एक मात्र अपनी आत्मा सारभूत वस्तुःजैनाचार्य ज्ञानचंद्र महाराज

( 3763 बार पढ़ी गयी)
Published on : 02 Sep, 25 13:09

उदयपुर। भूपालपुरा स्थित अरिहंत भवन मेंआयोजित धर्मसभा में बोलते हुए आचार्य ज्ञानचन्द्र महाराज ने कहा कि जिस प्रकार घर में आग लगने पर घर का स्वामी सार भूत वस्तुओं को बाहर निकाल देता है और निस्सार वस्तुओं को वहीं छोड़ देता है। इसी प्रकार जरा मृत्यु से जलते हुए इस लोक में से आपकी अनुमति प्राप्त करके सारभूत अपनी आत्मा को बाहर निकाला जाए।
उन्होंने कहा कि बुढ़ापा और आवीचिक मरण की दृष्टि से हर क्षण आग लगी हुई है। जिससे जिंदगी जल रही है। गर्भ में आने के समय में जब इंद्रियां एक अंत मुहूर्त में पूर्ण हो जाती है, उस समय जीव की जो सुकोमलता एवं सुंदरता होती है। वह उम्र के बढ़ते क्षणों में वो घटती रहती है। कठोरता और बुढ़ापा बढ़ता जाता है। ऐसी स्थिति में सारभूत को निकालना है, बचाना है। सारभूत क्या है? घर में आग लग रही है, घर का मालिक सबसे पहले कैश नोट निकालता है, उसके बाद ज्वेलरी निकालता है, उसके बाद बेस कीमती कपड़े निकालता है, तब तक आग भड़क जाती है। अब निकालना संभव नहीं रहा। इसी बीच बच्चे के रोने की आवाज आती है, तब ध्यान आता है कि पुत्र तो अंदर ही रह गया। आग भयंकर हो चुकी है, वो जल रहा है। माता-पिता कुछ नहीं कर पा रहे हैं।
इसी तरह इस जलती संसार में व्यक्ति तन-धन जमीन परिजन को बचाने में लगे हैं, जो की सभी यहीं रह जाने हैं। इसी दौड़ धूप में सबसे कीमती वस्तु आत्मा को नहीं बजाया जा रहा है।
तभी आदमी मृत्यु के समय रोता है, तड़पता है, खुद के किए गए गलत कर्म ही आ खड़े होते हैं। जो व्यक्ति को अंदर ही अंदर जलाते हैं। अतः सारभुत तत्व है, अहिंसा सत्य अचौर्य ब्रह्मचर्य अपरिग्रह उनको बचाइए, यह पालन कीजिए।


साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.