दक्षिण राजस्थान में फसल विविधीकरण से उत्पादकता, लाभप्रदता और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए दो दिवसीय अधिकारी प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू

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Published on : 22 Aug, 25 11:08

दक्षिण राजस्थान में फसल विविधीकरण से उत्पादकता, लाभप्रदता और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए दो दिवसीय अधिकारी प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू

उदयपुरमहाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय द्वारा फसल विविधीकरण परियोजना के तहत आयोजित दो दिवसीय अधिकारियों का प्रशिक्षण कार्यक्रम का आज शुरू हुआ। इस कार्यक्रम में 30 सहायक कृषि अधिकारियों व कृषि पर्यवेक्षको ने उत्साहपूर्वक भाग लिया ।

कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य कृषि अधिकारियों को क्षेत्र की कृषि व्यवस्था को बदलने के लिए नवीन रणनीतियों से सशक्त बनाना है। ताकि फसल विविधीकरण में प्रमुख चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा की जा सके, जो शुष्क दक्षिण राजस्थान में सतत कृषि और ग्रामीण रोजगार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है ।

परियोजना प्रभारी डॉ. हरि सिंह ने कार्यक्रम के उदघाटन संबोधन में कहा कि यह कार्यक्रम कृषि अधिकारियों और हितधारकों के लिए तैयार किया गया है, जो पारंपरिक एकफसली खेती से विविधीकृत प्रणालियों की ओर बदलाव पर केंद्रित है, जो मिट्टी की सेहत में सुधार, जलवायु परिवर्तनशीलता से जोखिम कम करने और किसानों की आय बढ़ाने में मदद कर सकता है। राजस्थान के दक्षिणी जिलों जैसे उदयपुर, चित्तौड़गढ़ और बांसवाड़ा में जल की कमी और अनियमित मानसून जैसी समस्याओं का सामना करते हुए, फसल विविधीकरण-दालों, तिलहन और बागवानी फसलों को मक्का और गेहूं जैसे मुख्य फसलों के साथ शामिल करना-उत्पादकता और रोजगार सृजन के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव साबित हो रहा है।

अनुसंधान निदेशक डॉ. अरविंद वर्मा ने विविधीकृत फसलों के लिए खरपतवार प्रबंधन में उन्नत अभ्यास पर चर्चा की, जिसमें उपज हानि को कम करने के लिए एकीकृत दृष्टिकोण पर जोर दिया गया। डॉ. वर्मा ने बताया कि फसल विविधीकरण, जिसमें एकल कृषि के बजाय चक्रण या अंतर फसल प्रणाली में विभिन्न फसलों को उगाना शामिल है, खरपतवार जीवन चक्र को बाधित करके और रासायनिक खरपतवार नाशियों पर निर्भरता कम करके सतत खरपतवार प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

डॉ. पोखर रावल, प्रोफेसर के द्वारा विविधीकृत फसल प्रणालियों के तहत उत्पादकता बढ़ाने के लिए उन्नत कृषि अभ्यास पर व्याख्यान हुआ। उन्होने फसलों में लगने वाले रोगों और उनके निदान पर गहन जानकारी व फसलों की देखभाल और उत्पादन बढ़ाने की आधुनिक विधियों से भी अवगत कराया ।

कार्यक्रम में डॉ. बैरवा ने बागवानी और कृषि फसलों की लागत और लाभ का तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि बागवानी फसलों जैसे सब्जियां, फल, और मसालों में निवेश थोड़ा अधिक होता है, लेकिन इनसे मिलने वाला लाभ सामान्य फसलों की तुलना में अधिक होता है।

कार्यक्रम के दौरान विशेषज्ञों ने यह मत प्रकट किया कि फसल विविधीकरण से किसानों को न केवल अधिक लाभ होगा बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और कृषि प्रणाली दीर्घकालिक रूप से स्थायी बनेगी।


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