उदयपुर। पर्वाधिराज पर्युषण के दूसरे दिन सूरजपोल स्थित दादाबाड़ी में साध्वी विरलप्रभा श्रीजी, साध्वी विपुलप्रभा श्रीजी और साध्वी कृतार्थप्रभा श्रीजी की पावन निश्रा में चल रहे पर्वाधिराज पर्युषण के कार्यक्रमों के तहत धर्मसभा में साध्वी विरलप्रभा श्रीजी ने कहा कि 5 कर्तव्य और 11 वार्षिक कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
जिनभक्ति किस तरह करनी है। हम मंदिर जाते हैं या नहीं। अलग अलग मंदिर जाते हैं या सिर्फ एक ही जगह जाते हैं। यहां न ज्ञान वृद्धि करनी है और न ही देव पूजा में। हम मनुष्य गति में हैं। अंदर पूजा के भाव लाने होंगे। मन के सिर्फ भावों से ही भव बदल जाता है। सांसारिक कर्म भोगे बिना संयम पथ पर निकल नही सकते। जिन भक्ति में किसी की निंदा, आलोचना नही करनी चाहिए। साधर्मिक वात्सल्य यानी साधर्मिक भक्ति। चुपचाप करनी है, किसी को बताकर साधर्मिक वात्सल्य नही करना है। क्षमापना। क्षमा स्वयं को भी करनी है और दूसरों को भी देनी है। अट्ठम तप। श्रावक और साधु सबके लिए जरूरी है। इसी प्रकार उन्होंने वार्षिक 11 कर्तव्यों की भी जानकारी दी।
कल के बीते दिन पर आज चिंतन करना है। उपवास, प्रतिक्रमण, जिनवाणी श्रवण, टीवी से दूर रहना आदि जीवन को सार्थक करते हैं। एक दिशा में 13 पर्वत हैं। कुल 52 पर्वत हैं। नंदीश्वर जिनालय में हजारों प्रतिमाएँ हैं। पांचों कल्याणक मनाते हैं और पर्युषण मनाने की हर्षाभिव्यक्ति करते हैं। सह संयोजक दलपत दोशी ने बताया कि शुक्रवार को शास्त्र कल्पसूत्र बौराये जाएंगे।