पर पीएचडी किये जाने की जानकारी भी दी। वैदिक जी द्वारा सेवानिवृत्ति के बाद गुरुकुल के विद्यार्थियों को शिक्षण द्वारा लाभान्वित करने का उल्लेख भी किया। आचार्य धनंजय जी ने कहा कि गुरुकुल में ब्रह्मचारी वैदिक ज्ञान अर्जित कर अपने जीवन को सौभाग्यशाली बनाते हैं। वैदिक गुरुकुलीय शिक्षा से ब्रह्मचारियों का जीवन सार्थक बनता है और विद्या एवं गुणों से सुशोभित होता है। आचार्य जी ने स्वामी श्रद्धानन्द जी का उदाहरण देकर उनके प्रेरणादायक कार्यों का उल्लेख किया और ब्रह्मचारियों को उनके जीवन से प्रेरणा ग्रहण करने का अनुरोध किया।
आयोजन में उपस्थित स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने अपने आशीर्वचनों में डा. कृष्णकान्त वैदिक जी को कहा कि आप 75 वर्ष के युवक हैं। आप 100 वर्ष की आयु पूर्ण करने से पूर्व कहीं जाने वाले नहीं हैं। स्वामी जी ने कहा कि आर्यसमाज के जिन विद्वानों ने वेदभाष्य आदि लिखकर वेदों की सेवा की है, संस्कृत का अध्ययन व वेदों का प्रचार किया है, उनके जीवन लगभग 100 वर्ष व उससे अधिक वर्षों के रहे हैं। स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने पं. विश्वनाथ विद्यालंकार विद्यामार्तण्ड जी, पं. दामोदर सातवलेकर जी एवं आचार्य डा. रामनाथ वेदालंकार जी के जीवन के उदाहरण दिये और कहा कि इन्होंने लगभग 100 वर्ष वा इससे अधिक आयु को प्राप्त किया है। स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने अपने अनुभव के आधार पर कहा कि जो व्यक्ति संस्कृत का अध्ययन व वेद प्रचार के कार्यों में अपने जीवन को व्यतीत करते हैं उनका जीवन लम्बा होता है। स्वामी जी ने कहा कि सन्ध्या करने से भी मनुष्य का जीवन लम्बा होने सहित उसे अनेक लाभ होते हैं जो अन्य व्यक्तियों को नहीं होते। अपने विचारों को विराम देते हुए स्वामी जी ने डा. कृष्णकान्त वैदिक जी को अपना आशीर्वाद दिया और उनके लम्बे जीवन की कामना सहित सभी श्रोताओं को वैदिक मान्यताओं के अनुसार जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा की।
श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए प्रसिद्ध आर्य विदुषी डा. आचार्या अन्नपूर्णा जी ने कहा कि उस मनुष्य का जीवन सफल होता है जो अपना, अपने परिवार, समाज तथा राष्ट्र का उत्थान वा कल्याण करने के कार्यों को करता है। आचार्या जी ने डा. कृष्णकान्त वैदिक जी द्वारा ऋषि दयानन्द के ऋग्वेद भाष्य पर किये गये वा आगे किये जाने वाले कार्यों पर प्रकाश डाला। आचार्या जी ने कहा डा. कृष्णकान्त जी ने अंग्रेजी शिक्षा से अध्ययन कर सरकारी पदों पर कार्य किया, एक उच्च सरकारी पद से सेवानिवृत हुए, सेवाकाल में ही उन्होंने संस्कृत का अध्ययन कर संस्कृत से इण्टर, शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण करने सहित गुरुकुल कांगड़ी से एम.ए. किया और उसके बाद अथर्ववेद विषय लेकर शोध उपाधि पीएचडी प्राप्त कर संस्कृत का अध्ययन पूरा किया। अध्ययन पूरा करने के बाद भी वह संस्कृत व्याकरण का अपना ज्ञान बढ़ाते रहे और गुरुकुल के आचार्य डा. यज्ञवीर जी से व्याकरण एवं निरुक्त आदि ग्रन्थों को पढ़ा। उन्होंने कहा कि वैदिक जी वेदों पर जो अनुसंधान, खोज, अंग्रेजी अनुवाद व सम्पादन का कार्य कर रहे हैं वह अत्यन्त सराहनीय है और इसके लिए वह बधाई के पात्र हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हमें जीवन में जब जब भी शुभ कार्य करने का अवसर मिले, हमें पीछे नही हटना चाहिये।
मुख्य अतिथि यशस्वी श्री अजय आर्य, साहित्य प्रकाशक, विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द, दिल्ली ने अपने सम्बोधन में डा. कृष्णकान्त वैदिक जी से जुड़े अपने पुराने अनेक संस्मरणों को प्रस्तुत किया। उन्होंने वैदिक जी द्वारा सरकारी सेवा में रहते हुए संस्कृत पढ़ने की प्रेरणाप्रद घटना को भी श्रोताओं को बताया। उन्होंने वैदिक जी को उनके 75वें जन्म दिवस पर अपनी हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई दी। वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के मन्त्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी ने पवमान मासिक पत्रिका के सम्पादक श्री कृष्णकान्त वैदिक को अपनी शुभकामनायें दीं और कहा कि उनका ऋग्वेद पर अनुसंधानात्मक कार्य भावी अनुसंधानकर्ताओं के लिये प्रेरणाप्रद होगा एवं उनके लिए उपयोगी सिद्ध होगा। डा. कृष्णकान्त के विद्यागुरु आचार्य डा. यज्ञवीर जी ने वैदिक जी को शुभकामनायें देने वाली अपनी संस्कृत कविता को गाकर प्रस्तुत किया। उन्होंने अपनी कविता से पूर्व एक प्रसिद्ध फिल्मी गीत की एक पंक्ति को भी प्रस्तुत किया। गुरुकुल पौंधा के आचार्य संजीव आर्य जी ने डा. कृष्णकान्त वैदिक जी के जीवन को युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बताया। उन्होंने वैदिक जी के शतायु होने की कामना की।
आयोजन के मध्य डा. कृष्णकान्त वैदिक जी द्वारा ऋषि दयानन्द जी के ऋग्वेद भाष्य के प्रथम मण्डल पर किये गये शोध, अनुसंधान, शुद्ध हिन्दी एवं अंग्रेजी अनुवाद सहित सम्पादन के कार्यों को तीन भागों में प्रस्तुत किया है। इन तीन भागों में प्रथम, संस्कृत-हिन्दी-अंगे्रजी भाष्य, द्वितीय, हिन्दी पदार्थ एवं भावार्थ एवं अंग्रेजी पदार्थ एवं भावार्थ सम्मिलित हैं। प्रत्येक भाग के चार खण्डों का, कुल 12 खण्डों का, लोकार्पण समारोह में लोकार्पण किया गया।
डा. कृष्णकान्त वैदिक जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि हम आर्यों को वृद्धावस्था में घर पर रहकर वानप्रस्थ और संन्यास के नियमों का पालन करने हुए जीवन व्यतीत करना चाहिये। उन्होंने बताया कि उन्होंने लगभग डेढ़ वर्ष तक प्रातः 4.30 बजे से आनलाइन व्याकरण एवं निरुक्त के विषयों को आचार्य डा. यज्ञवीर जी से पढ़ा है। उन्होंने यह भी बताया कि ऋग्वेद भाष्य के अनुसंधान एवं सम्पादन का उन्होंने जो कार्य किया है उसकी पाण्डुलिपी आचार्य यज्ञवीर जी को आद्योपान्त दिखाकर उनके सुझाव व संशोधन प्राप्त किये जिन सबका समावेश उन्होंने अपने कार्यों में किया है। उन्होंने कहा कि मुझें अपने गुरु डा. यज्ञवीर जी का भरपूर आशीर्वाद मिला है। उसी के परिणामस्वरूप मैंने जो कार्य किया है, उसे कर सका हूं।
आचार्य धनंजय जी ने कार्यक्रम के समापन की सूचना दी और सभी आये हुए अतिथियों से गुरुकुल की भोजन शाला में भोजन ग्रहण की प्रार्थना की। इसी के साथ आज के कार्यक्रम का समापन हुआ। ओ३म् शम्।