तीर्थंकर भी मनाते है पर्युषण पर्वःज्ञानचन्द महाराज

( 2670 बार पढ़ी गयी)
Published on : 27 Aug, 25 14:08

तीर्थंकर भी मनाते है पर्युषण पर्वःज्ञानचन्द महाराज


उदयपुर। अरिहंत भवन में आयोजित धर्मसभा में बोलते हुए जैनाचार्य ज्ञानचंद्र म.सा ने कहा कि समणे भगवं महावीरे सवी सराइं मासे वइक्कंते सतरिएहिं राइंदिएहिं सेसेहिं वासावासं पज्जोसवेई’ अर्थात् जैन आगमों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि श्रमण भगवान महावीर ने एक मास, 20 दिन याने पचासवें दिन जब 70 दिन अवशेष रहे, तब संवत्सरी पर्व मनाया।
जैन पंचांग में एक मास की वृद्धि तिथि होती नहीं है। आज संवत्सरी के दिन जैनी उपवास करके, सभी पापों से दूर रहकर, एक साथ ’खामेमि सव्वेजीवा’ के पाठ से विश्व कल्याण की कामना करते हैं।
वैज्ञानिक वासिलिएव कामिनिएव, वैज्ञानिक वेकेस्टर, वैज्ञानिक निजीन्सकी आदि रिसर्च से यह स्पष्ट है कि आपकी सोच का प्रभाव दूर-दूर तक जाता है। जब लाखों जैनी आज के रोज पापों से निवृत्त होकर, उपवास के साथ विश्व कल्याण की कामना करते हैं तो विश्व शांति का संचार होता है। इसलिए भगवान महावीर को विश्व वंदनीय कहा जाता है। भगवान महावीर का शासन साढे 18 हजार साल तक चलेगा। तब तक इस देश में भगवान महावीर के साधु साध्वी, श्रावक श्राविका रहेंगे।
ऐसी स्थिति में अमेरिका, चीन, रूस सब भारत के दुश्मन हो जाए। सभी भारत को खत्म करने में लगे, तब भी हमारा देश खत्म नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि यह ऋषि मुनियों का देश है। सबसे अधिक त्यागी महात्मा, अहिंसक, सदाचारी इस देश में है, उतने कहीं नहीं है। काली, महाकाली रानियों का वर्णन शास्त्र में आया है। जिनके पुत्र चेड़ा कोणिक युद्ध में मारे गए। जिनको भगवान ने बतलाया था जिसे सुनकर दीक्षा लेकर, घोर तपस्या करके सब मोक्ष चली गई। संवत्सरी के लिए उदायन, चंडप्रघोत का उदाहरण, उदयपुर के राजा जयकेशी नरवीर का इतिहास, संवत्सरी के दिन भी खाने वाले कुरगुडूक मुनि की कथा, संवत्सरी के दिन उपवास करने जाने वाले श्रीयक कुमार का जीवन प्रसंग हम सबके सामने हैं।
आज के दिन हमें अपने पापों की आलोचना करना है, अपने पाप धोने हैं। दूसरों के नहीं, अपनी तरफ देखें। न्यूयॉर्क में स्टेट बैंक में घटी लोम्युजॉम का ’मे गॉड ब्लेस यू’ का जीवन प्रसंग शुद्ध कल्याण की कामना की विशेषता को स्पष्ट करता है। हमें खतरों से बचना है तो गुरु और धर्म के साथ लगें रहें। धागे में गांठ पड़ सकती है, लेकिन भाई-भाई के खून के रिश्ते टूटने पर भी बिना गांठ के एकमेक हो सकते हैं। जब तक मन की वैर विरोध की गांठ नहीं खुलेगी, तब तक सारी धर्म साधना सही नहीं हो सकेगी।


साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.