जनु भाई की 28 वीं पुण्य तिथि पर किया नमन

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Published on : 17 Aug, 25 00:08

साहित्य और समाज: जनुभाई का अवदान विषय पर शैक्षिक परिसवांद का हुआ आयोजन

जनु भाई की 28 वीं पुण्य तिथि पर किया नमन


उदयपुर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संस्थापक मनीषी पंडित जनार्दनराय नागर की 28वीं पुण्यतिथि के अवसर पर शनिवार  को प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में साहित्य और समाज: जनुभाई का अवदान विषय पर आयोजित परिसंवाद का शुभारंभ कुलपति प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत, कुल प्रमुख एवं कुलाधिपति भंवर लाल गुर्जर, पीठ स्थविर डाॅ. कौशल नागदा, रजिस्ट्रार डाॅ. तरूण श्रीमाली, प्रो. सरोज गर्ग, प्रो. जीवनसिंह खरकवाल, प्रो. गजेन्द्र माथुर, प्रो. मलय पानेरी ने माॅ सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्पांजलि एवं दीप प्रज्जवलित कर किया। इससे पूर्व सम्मानित अतिथि एवं विद्यापीठ के तीनों परिसरों के कार्यकर्ताओं ने प्रतापनगर परिसर में स्थापित जनुभाई की आदकमद प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें नमन किया।


जनुभाई का साहित्य हर कालखंड में प्रासंगिक - प्रो. सारंगदेवोत

प्रारंभ में कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि जनुभाई एक साहित्यकार ही नही, वरन् एक युगदृष्टा थे। समाज के अंतिम वर्ग तक शिक्षा क अलख जगाने के लिए 26 वर्ष की उम्र में राजस्थान विद्यापीठ की  स्थापना की। वे जनतांत्रिक मूल्यों के समर्थक थे। साहित्य और समाज एक दूसरे के पूरक हैं , साहित्य वो परिधान है जो जनमानस के  मानवीय संवेगों की सशक्त अभिव्यक्ति है जिसमें परिवर्तन की आधारशिला निहित है। साहित्य हर कालखंड की पृष्ठभूमि को अभिव्यक्त करता है साहित्य के प्रभावों और परिवर्तन का सीधा असर मानव समाज एवं सामाजिक पृष्ठभूमि पर प्रतिबिंबित होता है आनंदमय जीवन के लिए सामाजिक उन्नयन हृदय की संवेदनशीलता सर्वजन हिताय मानव केंद्रित साहित्य एवं जीवन के मार्ग लक्ष्य और वैचारिक स्वतंत्रता की आवश्यकता और महत्व दोनों को ही जानू भाई ने अपने साहित्य और शिक्षा के माध्यम से समाज के सामने रखा ।
जनू भाई के शिक्षा के प्रति उनकी विचारधारा पर बोलते हुए सारंगदेवोत ने कहा कि जनू भाई की दृष्टि में शिक्षा केवल पुस्तक के पाठ नहीं हो कर मनुष्य के भीतर का आलोक होना चाहिए। शिक्षा का दृष्टिकोण ऐसा होना चाहिए कि वो सर्व समाज की पहुंच के साथ साथ सामुदायिक दायित्वों को पूर्ण करने वाली हो,जनतांत्रिक मूल्यों से युक्त हो कर सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की बात करने वाली होनी चाहिए। सारंगदेवोत ने कहा कि जानू भाई की विचारधारा अपने समय से कहीं अधिक विस्तृत और आगे की थी इस बात का प्रमाण सभी शिक्षा नीतियों और नई शिक्षा नीति में उनके द्वारा चलाई जा रहे सामुदायिक कार्यों एवं मातृभाषा की प्रधानता जैसे तथ्य हम सभी को देखने के लिए मिलते हैं। शिक्षा और साहित्यिक मूल्यों के साथ हिंदीभाषा के लिए जनू भाई के योगदान को भी उन्होंने रेखांकित किया।

जनुभाई के जीवन मूल्यों को जीवन आत्मसात करने की जरूरत - बीएल गुर्जर

कुल प्रमुख एवं कुलाधिपति बी.एल. गुर्जर ने जनुभाई और विद्यापीठ के संघर्षों को साझा करते हुए कार्यकर्ताओं से संस्था की विचारधारा को अक्षुण्ण रखने और जनुभाई के जीवन मूल्यों को जीवन में आत्मसात करने की जरूरत पर जोर दिया। जनुभाई साधारण परिवार से थे, महाराणा ने उन्हें बनारस शिक्षण दीक्षण के लिए भेजा। उस समय देश में आजादी का आंदोलन चल रहा था और वे वहाॅ आंदोलनकारियों के सम्पर्क में आये और आजादी के आंदोलन में कुद पड़े। आजादी के 10 वर्ष पूर्व 1937 में विपरीत परिस्थितियों में संस्थान की स्थापना हुई जिसका इतिहास कार्यकर्ताओं को पढ़ना चाहिए। तीन रूपयों से शुरू संस्थान का आज 70 करोड़ का वार्षिक बजट है। उन्होंने जनु भाई की शैक्षिक विचारधारा एवं विद्यापीठ की स्थापना और संघर्षों को रेखांकित करते हुए कहा कि हर समाज हर तबके की अनिवार्य शिक्षा कि उनकी सोच को बताया। उन्होंने अनुशासन और दायित्वों के निर्वहन से विद्यापीठ की विकास यात्रा पर भी रोशनी डाली। उन्होंने कार्यकर्ताओं से जानू भाई के विचारों को अपने और शिक्षा के लिए उनकी सोच एवं सपने को पूरा करने में कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग करने का भी आह्वान कार्यकर्ताओं से किया।
प्रो. मलय पानेरी ने जानू भाई को साहित्य के माध्यम से आमजन तक पहुंचने वाला और उनके हृदय में स्थान बनाने वाला शिल्पकार बताया एवं शिक्षा के प्रति उनके समर्पण और    दृष्टिकोण को साझा किया। पानेरी के अनुसार जानू भाई ने शिक्षा की आवश्यकता और उसके सामाजिक प्रभाव को कहीं पहले समझ लिया था और उसी के अनुरूप निम्न वर्ग और शिक्षा से वंचित वर्ग तक शिक्षा की अलग जागने को उन्होंने अपने जीवन का मूल उद्देश्य बना लिया।

इस अवसर पर परीक्षा नियंत्रक डाॅ. पारस जैन, डाॅ. अमीया गोस्वामी,  डाॅ. अवनिश नागर,  डाॅ. हेमेन्द्र चैधरी, डाॅ. हीना खान, डाॅ. रचना राठौड़, डाॅ. अमी राठौड़, डाॅ. सुनिता मुर्डिया, डाॅ. एसबी नागर, डाॅ. लालराम जाट, डाॅ. सपना श्रीमाली, डाॅ. गुणबाला आमेटा, डाॅ. भुरालाल श्रीमाली, डाॅ. बबीता रशीद, डाॅ. उदयभान सिंह, डाॅ. मोहसीन छीपा, डाॅ. सपना श्रीमाली, डाॅ. गुणबाला आमेटा, डाॅ. जयसिंह जोधा सहित विभिन्न विभागों के डीन डायरेक्टर्स, वरिष्ठ संकाय सदस्य, कार्यकर्ता, विद्यार्थी ने जनुभाई की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें नमन किया।
 
कार्यक्रम का संचालन डाॅ. कुलशेखर व्यास ने किया जबकि आभार रजिस्ट्रार डाॅ. तरूण श्रीमाली ने जताया।

जनुभाई की प्रतिमा का दुग्धाभिषेक कर किया नमन:-

फतहसागर पाल पर बनी दर्शक दीर्घा में लगी जनुभाई की मूर्ति का दुग्धाभिषेक एवं पुष्पांजलि अर्पित कर नमन किया। इस अवसर पर कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत, कुलाधिपति भंवर लाल गुर्जर, पीठ स्थविर डाॅ. कौशल नागदा, डाॅ. तरूण श्रीमाली, प्रो. सरोज गर्ग, डाॅ. पारस जैन, प्रो. सुनिता मुर्डिया, डाॅ. रचना राठौड, डाॅ. एसबी नागर,  डाॅ. जयसिंह जोधा, केके कुमावत, कालुसिंह, मांगीलाल  सहित कार्यकर्ताओं ने पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हे नमन किया।


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